उजालों की ये सब बकबक बुझा दो
मुझे लोरी सुना कर माँ सुला दो ।
तुम्हे हम धूप सा माने हुए हैं
मेरे मन का ये अँधेरा मिटा दो ।
दिया हूँ मैं दुआ के वास्ते तुम,
चलो गंगा में फिर मुझको बहा दो ।
खुशी गम होश बेहोशी सभी हैं,
चलो जीवन से अब जलसा उठा दो ।
ये पानी है तसव्वुर का जो ठहरा,
तुम अपनी याद का कंकर गिरा दो ।
रहे क़ायम रवायत ये दुआ की,
मेरी ऐसी दुआ है, सब दुआ दो ।
तुम्हारी याद की बस्ती में हूँ फिर,
मुसाफिर मान कर पानी पिला दो ।
लो इसकी आंच कम होने लगी है,
ये आतिश एक मसला है, हवा दो ।
यूनिकवि: स्वप्निल आतिश
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7 कविताप्रेमियों का कहना है :
बेहतरीन शेर।
अच्छी ग़ज़ल स्वप्निल भाई| बधाई स्वीकार करें|
bahut badhiyaa ghazal hui hai swapnil ...gr88 :)
बहुत ही सुन्दर भावमय करते शब्द ।
behatareen ke alawaa kya kahoon....
बहुत खूबसूरत गज़ल .
सुंदर ग़ज़ल, बधाई।
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