tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post5159586687073381940..comments2024-03-23T18:32:18.216+05:30Comments on हिन्द-युग्म Hindi Kavita: मानव का बाज़ारशैलेश भारतवासीhttp://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comBlogger13125tag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-50431702748783512352008-02-12T00:27:00.000+05:302008-02-12T00:27:00.000+05:30रामेन्दु जी,आप इतना बढ़िया लिख रहे हैं, लेकिन हर ब...रामेन्दु जी,<BR/><BR/>आप इतना बढ़िया लिख रहे हैं, लेकिन हर बार तुक के मोह में पड़कर गंभीरता कम कर देते हैं। ज़रा सोचिएगा।शैलेश भारतवासीhttps://www.blogger.com/profile/02370360639584336023noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-50860145184509055502008-02-10T22:57:00.000+05:302008-02-10T22:57:00.000+05:30पंकज रामेंदु मानव जी यह सही है ......आइए जनाब बाज़...पंकज रामेंदु मानव जी <BR/><BR/><BR/>यह सही है ......<BR/><BR/>आइए जनाब बाज़ार घूमिए<BR/>चाहे जो खरीदिए, चाहे जो बेचिए<BR/>यहां सब कुछ बिकता है,<BR/>जो पर्दे के पीछे है या जो दिखता है।<BR/><BR/>अच्छी लगी कविता .....दुसरे स्थान के उपलब्धी पर ....<BR/><BR/>बहुत बहुत बधाई |गीता पंडितhttps://www.blogger.com/profile/17911453195392486063noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-54936637077093235922008-02-07T01:30:00.000+05:302008-02-07T01:30:00.000+05:30पंकज जी स्थाई कवि बनने पर आप को बधाईपंकज जी स्थाई कवि बनने पर आप को बधाईAlpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-3605269514939150902008-02-07T01:28:00.000+05:302008-02-07T01:28:00.000+05:30**पंकज रामेंदु मानव की कविता,"बाजार- बहुत कुछ कह ग...**पंकज रामेंदु मानव की कविता,"बाजार- बहुत कुछ कह गयी है...दुःख होता है ऐसी भयावह स्थिति के हम सब भी मूक दर्शक हैं. क्यूंकि सच कहा आपने ''आजकल मार्केट में छल को बेचने<BR/>झूठ को खरीदने का ही है फैशन 'कोई आवाज़ उठाये भी कैसे?<BR/>** अच्छी कविता है.Alpana Vermahttps://www.blogger.com/profile/08360043006024019346noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-44952295617730278712008-02-06T08:30:00.000+05:302008-02-06T08:30:00.000+05:30हमारे यहां गौतम से लेकर गांधी तक सब मौजूद हैअजी हम...हमारे यहां गौतम से लेकर गांधी तक सब मौजूद है<BR/>अजी हमारे आगे धरम ईमान, राम-रहीम का क्या वजूद है<BR/>सच्चाई नैतिकता तो हमारे सामने डूबता हरसूद हैं,<BR/>संवेदनाएँ रोज़ हमारे क़दमों में अपना सिर टेकती हैं<BR/>ईमानदारी ख़ुद की मार्केटिंग की राह देखती हैं।<BR/><BR/>वाह..... गजब का बहाव है कविता में, सचमुच एक व्यस्त बाज़ार का दृश्य खड़ा कर देती है, अंत थोड़ा और बेहतर हो सकता था <BR/>dubate harsood ki upma kamaal ki hai...badhaaiSajeevhttps://www.blogger.com/profile/08906311153913173185noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-50568522931418731532008-02-06T08:17:00.000+05:302008-02-06T08:17:00.000+05:30यहाँ मानव अंग भी तो बिक रहे हैं -गुर्दों का व्यापा...यहाँ मानव अंग भी तो बिक रहे हैं -गुर्दों का व्यापार इन दिनों परवान चढ़ा है .Arvind Mishrahttps://www.blogger.com/profile/02231261732951391013noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-20237978814586402802008-02-05T15:03:00.000+05:302008-02-05T15:03:00.000+05:30सब कुछ बिकता है.. चंद पैसों में..और यह पैसा किसने ...सब कुछ बिकता है.. चंद पैसों में..और यह पैसा किसने बनाया.. भगवान ने नही, इंसान ने..Kavi Kulwanthttps://www.blogger.com/profile/03020723394840747195noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-35176225206921897892008-02-05T12:44:00.000+05:302008-02-05T12:44:00.000+05:30बहुत मार्मिक कविता है ,जहाँ जिंदा इंसान और भवनायी ...बहुत मार्मिक कविता है ,जहाँ जिंदा इंसान और भवनायी बिकती है ,वह कैसे जिया जा सकता है,पर बदल टू इंसान को ही करने है,मगर बरसों लग जाए इस काम में.बहुत अच्छी कविता,बधाई.|mehekhttps://www.blogger.com/profile/16379463848117663000noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-14008933949796495472008-02-05T12:32:00.000+05:302008-02-05T12:32:00.000+05:30बहुत अच्छा ,बहुत सुंदर दर्शन , बहुत सुंदर भाव !!...बहुत अच्छा ,बहुत सुंदर दर्शन , बहुत सुंदर भाव !!Divya Prakashhttps://www.blogger.com/profile/10953256514562221873noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-40453555220903153362008-02-05T12:17:00.000+05:302008-02-05T12:17:00.000+05:30गजब का बाजार है..कम दामों में दो पैरों वाला कोल्हू...गजब का बाजार है..<BR/><BR/>कम दामों में दो पैरों वाला कोल्हू का बैल लीजिए<BR/>नवजात से लेकर नवयौवना तक, सब मौजूद है<BR/>जिससे चाहे खेल लीजिए ।<BR/>हमारे पास संवेदना और आंसू भी है<BR/>इनके साथ दर्द का एक कॉम्बो धांसू भी है ।<BR/><BR/>साज़िश लीजिए, षड़यंत्र ले जाइए,<BR/>साथ में विवादों का एक पैक मुफ्त पाइए<BR/>ढोने की ज़रूरत नहीं है<BR/>हम होम डिलीवरी भी करते हैं<BR/>ऑर्डर दीजिए, फिर देखिए<BR/>हम कैसे आपका दिमाग, बाज़ारियत से भरते हैं।<BR/>- बहुत सुन्दर..<BR/><BR/>बहुत बहुत बधाईभूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghavhttps://www.blogger.com/profile/05953840849591448912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-63371405829675596652008-02-05T10:55:00.000+05:302008-02-05T10:55:00.000+05:30पंकज रामेंदु मानव की कविता,"बाजार को पढ़कर वास्तव ...पंकज रामेंदु मानव की कविता,"बाजार को पढ़कर वास्तव में ये अनुभूति होती है की आज सम्पूर्ण मानव जीवन ही बाजार का रूप का धारण कर चुका हुआ. तथा यह बाजारवाद उसकी अस्थाई सभ्यता और चिरस्थाई परिवेश बन चुका है. और यह भी सही है की "यहाँ सबकुछ बिकता है,जो परदे के पीछे है या जो दिखता है"anilpandeyhttps://www.blogger.com/profile/05876319724339061912noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-9759721511667520472008-02-05T10:49:00.000+05:302008-02-05T10:49:00.000+05:30साज़िश लीजिए, षड़यंत्र ले जाइए,साथ में विवादों का ...साज़िश लीजिए, षड़यंत्र ले जाइए,<BR/>साथ में विवादों का एक पैक मुफ्त पाइए<BR/>ढोने की ज़रूरत नहीं है<BR/>हम होम डिलीवरी भी करते हैं<BR/>ऑर्डर दीजिए, फिर देखिए<BR/>हम कैसे आपका दिमाग, बाज़ारियत से भरते हैं।<BR/>--- बिल्कुल नयी नवेली कविता है |<BR/>बाज़ारियत के माद्यम से बहुत कुछ कह डाला है |<BR/>लोगों मे कहने लायक रचना है |<BR/>सुंदर रचना है |<BR/><BR/>बहुत बहुत बधाई |<BR/><BR/>अवनीश तिवारीअवनीश एस तिवारीhttps://www.blogger.com/profile/04257283439345933517noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-30371899.post-1547683355930169652008-02-05T10:31:00.000+05:302008-02-05T10:31:00.000+05:30इसके अलावा हमारे यहां प्यार भी बिकता हैइसे खरीदने ...इसके अलावा हमारे यहां प्यार भी बिकता है<BR/>इसे खरीदने और बेचने वाले में यह बेशुमार दिखता है<BR/>हमारे यहां का प्यार ज्यादा नहीं टिक सकता है<BR/>इसका फायदा यह है कि<BR/>इंसान कम समय में ज्यादा स्वाद चख सकता है<BR/>इसे कहते हैं, इंसटेंट प्यार<BR/>यानि एक छोड़िए और दूसरा तैयार<BR/>आज कल इसी प्रकार के प्यार की डिमांड है,<BR/>घबराइये नहीं इसे बेचने में हमारी कमांड है।<BR/>'पंकज रामेन्दु मानव जी आपकी कविता 'बाज़ार' की ये पंक्तीयाँ जो प्यार के खरीद फ्रोक्त का वर्णन करती हैं बहुत अच्छी लगी" आपको दुसरे स्थान के उपलब्धी पर बहुत बहुत बधाई "seema guptahttps://www.blogger.com/profile/02590396195009950310noreply@blogger.com