हर पल देखते नयन मेरे, इक नया स्वप्न
और मिटा देते उसको स्वंय, मन ही मन
शुष्क कोष्ठों में निहित
अस्फ़ुटित, निश्चेत सा
घुटता धरा की कोख में
एक जीवन जी रहा
रितु आगमन की चाह में
जब तनिक सी नमी से
बीज यह प्राण प्रतिष्ठा पायेगा
नव जीवन की किरण बन
कोमल कौंपल के रूप में
प्रकट हो धरा पर आयेगा
हर पल देखते नयन मेरे, इक नया स्वप्न
और मिटा देते उसको स्वंय, मन ही मन
समाप्त होती नहीं यहीं पर
अनुतरित प्रश्नों की झडी
जाने कितनी बाधायें हों
प्रकाशित सतह पर खडी
क्या हो यदि अवतरण हुआ
आंचल में किसी कंटीली झाड के
जो दे चुभन ही चुभन बदले में
उस आपेक्षित छाया और आड के
इससे चिरकाल निंद्रा का स्वाद ही भला
जीवन पाकर काहे, जीवन से जाऊं छला
हर पल देखते नयन मेरे, इक नया स्वप्न
और मिटा देते उसको स्वंय, मन ही मन
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
मोहिन्देर्जी
स्वप्न देखना बहुत अच होता है यही जीवन को नई प्रेरणा देता है .
शुष्क कोष्ठों में निहित
अस्फ़ुटित, निश्चेत सा
घुटता धरा की कोख में
एक जीवन जी रहा
रितु आगमन की चाह में
जब तनिक सी नमी से
बधाई
दोनों छंद गहरे है |
बधाई
अवनीश तिवारी
हर पल देखते नयन मेरे, इक नया स्वप्न
और मिटा देते उसको स्वंय, मन ही मन
"बधाई" atee sunder
नव जीवन की किरण बन
कोमल कौंपल के रूप में
प्रकट हो धरा पर आयेगा
बहुत सुंदर मोहिंदर जी सपने हैं तो उनको जीने का भी दिल करता है !!
बहुत बढ़िया मोहिंदर जी ,सपने मन बुनता है,खुद ही मिटाता है
और एक नया सपना पाने के लिए.बहुत सुंदर कविता बधाई.
इससे चिरकाल निंद्रा का स्वाद ही भला
जीवन पाकर काहे, जीवन से जाऊं छला
क्या बात है। अति सुंदर।
हर पल देखते नयन मेरे, इक नया स्वप्न
और मिटा देते उसको स्वंय, मन ही मन
बहुत सुंदर मोहिन्दर जी। बहुत बधाई।
कुमुद।
mohinder ji kavita bahut sunder par jo chitr aapne diya hai, usse kuch sampark samjha nahi payaa
सारथी जी,
चित्र में दिखाया गया हिरण का छौना वह कौंपल है जो अभी अभी अंकुरित हुई है और बाघ वह कंटीली झाड जो उस छौने का जीवन हर लेगी....
हर कौंपल एक हरा भरा पेड बने.. यह जरूरी नहीं.. इस कविता और इस चित्र का यही आशय है
लगता है जैसे कवि कमजोर कथ्य को भारी-भरकम भाषा से ढकना चाहता है.
सुंदर प्रस्तुति मोहिंदर जी.
हर पल देखते नयन मेरे, इक नया स्वप्न
और मिटा देते उसको स्वंय, मन ही मन
बहुत सुंदर....
मोहिन्दर जी।
बधाई ।
मैं अवनीश जी से सहमत हूँ।
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