फटाफट (25 नई पोस्ट):

Wednesday, December 30, 2009

मासूम ख्याल


सांझ
उदास है
मैं बेख्याली से
कुर्सी में धंसा हूं
जाने इस, उस
किस जंजाल में फंसा हूं
मेरा
छोटा बेटा पुलकित
ड्राइंग की कापी लिए
आता है
कहता है
देखो पापा
रंग भरा है
मैंने खुद भरा है
लाल नहीं हरा है
उसकी मासू आवाज से
उदास शाम
हरी हो जाती है
मेरी उलझन सब्जपरी हो जाती है
मैं बीवी की तरफ देखता हूं
वह मुस्कुराती है
उसके बाएं गाल पर पड़ा गड~ढा
झील बन जाता है
और उसमें खुशी के
कमल खिल आते हैं

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)

6 कविताप्रेमियों का कहना है :

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

शुरू में लगा कुछ दमदार रचना है लेकिन अंत आते आते सामान्य सी लगी |
फिर भी मासूम क्याल का असर अच्छी तरह से पेश किया है |
नव वर्ष शुभ हो |

अवनीश

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

Ghar-Pariwar ke bich se nikali hui ek sundar abubhav..Happy New Year Shyam ji!!

Anonymous का कहना है कि -

परिवार के बीच खुशियां बटोरती एक अच्छी अभिव्यक्ति...शाम जी बधाई! आप सभी को नये साल की शुभ कामनायें!हिन्दयुग्म को भी बहुत-बहुत बधाई और इस्लिए भी क्योंकि हिन्दयुग्म का लोगो मुखपृष्ठ भी नये साल की अगवानी करता हुआ बडा ही खूबसूरत लग रहा है...सुंदर वादियों की ठंड्क यहां तक पहुच रही है!

Anonymous का कहना है कि -

रोज मर्रा की जिंदगी से निकली एक खुशनुमा अभिव्यक्ति.
हिन्दयुग्म, रचनाकारों और पाठकों आदि सभी को नव वर्ष मंगलमय हो.

निर्मला कपिला का कहना है कि -

परिवार की छोती छोती खुशियों को सुन्दर शब्द दिये हैं । श्याम सखा जी को बधाई

Unknown का कहना है कि -

nice snapshot from the daily life.Technically shuru mein thoda khatkti si hai,par phir man ko jam hi jaati hai..beautiful composition.

आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)