सुबह सुबह
नौ बजे
सजे धजे
बस स्टेण्ड पर
आ खड़े..
ब-मुश्किल
तीन छोड़..
चौथी में चढ़े
हल्ला गुल्ला
धक्का मुक्की
खींचा तानी..
मेरे जैसे
कुछ और
मचा शोर..
बस नही आती
अगर चलानी
हमें उतार दे
बड़ी मेहरबानी..
ड्राइवर चिल्लाया
बस तो वहीं खड़ी है
जरा भी नहीं बढ़ी है..
आश्चर्य !!!
खड़ी बस
और ये हाल
बेटा खुद को सम्भाल..
शायद भूकम्प आया है
तभी एक
आवाज आयी
सेठ जी चिल्लाये..
अबे.. अब क्या ???
सांस भी ना लूँ भाई..
तब समझ आया
नया दिन है
नया साल है
मगर नया कुछ् नहीं
वही बुरा हाल हैं..
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
"ha ha ha ha really very nice one.i wanna appreciate you for having wonderful sense of humour"
Regards
नए साल की सुभ्कमानाये |
अच्छी रचना
-- अवनीश
वाह मज़ा आगया पढ़कर,और हँसी के फवारे भी छूटे,बधाई ,महक .
राघव जी आप की कविता में हास्य-व्यंग्य का पुट है.
लेकिन आपने इन पंक्तियों के मध्यम से-'
बस तो वहीं खड़ी है
जरा भी नहीं बढ़ी है..'
एक गंभीर बात सहजता से कह दी है-एक अच्छी कविता है - बहुत -बहुत बधाई.
सच में आज भी बहुत सी समस्याएं [समाज /देश में] जस की तस हैं.
सही कहा आपने--
''मगर नया कुछ् नहीं
वही बुरा हाल हैं..''
शायद नया साल आना सिर्फ़ कैलेंडर के पन्ने पलटना और तारीखें बदलना भर रह गया है.
या फ़िर देर रात तक जगना और जश्न मनाने का और एक बहाना?
वास्तव में जिस दिन साक्षरता १००% होगी और सकारात्मक परिवर्तन की शुरुआत होगी उस दिन नया साल शुरू होगा.
:) बहुत खूब राघव जी ...नए साल की बधाई आपको .,मजेदार कविता है !!
हा हा हा हा.............
मजा आ गया साहब
कमाल लिखा है, पुरा गुदगुदा दिया आपने तो, बहुत अच्छे
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"
राघव जी,
मुझे इस रचना में हास्य से ज्यादा गंभीरता का पुट लगा। सच का बखान करती इस हास्य-व्यंग्य के लिए आपको बहुत-बहुत धन्यवाद।
भूपेन जी इस बार आपने हास्य हास्य में भी बहुत कुछ कह दिया
राघव जी,
हास्य के माध्यम से सटीक व्यंग्य के लिये बधाई
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 02 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
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