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Monday, January 31, 2011

चलो गंगा में फिर मुझको बहा दो ।




उजालों की ये सब बकबक बुझा दो
मुझे लोरी सुना कर माँ सुला दो 

तुम्हे हम धूप सा माने हुए हैं
मेरे मन का ये अँधेरा मिटा दो 

दिया हूँ मैं दुआ के वास्ते तुम,
चलो गंगा में फिर मुझको बहा दो ।

खुशी गम होश बेहोशी सभी हैं,
चलो जीवन से अब जलसा उठा दो ।

ये पानी है तसव्वुर का जो ठहरा,
तुम अपनी याद का कंकर गिरा दो ।

रहे क़ायम रवायत ये दुआ की,
मेरी ऐसी दुआ है, सब दुआ दो ।

तुम्हारी याद की बस्ती में हूँ फिर,
मुसाफिर मान कर पानी पिला दो ।

लो इसकी आंच कम होने लगी है,
ये आतिश एक मसला है, हवा दो ।

यूनिकवि: स्वप्निल आतिश


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7 कविताप्रेमियों का कहना है :

प्रवीण पाण्डेय का कहना है कि -

बेहतरीन शेर।

www.navincchaturvedi.blogspot.com का कहना है कि -

अच्छी ग़ज़ल स्वप्निल भाई| बधाई स्वीकार करें|

Vandana Singh का कहना है कि -

bahut badhiyaa ghazal hui hai swapnil ...gr88 :)

सदा का कहना है कि -

बहुत ही सुन्‍दर भावमय करते शब्‍द ।

आकर्षण गिरि का कहना है कि -

behatareen ke alawaa kya kahoon....

संगीता स्वरुप ( गीत ) का कहना है कि -

बहुत खूबसूरत गज़ल .

‘सज्जन’ धर्मेन्द्र का कहना है कि -

सुंदर ग़ज़ल, बधाई।

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