कल हमने 'यूनिकवि एवम यूनिपाठक प्रतियोगिता' के जनवरी अंक का परिणाम प्रकाशित किया था। वो तो इन्द्रधनुषी कविताओं के प्रकाशन की सूचना मात्र थी। कल आपने उस इन्द्रधनुष का पहला रंग देखा। आज हम दूसरे रंग में आपको रंगना चाहते हैं। दूसरे स्थान पर हिन्द-युग्म की प्रतियोगिता में पिछले ६-७ महीनों से प्रतियोगिता में भाग ले रहे पंकज रामेन्दु मानव की कविता 'बाज़ार' है। पंकज बहुत संतुलित लेखन करते हैं। इस बात का एक बड़ा उदाहरण यह है कि इनकी सभी कविताएँ इस मंच पर प्रकाशित हुई हैं। हमें यह भी बताते हुए अत्यंत हर्ष हो रहा है कि मानव इस माह से हिन्द-युग्म के स्थाई कवि होने जाने रहे हैं और प्रत्येक सोमवार अपनी कविताएँ प्रकाशित करेंगे।
पुरस्कृत कविता- बाज़ार
आइए जनाब बाज़ार घूमिए
चाहे जो खरीदिए, चाहे जो बेचिए
यहां सब कुछ बिकता है,
जो पर्दे के पीछे है या जो दिखता है।
क्या खरीदना चाहेंगे ?
इंसान की जान या किसी का ईमान
आपको दिमाग भी मिल जाएगा, जिस्म भी
हमने जोड़ रखी हैं चीजें हर किस्म की,
कम दामों में दो पैरों वाला कोल्हू का बैल लीजिए
नवजात से लेकर नवयौवना तक, सब मौजूद है
जिससे चाहे खेल लीजिए ।
हमारे पास संवेदना और आंसू भी है
इनके साथ दर्द का एक कॉम्बो धांसू भी है ।
साज़िश लीजिए, षड़यंत्र ले जाइए,
साथ में विवादों का एक पैक मुफ्त पाइए
ढोने की ज़रूरत नहीं है
हम होम डिलीवरी भी करते हैं
ऑर्डर दीजिए, फिर देखिए
हम कैसे आपका दिमाग, बाज़ारियत से भरते हैं।
यह लीजिए नारे और बो बिक रहे हैं जयकारे
उन्माद फैलाने, दंगा भड़काने के लिए
विशेष छूट है जनाब
इसके साथ आपको मिल सकती है
छपने से पहले विवादों में घिर जाने वाली प्रतिबंधित किताब
जल्दी कीजिए महाराज वरना पछताएंगे
आपने नहीं लिया तो विपक्षी ले जाएंगे।
अगर आप नेता हैं तो आपको कुछ ख़ास दिखाते हैं
यह उन विधायकों का झुरमुट है जो बिकते-बिकाते हैं
हम विशेषतौर पर सबका मंच सजाते हैं
अरे आप कहिये तो सही, हम सुनने के लिए भीड़ भी जुटाते हैं।
हमारे यहां गौतम से लेकर गांधी तक सब मौजूद है
अजी हमारे आगे धरम ईमान, राम-रहीम का क्या वजूद है
सच्चाई नैतिकता तो हमारे सामने डूबता हरसूद हैं,
संवेदनाएँ रोज़ हमारे क़दमों में अपना सिर टेकती हैं
ईमानदारी ख़ुद की मार्केटिंग की राह देखती हैं।
इसके अलावा हमारे यहां प्यार भी बिकता है
इसे खरीदने और बेचने वाले में यह बेशुमार दिखता है
हमारे यहां का प्यार ज्यादा नहीं टिक सकता है
इसका फायदा यह है कि
इंसान कम समय में ज्यादा स्वाद चख सकता है
इसे कहते हैं, इंसटेंट प्यार
यानि एक छोड़िए और दूसरा तैयार
आज कल इसी प्रकार के प्यार की डिमांड है,
घबराइये नहीं इसे बेचने में हमारी कमांड है।
क्या कहा ! आप यह सब नहीं चाहते हैं
चलिए आप को धोखा-छल जैसा कुछ दिखाते हैं,
क्या ? आप सच्चाई और ईमान को लेकर विश्वस्त हैं,
लगता है आप गांधी जैसे किसी के भक्त हैं,
भाई साब इन आउटडेटेड चीजों की बात करके
हमें मत कीजिए फ्रस्टेट,
ज़रा समय के साथ चलिए और बदलिए अपना टेस्ट,
इन सब का अब नहीं रहा है फैशन,
आजकल मार्केट में छल को बेचने
झूठ को खरीदने का ही है पैशन ।
निर्णायकों की नज़र में-
प्रथम चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ८॰१
स्थान- चौथा
द्वितीय चरण के ज़ज़मेंट में मिले अंक- ५॰७, ७॰३, ८॰१ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ७॰०३३३
स्थान- पाचवाँ
तृतीय चरण के ज़ज़ की टिप्पणी-गंभीरता कम, वाचन के लिए शक्तिशाली है।
कथ्य: ४/२॰५ शिल्प: ३/१॰५ भाषा: ३/१॰५
कुल- ५॰५
स्थान- आठवाँ
अंतिम ज़ज़ की टिप्पणी-
मंचीय कविता है, किंतु कवि आधुनिक भाषा के साथ भाव को निभाने की शैली प्रशंसनीय है।
कला पक्ष: ८॰५/१०
भाव पक्ष: ८॰५/१०
कुल योग: १७/२०
पुरस्कार- सूरज प्रकाश द्वारा संपादित पुस्तक कथा-दशक'
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
इसके अलावा हमारे यहां प्यार भी बिकता है
इसे खरीदने और बेचने वाले में यह बेशुमार दिखता है
हमारे यहां का प्यार ज्यादा नहीं टिक सकता है
इसका फायदा यह है कि
इंसान कम समय में ज्यादा स्वाद चख सकता है
इसे कहते हैं, इंसटेंट प्यार
यानि एक छोड़िए और दूसरा तैयार
आज कल इसी प्रकार के प्यार की डिमांड है,
घबराइये नहीं इसे बेचने में हमारी कमांड है।
'पंकज रामेन्दु मानव जी आपकी कविता 'बाज़ार' की ये पंक्तीयाँ जो प्यार के खरीद फ्रोक्त का वर्णन करती हैं बहुत अच्छी लगी" आपको दुसरे स्थान के उपलब्धी पर बहुत बहुत बधाई "
साज़िश लीजिए, षड़यंत्र ले जाइए,
साथ में विवादों का एक पैक मुफ्त पाइए
ढोने की ज़रूरत नहीं है
हम होम डिलीवरी भी करते हैं
ऑर्डर दीजिए, फिर देखिए
हम कैसे आपका दिमाग, बाज़ारियत से भरते हैं।
--- बिल्कुल नयी नवेली कविता है |
बाज़ारियत के माद्यम से बहुत कुछ कह डाला है |
लोगों मे कहने लायक रचना है |
सुंदर रचना है |
बहुत बहुत बधाई |
अवनीश तिवारी
पंकज रामेंदु मानव की कविता,"बाजार को पढ़कर वास्तव में ये अनुभूति होती है की आज सम्पूर्ण मानव जीवन ही बाजार का रूप का धारण कर चुका हुआ. तथा यह बाजारवाद उसकी अस्थाई सभ्यता और चिरस्थाई परिवेश बन चुका है. और यह भी सही है की "यहाँ सबकुछ बिकता है,जो परदे के पीछे है या जो दिखता है"
गजब का बाजार है..
कम दामों में दो पैरों वाला कोल्हू का बैल लीजिए
नवजात से लेकर नवयौवना तक, सब मौजूद है
जिससे चाहे खेल लीजिए ।
हमारे पास संवेदना और आंसू भी है
इनके साथ दर्द का एक कॉम्बो धांसू भी है ।
साज़िश लीजिए, षड़यंत्र ले जाइए,
साथ में विवादों का एक पैक मुफ्त पाइए
ढोने की ज़रूरत नहीं है
हम होम डिलीवरी भी करते हैं
ऑर्डर दीजिए, फिर देखिए
हम कैसे आपका दिमाग, बाज़ारियत से भरते हैं।
- बहुत सुन्दर..
बहुत बहुत बधाई
बहुत अच्छा ,बहुत सुंदर दर्शन , बहुत सुंदर भाव !!
बहुत मार्मिक कविता है ,जहाँ जिंदा इंसान और भवनायी बिकती है ,वह कैसे जिया जा सकता है,पर बदल टू इंसान को ही करने है,मगर बरसों लग जाए इस काम में.बहुत अच्छी कविता,बधाई.|
सब कुछ बिकता है.. चंद पैसों में..और यह पैसा किसने बनाया.. भगवान ने नही, इंसान ने..
यहाँ मानव अंग भी तो बिक रहे हैं -गुर्दों का व्यापार इन दिनों परवान चढ़ा है .
हमारे यहां गौतम से लेकर गांधी तक सब मौजूद है
अजी हमारे आगे धरम ईमान, राम-रहीम का क्या वजूद है
सच्चाई नैतिकता तो हमारे सामने डूबता हरसूद हैं,
संवेदनाएँ रोज़ हमारे क़दमों में अपना सिर टेकती हैं
ईमानदारी ख़ुद की मार्केटिंग की राह देखती हैं।
वाह..... गजब का बहाव है कविता में, सचमुच एक व्यस्त बाज़ार का दृश्य खड़ा कर देती है, अंत थोड़ा और बेहतर हो सकता था
dubate harsood ki upma kamaal ki hai...badhaai
**पंकज रामेंदु मानव की कविता,"बाजार- बहुत कुछ कह गयी है...दुःख होता है ऐसी भयावह स्थिति के हम सब भी मूक दर्शक हैं. क्यूंकि सच कहा आपने ''आजकल मार्केट में छल को बेचने
झूठ को खरीदने का ही है फैशन 'कोई आवाज़ उठाये भी कैसे?
** अच्छी कविता है.
पंकज जी स्थाई कवि बनने पर आप को बधाई
पंकज रामेंदु मानव जी
यह सही है ......
आइए जनाब बाज़ार घूमिए
चाहे जो खरीदिए, चाहे जो बेचिए
यहां सब कुछ बिकता है,
जो पर्दे के पीछे है या जो दिखता है।
अच्छी लगी कविता .....दुसरे स्थान के उपलब्धी पर ....
बहुत बहुत बधाई |
रामेन्दु जी,
आप इतना बढ़िया लिख रहे हैं, लेकिन हर बार तुक के मोह में पड़कर गंभीरता कम कर देते हैं। ज़रा सोचिएगा।
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