हिन्द-युग्म फरवरी 2007 से हर महीने एक ही विषय या चित्र पर सामूहिक कविता लेखन का आयोजन करता आया है। अगस्त 2009 के बाद इसका कोई अंक प्रकाशित नहीं हो पाया। इसके संपादक छुट्टी पर हैं। नये साल के अवसर पर जब हमारे पास कई कविताएँ आईं तो हमने सोचा कि काव्य-पल्लवन का इस वर्ष का अंतिम अंक 'नया साल' को ही केन्द्रित किया जाय। वैसे हमारे संग्रहालय में नव वर्ष पर बहुत सी कविताएँ उपलब्ध हैं। फिर भी नव वर्ष के लिए आई हर कविता से गुजरते हुए हमें लगा कि हर कवि ने नये वर्ष और गुजर चुके वर्षों को अलग-अलग तरीके से देखा है और कहीं न कहीं ये सारी पगडंडिया उस मुख्यमार्ग में मिलती हैं जो मानवता, संवेदनशीलता और बेहतरी की तरफ जाती है।
पिछले वर्ष युवा द्विजेन्द्र द्विज की 'नए साल में' शीर्षक से प्रकाशित ग़ज़ल के कुछ शे'र देखें-
ले उड़े इस जहाँ से धुआँ और घुटन
इक हवा ज़ाफ़रानी नये साल में
बह न पाए फिर इन्सानियत का लहू
हो यही मेहरबानी नये साल में
अब के हर एक भूखे को रोटी मिले
और प्यासे को पानी नये साल में
हम आज से पहले नव वर्ष से संबंधित हिन्द-युग्म पर प्रकाशित प्रत्यके रचना का लिंक प्रकाशित कर रहे हैं ताकि आप सभी कविताओं का आनंद ले सकें-
- नयी दिशा,नयी उड़ान (महक)
- नव वर्ष मंगलमय हो (मोहिन्दर कुमार)
- स्वागत है नव वर्ष तुम्हारा (प्रो॰ सी॰ बी॰ श्रीवास्तव 'विदग्ध')
- नव वर्ष में (संजीव कुमार गोयल "सत्य")
- स्वागत है (शोभा महेन्द्रू)
- चलो नये साल में प्रवेश करें (विपिन चौधरी)
- नववर्ष (सतीश वाघमारे)
- स्वागत हे नव वर्ष (श्रीकांत मिश्र 'कांत')
- नये साल में (द्विजेन्द्र द्विज)
- मोबाइल भूकम्प (भूपेन्द्र राघव)
- नव वर्ष (विनय के॰ जोशी)
- नया साल (अभिषेक पाटनी)
- गया और नया साल (पंकज तिवारी)
- नया साल (रंजना सिंह)
- नूतन वर्ष (राजीव रंजन प्रसाद)
- देखो पुराने ये क्लैंडर (श्याम सखा 'श्याम')
- नया वक़्त (स्मिता पाण्डेय)
काव्य-पल्लवन सामूहिक कविता-लेखन (विशेषांक)
विषय - नया वर्ष
अंक - उनतीस
माह - दिसम्बर 2010
इस बार के प्रतिभागी कवि
। अम्बरीष श्रीवास्तव । सरस्वती प्रसाद । रश्मि प्रभा । मुहम्मद अहसन । सतपाल ख़याल । अनिता निहालानी । गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ । डॉ. कमल किशोर सिंह ।
अपने विचार दें
ज्यों वृक्षों की डालियाँ, कोपल जनैं नवीन |
आये ये नव वर्ष त्यों , जैसे मेघ कुलीन ||
उजियारा दीखे वहाँ, जहाँ जहाँ तक दृष्टि |
सरस वृष्टि होती रहें, हरी भरी हो सृष्टि ||
सपने पूरे हों सभी, मन में हो उत्साह |
अलंकार रस छंद का, अनुपम रहें प्रवाह ||
अभियंत्रण साहित्य संग, सबल होय तकनीक |
मूल्य ह्रास अब तो रुके, छोड़ें अब हम लीक ||
गुरुजन गुरुतर ज्ञान दें, शिष्य गहें भरपूर |
सरस्वती की हो कृपा, लक्ष्य रहें ना दूर ||
सबको सब सम्मान दें, जन जन में हो प्यार |
मातु पिता से सब करें, सादर नेह दुलार ||
बड़े बड़े सब काज हों, फूले फले प्रदेश |
दुनिया के रंगमंच पर, आये भारत देश ||
कार्य सफल होवें सभी, आये ऐसी शक्ति |
शिक्षित सारे हों यहाँ, मुखरित हो अभिव्यक्ति ||
बैर भाव सब दूर हों, आतंकी हों नष्ट |
शांति सुधा हो विश्व में , दूर रहें सब कष्ट ||
प्रेम सुधा रस से भरे, राजतन्त्र की नीति |
दुःख से सब जन दूर हों, सुख की हो अनुभूति ||
सुरभित होवें जन सभी, अपनी ये आवाज़ |
स्वागत है नव वर्ष का, नित नव होवें काज ||
अंत में सभी के लिए संदेश...........
अनुपम आये वर्ष ये, अम्बरीष की आस ||
अब सब कुछ है आप पर, मिलकर करें प्रयास ||
--अम्बरीष श्रीवास्तव
कल रात
बीते वर्ष ने
धीरे से आगे बढ़कर
समय की दीवार से
अपनी 'नेमप्लेट' खुद ही उतार ली !
शीत में ठिठुरते वृक्षों ने
रुंधे गले से कहा -
अलविदा !
मन की ऐश ट्रे सामने रखकर
हमने चिंताओं की राख झाड़ दी है
मस्तिष्क के रोशनदान से
स्मृतियों की हँसी कौंध गई है
उमीदों की घाटी पर
नया सूरज चमका है
किरणें विश्वास का गीत गा रही हैं
हमारी कामना है -
अरुणिम निर्माल्य तुम्हारा हो !
--सरस्वती प्रसाद
नए साल की नज्में
शुभकामनाओं के मलयानिल से
आरत्रिका की तरह आई हैं
हर किरणों में स्नेहिल दुआएं -
तुम्हारे लिए !
नया साल
तुम्हें तुम्हारी पहचान दे
पहचान को सलामत रखे
आतंक के साए को दूर करे
रग- रग में विश्वास भर जाये
खूबसूरत सपने
हकीकत में ढल जाएँ
जो पंछी अपने बसेरे से भटक गए हैं
वे लौट आयें
कहीं कोई द्वेष की चिंगारी ना रहे
ठंडी हवाएँ उन्हें शांत कर जाएँ
मुस्कानों की सौगातों से
सबकी झोली भर जाये............
आओ मिलकर कहें -
'आमीन'...
--रश्मि प्रभा
हरी धरती
साफ़ पानी
महकती हवा
गुनगुनाती चांदनी
मुस्कुराती धूप
बेशोर बस्ती
खुशदिल और खुशनुमा चेहरे ;
आसमां वाले !
तू अगर दे दे
तो
ये खुशियाँ बहुत हैं
इस नए साल में...............
--मुहम्मद अहसन
वक़्त ने फिर पन्ना पलटा है
अफ़साने में आगे क्या है?
घर में हाल बजुर्गों का अब
पीतल के वरतन जैसा है
कोहरे में लिपटी है बस्ती
सूरज भी जुगनू लगता है
जन्मों-जन्मों से पागल दिल
किस बिछुड़े को ढूँढ रहा है?
जो मांगो वो कब मिलता है
अबके हमने दुख मांगा है
रोके से ये कब रुकता है
वक़्त का पहिया घूम रहा है
आज "ख़याल" आया फिर उसका
मन माज़ी में डूब गया है
हमने साल नया अब घर की
दीवारों पर टांग दिया है
--सतपाल ख़याल
नव-शिशु सा कोमल नव-कलि सा, यह नव-गीतिका सा श्यामल
मधुर रागिनी सा कानों को, सुख संदेसे देता प्रतिपल।
संघर्ष लिये कुछ स्वप्न नए, नव चुनौतियाँ कुछ आशाएं
लो फिर आया है साल नया, कुछ नयी रचाने गाथाएं।
जीवन हर क्षण नया हो रहा, काल न जाने कहाँ खो रहा
लाखों बरस समाये भीतर, सृष्टिकर्ता नया बो रहा।
नए बरस का अर्थ यही है, नया नया यह जग हो जाये
पीड़ा जिसने दी हो अब तक, अपना वह हर मन खो जाये।
एक नया मौका जीने का, फटे हुए दामन सीने का
एक बार खुल कर हँसने का, झटक पुराना नव चुनने का।
अब तक जो पाया सो पाया, नया साल कुछ देने आया
हिम्मत से जो हाथ बढाए, हर भय जिसने दूर भगाया।
तोड़ के सारे झूठे बंधन, छोड़ के मन के सब अवगुंठन
भरे पुलक उर में नयनों में, उत्सुक हो करे अभिनन्दन।
सृजन करे आनंद उगाए, गहराई से मोती लाए
हँसी से सींचे फसल प्रेम की, पलकों से खुशियाँ बिखराए।
समझ इशारा पल-पल जी ले, नित नूतन आनंद को पी ले
सत्यम, शिवम, सुन्दरम के हित, सजा के धरती अम्बर छू ले।
--अनिता निहालानी
आने वाला कल, ढेरों सौग़ात लिए आये.
सुख, समृद्धि, वैभव, अमन की बात लिए आये.
प्रगति पथ पर चल अडिग, स्थापित होगा हर कर्म.
संघर्ष कर कैसा भी हो वक्त, क्यूं न झंझावात लिए आये.
आने वाला कल, ढेरों सौग़ात लिए आये.
धरा भी अडिग, अविचल सूर्य, चंद्र अटल.
प्रदूषित पर्यावरण है, फिर भी प्रकृति है निश्छल.
निसर्ग के कण कण में हे, विकास का संकल्प,
एक मनुष्य ही, ढूंढता रहता है, बस विकल्प.
संकल्प की, विकल्प की, संभावना अगाध लाये.
आने वाला कल ढेरों सौग़ात लिए आये.
बन तू चक्षुश्रुवा, न बन तू, विष वमनकारी.
चक्रधारी सा बन, न बन, कुचक्री षड्यंत्रकारी.
चंचल न बन, तू उदधि सा, न तूफ़ान सा वेगवान्,
धर धरा सा धैर्य, धैर्य की प्रतिमान है ज्यूं नारी.
नव उर्जा लिए, नव वर्ष, नव प्रभात लिए आये.
आने वाला कल ढेरों सौग़ात लिए आये.
युवा शक्ति की, बेलगाम दौड़ रूके.
भ्रष्टाचार में डूबे हुओं की, अंधी दौड़ रूके.
घर फोड़ संस्कारों की, बाधा दौड़ रूके.
राजनीतिक स्वार्थ की भी, जोड़-तोड़ रूके.
रामराज्य न सही, स्वराज्य लिए आये.
आने वाला कल, ढेरों सौग़ात लिए आये.
बंद हो आरक्षण की, बंदर बांट नीति.
जाति भेद-भाव की, यह है नई कुरीति.
न बाड़ खेत खाये, न घर का भेदी लंका ढाये,
सम़ृद्ध हो समाज, सभ्यता ओर संस्कृति .
द्वेष वैर ख़त्म हों, सौहार्द लिये आये.
आने वाला कल, ढेरों सौग़ात लिए आये.
विज्ञान हो प्रोन्नत, प्रकृति प्रदूषण छंटे हर हाल.
आतंकवाद खत्म हो, बस शांति हो बहाल.
दिग्विजय के मार्ग में, अवरोध हो हर ख़त्म,
दिमाग़ में बस देश की, उन्नति ही हो सवाल.
बढ़-चढ़ के ले हिस्सा, आगे हर सम्भाग, प्रान्त आये.
आने वाला कल, ढेरों सौग़ात लिये आये.
संघर्ष से बच, कुमार्ग पे चल के, जीना भी कोई जीना.
घर, समाज, देश से कट के, जीना भी कोई जीना.
संघर्ष भी करना तो, इस डगर पे ही क्यों ‘आकुल’,
अपनों को खो के, ग़र्दिशों में, जीना भी कोई जीना.
तेरा बढ़े इक हाथ, हज़ार हाथ लिये आये.
आने वाला कल, ढेरों सौग़ात लिये आये.
--गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’
कोपलें कुछ नई निकालें ,
पुष्पित फलित हर डाल हो ..
नव नीड़ का निर्माण हो ,
उजडों का भी उद्धार हो .
कोई न हो बिकलांग बिकृत ,
न निर्वस्त् ,बेघर बार हो ,
दैविक न भौतिक क्लेश हो ,
सर्वत्र सुख संचार हो .
नव दृष्टि हो नव योजना
सपने सभी साकार हों ,
द्वेष दुनिया का मिटे ,
नित , प्रेम का प्रसार हो .
नव वर्ष हो उत्कर्षमय,
सब हर्षमय संसार हो .
आरोग्य आजीवन रहो
जग में जहां तुम यार हो .
--कमल किशोर सिंह
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
नव आगुंतक " नव वर्ष २०१० "के पावन महापर्व पर सब जगतवासियों को हार्दिक मंगल कामनाएँ प्रेषित कर रही हूँ . सब को नव ऊर्जा ,नव प्रेरणा से प्रेरित करे .
सारी कविताएँ नहीं पढ़ पाई हूँ .उत्कृष्ट कविताएँ लगी .मेरे मनोभाव-
नववर्ष २०१०
नववर्ष पर लग रहा थोड़ा ' चन्द्र ग्रहण '
प्रतीक है जीवन के संघर्षों का करें हरण।
नव ऊर्जा नव विश्वास का करें उदय ,
टूटे रिश्तों को जोड़े फिर से ह्र्दय ।
नव- नव मन कर बनाये नव मन ,
स्वस्थ -सबल रहेगा फिर मन -तन ।
द्वेष -भेद भाव, घृणा का करें त्याग ,
पिछली बुराइयों का करें मन परित्याग ।
करें संकल्प हम सब जन आज ,
प्रेम -मैत्री -शांति से करें अनुराग ।
संस्कारित करे ' मंजू ' मन की वेदी ,
न होगा जग में मानव का मानव वैरी .
नववर्ष २०१० की कविताएँ पढ़कर मन आनंद से भर गया.
एक से बढ़कर एक...
किसकी तारीफ करूँ किसे छोड़ दूँ !
अम्बरीश श्रीवास्तव जी की मंगल कामनाओं से लदी दोहे की लड़ियाँ..
--सरस्वती प्रसाद जी की अतुकांत कविता की महत्ता को प्रतिबिंबित करते नवप्रयोग से भरे आकर्षक बिंब को,
--रश्मि प्रभा जी की शुभकामनाओं को,
--मुहम्मद अहसन जी की नायाब खुशियों को, आह.. काश कि ऐसा होता!
--सतपाल ख़याल जी के इस सत्य को बार-बार नमन...
घर में हाल बजुर्गों का अब
पीतल के वरतन जैसा है
किस किस की तारीफ करूँ!
--अनिता निहालानी --गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’
व
--कमल किशोर सिंह जी
सभी ने खूबसूरत अदांज में नववर्ष के स्वागत में अपनी कलम बेहद खूबसूरती से चलाई है
-सभी को नववर्ष की ढेर सारी मंगल कामनाएँ।
कविता तो एक एक कर के पढ़ेंगे..सर्वप्रथम...आप सभी को नववर्ष की हार्दिक बधाई!!! नया साल मंगलमय हो!!
कमलजी, प्रभाजी, अनिलजी, अहसानजी, श्रीवास्तवजी, प्रसादजी, ख़याल साहब सब को मेरा नववर्ष अभिनंनदन. खयालजी, नये वर्ष में यह क्या ? सकारात्मक सोचें, ज़रूर अंधेरे छंटेंगे, नई राह मिलेगी. नई युवापीढ़ी को नई दिशा दें. ग्रहण को भी इस वर्ष ने हटा दिया है, अब. और भी व्यवधान, अवरोध, सब हटेंगे, नववर्ष ढेरों सौग़ात लिए आएगा. देखियेगा.
व्यस्तता और समयाभाव के कारण कवितायेँ फिर पढूंगा. नव वर्ष २०१० सभी को मंगलमय हो.
वाह !! सभी कवितायें खूबसूरत और उर्जावान हैं जिनमें हमारे सभी कविगणों की उर्जा दिखलायी पढ रही है....आप सभी कवियों,पाठ्कों एवं हिन्दयुग्म को नये वर्ष की शुभकाम्नाएं!
"तोड़ के सारे झूठे बंधन, छोड़ के मन के सब अवगुंठन
भरे पुलक उर में नयनों में, उत्सुक हो करे अभिनन्दन।"
सभी कवितायेँ समसामयिक, संदेशप्रद और सार्थक, कवियों और कवित्रियों को बधाई और फिर से नव वर्ष २०१० की मंगल कामना.
आप सभी आदरणीय महानुभावों को प्रतिक्रियाओं हेतु धन्यवाद एवं नव वर्ष की शुभकामनायें !
अपने इस नववर्ष में, हम सब आयें संग |
बैर द्वेष दुर्भाव से, मिलकर छेड़ें जंग ||
सादर , अम्बरीष श्रीवास्तव
kavitaen sabhi achchi hain, bas aaj jo kavita naye muhavare gadhne ki koshish kar rahi hai, us prayaas ki kami hai, iska karan hum kavitaen to likh rahe hain kintu unko parampara aur virasat se link nahin kar pa rahe hain, zyadatar kavi chhand ke prati aasakt hain aur jis karan kavitaen apni bhaobhumi banane me kamzor ho jati hain, hindyugm ek adbhut prayaas hai
(1) 31 december hai aaj,es sal aur mahine ka antim sanjh,
ab koe nahi bcha sakta aadhi rat ke bad,
antim sidh hogi yah rat utkarsh ka,
har december ki 31 tarikh gla ghont deti hai versh ka------
(2) abhi kuchh hi din bite lagta hai kal ki hi bat hai,
kal naye sal ka din hoga ,aaj purane sal ki rat hai----
(3) shikchak divas bita vijaydashmi manae,
bal divas ke bitate hi nayee sal ki sudhi aayee,
aur utsav ka ek aur maoka aa gya,
bite lamaho par badl jaisa chha gya,
31 st dec ki rounak man me ettha la gya,
partiyan sajegi,mauj masti ke sang nya sal aa gya,
bhul jayenge hum mumbay ke shahidon ko,
aatankvad ke darindon ko,,
garibi,lachari ke gurbaton ka kise parvah,
sadgi bhare safedposhon ka khumar chadhega karindon ko,
naye naye waydon ki hogi aakashtalabi,
purane sal ki kartut par nya sal sharma gya,
nya sal aa gya
--SUDHIR SINGH UJALA,NEW DELHI-110020, EMAL-sudhisujala12@gmail.com
बहुत ही सुन्दर कविता
नये वर्ष पर वैर भाव मिटाने का,
प्रेम मित्रता सद्भावना मन में लाने। धन्यवाद नमस्ते मंजू जी।
Iike this
नया साल एक नई शुरूआत को दर्शाता है और हमेशा आगे बढ़ने की सीख देता है। पुराने साल में हमने जो भी किया, सीखा, सफल या असफल हुए उससे सीख लेकर, एक नई उम्मीद के साथ आगे बढ़ना चाहिए। जिस प्रकार हम पुराने साल के समाप्त होने पर दुखी नहीं होते बल्कि नए साल का स्वागत बड़े उत्साह और खुशी के साथ करते हैं, उसी तरह जीवन में भी बीते हुए समय को लेकर हमें दुखी नहीं होना चाहिए। जो बीत गया उसके बारे में सोचने की अपेक्षा आने वाले अवसरों का स्वागत करें और उनके जरिए जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश करें।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)