ख़ुद को भूलने की हद तक
नशे में डूबे लोगों ने
स्वागत किया
नए साल का !
बेलग़ाम ज़िन्दगी को
और भूलते हुए
याद रहा
तो बस
आख़िरी रात का
वह आख़िरी पल
जिसके बाद
सिर्फ ‘कलेण्डर’ नया हुआ
और ख़ुमार उतरने के बाद
सबों की ज़िन्दगी
वही रही
जिसको भूल जाने के लिए
उन्होंने किए थे
सारे यत्न !
नए साल में
काश .... हो पाती
नई बात !
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
नए साल पर ऐसा संजीदा लिखने की कोशिश में साल भर ऐसा ही लिखेंगे आप....ये अच्छे संकेत हैं...
नव वर्ष की बधाई...काम कैसा चल रहा है....
निखिल
अभिषेक जी सचमुच सिर्फ़ कैलेंडर बदल जाते हैं समस्या तो कुंडली मार कर बैठ जाती है आप की कविता सार्थक है ...बधाई
सुनीता यादव
आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं अभिषेक जी . समय यूं ही बीत रहा है . एक अच्छी कविता के लिए बधाई
बदलते पन्नों की तरह बदल जाते हैं साल,और हम हर बार इसी उम्मीद में रहते हैं कि कुछ नया होगा. आपने सही कहा लोग नशे में इसी बात को भुलाना चाहते हैं मगर खुमार उतरते ही फ़िर सब वही हो जाता है.मगर,कोई बात नहीं--इस साल के आखिरी पलों में फ़िर से कोई नया वादा करें ख़ुद से--
उम्मीद पर दुनिया कायम है.आने वाला साल उम्मीदों पर खरा उतरे...ऐसी दुआ है.
अभिषेक जी चुनिंदा शब्दों में आपने अपनी बात कविता में कह दी है.बधाई...
बहुत खूब पाटनी जी,बहुत ही संजीदा अंदाज में आपने नए साल के विषय में बताया
बहुत बहुत साधुवाद
नव वर्ष की शुभकामनाओं सहित
आलोक सिंह "साहिल"
अभिषेक जी,
आपकी चिंता लाजिमी है और रचना बेहतरीन:-
सिर्फ ‘कलेण्डर’ नया हुआ
और ख़ुमार उतरने के बाद
सबों की ज़िन्दगी
वही रही
नए साल में
काश .... हो पाती
नई बात !
*** राजीव रंजन प्रसाद
जरूर होगी अभिषेक जी नयी बात भी, इस नए साल के गर्भ में जाने क्या क्या है छिपा, स्वागत कीजिए नयी उर्जा के साथ,
अभिषेक पाटनी जी , बातें तो आपने सौ फीसदी सच्ची कही है, लेकिन क्या है कि आज के भागदौड़ की जिंदगी में सबको खुश होने का एक बहाना चाहिए। नववर्ष के बहाने हीं हम खुश हो लेते हैं, लेकिन मूल समस्या का समाधान होना भी जरूरी है। ऎसे हीं लिखते रहें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
नया साल आ गया . दरअसल ग्रेगेरियन कैलेण्डर के नये वर्ष के साथ प्रकृति के सीधे कोई परिवर्तन नहीं जुडे हैं , सिवाय इसके कि एक सप्ताह पहले से दिन बडे होना प्रारंभ हो जाते हैं , और दो सप्ताह बाद सूर्य उत्रायन हो जाते हैं . अतः यह नव वर्ष केवल दीवार पर लगे कैलेण्दर का बदलाव मात्र है . अस्तु ! हर परिवर्तन जड़ता को तोड़ता है . नयी सोच को जन्म देता है , तो सबको पुनः नव वर्ष की बधाई.
विवेक रंजन श्रीवास्तव
vivekranjan.vinamra@gmail.com
bahut ache kavita hai....nai saal mein honi hi chaheye kuch nai baat.
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