
संपर्क: सुभाष नगर , निकट रेलवे कालोनी , शाहजहांपुर - २४२००१ (उ.प्र.)
प्रस्तुत गीत हिंदी की श्रंगार-विषयक गीतकाव्य की समृद्ध और लोकप्रिय परंपरा की कड़ी है और अपनी मधुरता और कोमल भावसिक्तता से सहज ही आकर्षित करता है।
पुरस्कृत कविता: आज फिर विश्वास तुमने दृढ़ किया है
आज फिर विश्वास तुमने दृढ़ किया है।
आज संशय ने हृदय की देहरी पर
बैठकर मुस्कान कुछ ऐसी बिखेरी,
अकंपित लौ नेह की कुछ कँपकपाई
यों लगा जो लड़खड़ाई साध मेरी।
किंतु तुमने भ्रमित मन के कटघरे में
कौंधते हर प्रश्न का उत्तर दिया है।
ठीक समझीं तुम, कि मैं डरता बहुत हूँ,
क्या करूँ, है चोट खाई बहारों से।
सूर्य से उपहार में मुझको मिला तम,
इसलिए भयभीत रहता हूँ सितारों से।
वर्तिका-सी ही सही, पर जलीं तो तुम
और उर में ज्योति-सागर भर दिया है।
कामनाओं की चदरिया फट न जाए,
इसलिए था रख दिया उसको तहाकर।
ओढ़ने को था तुम्हारा नाम काफी
फिर रहा था उसे सीने से लगाकर।
किंतु कोरे पत्र पर हस्ताक्षर कर,
मुझे तो तुमने अनोखा वर दिया है।
मुझे तुमसे चाहिए कुछ भी नहीं, सच !
खुश रहो तुम सर्वदा, यह कामना है।
हाँ, कभी गिरने लगूँ यदि नेह-पथ से
तो हमारा हाथ तुमको थामना है।
और साथी! मैं गिरूँगा भी नहीं अब,
यह हुनर मुझमें तुम्हीं ने भर दिया है।
आज फिर विश्वास तुमने दृढ़ किया है॥
________________________________________________________
पुरस्कार - विचार और संस्कृति की चर्चित पत्रिका समयांतर की एक वर्ष की निःशुल्क सदस्यता।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
5 कविताप्रेमियों का कहना है :
सबका यही दृढ़ निश्चय बना रहे।
सुंदर गीत, बधाई
गीत के भाव माधुर्य, शब्द चयन और प्रवाहमयता ने तो ह्रदय ही हर लिया है...
प्रशंसा को यथोचित शब्द कहाँ से लाऊं,समझ नहीं पा रही...
कृतिकार में जितनी भाव संप्रेषणता है उतनी ही मंजी हुई सिद्ध लेखनी भी है इनकी.....
भाव प्रवण, स-रस गीत| बधाई|
मुझे तुमसे चाहिए कुछ भी नहीं, सच !
खुश रहो तुम सर्वदा, यह कामना है।
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)