सांझ
उदास है
मैं बेख्याली से
कुर्सी में धंसा हूं
जाने इस, उस
किस जंजाल में फंसा हूं
मेरा
छोटा बेटा पुलकित
ड्राइंग की कापी लिए
आता है
कहता है
देखो पापा
रंग भरा है
मैंने खुद भरा है
लाल नहीं हरा है
उसकी मासू आवाज से
उदास शाम
हरी हो जाती है
मेरी उलझन सब्जपरी हो जाती है
मैं बीवी की तरफ देखता हूं
वह मुस्कुराती है
उसके बाएं गाल पर पड़ा गड~ढा
झील बन जाता है
और उसमें खुशी के
कमल खिल आते हैं
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6 कविताप्रेमियों का कहना है :
शुरू में लगा कुछ दमदार रचना है लेकिन अंत आते आते सामान्य सी लगी |
फिर भी मासूम क्याल का असर अच्छी तरह से पेश किया है |
नव वर्ष शुभ हो |
अवनीश
Ghar-Pariwar ke bich se nikali hui ek sundar abubhav..Happy New Year Shyam ji!!
परिवार के बीच खुशियां बटोरती एक अच्छी अभिव्यक्ति...शाम जी बधाई! आप सभी को नये साल की शुभ कामनायें!हिन्दयुग्म को भी बहुत-बहुत बधाई और इस्लिए भी क्योंकि हिन्दयुग्म का लोगो मुखपृष्ठ भी नये साल की अगवानी करता हुआ बडा ही खूबसूरत लग रहा है...सुंदर वादियों की ठंड्क यहां तक पहुच रही है!
रोज मर्रा की जिंदगी से निकली एक खुशनुमा अभिव्यक्ति.
हिन्दयुग्म, रचनाकारों और पाठकों आदि सभी को नव वर्ष मंगलमय हो.
परिवार की छोती छोती खुशियों को सुन्दर शब्द दिये हैं । श्याम सखा जी को बधाई
nice snapshot from the daily life.Technically shuru mein thoda khatkti si hai,par phir man ko jam hi jaati hai..beautiful composition.
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