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Monday, January 07, 2008

विपिन और सतीश का नया वर्ष


आज दो कविताएँ हमारे पास हैं, एक है कवयित्री विपिन चौधरी की 'चलो नये साल में प्रवेश करें' और दूसरी है सतीश वाघमरे की 'नववर्ष'। हिन्द-युग्म के पाठकों ने नव वर्ष पर कविताएँ भेजकर जिस तरह हमारा मनोबल बढ़ाया है। हम उसके लिए आभारी हैं।


चलो नये साल में प्रवेश करें

हमें हर वक्त कुछ नया चाहिये
तो नया साल क्या बुरा है
हम सभी नये साल की ओर लपकेगें
निचोड़ लेंगे उसका नयापन भी
भर देंगे उसमें वो ही उदासी, पीड़ा और वो
तमाम खामियाँ जो हमनें बीते बरस कमाई थी

हम पूरी तरह तैयार बैठे हैं
पुराने साल को इतिहास के सूखे खोल में बिढ़ाने के लिये
पर क्या हम आसानी से भुला पायेगे
उन तारिखों को जब हम फुट-फुट कर रोये थे
और कोई हमारे पास नहीं था
हम खुशियाँ बाँटना चाहते थे
पर हमारी खुशियाँ हमसे बातें करते-करते
बेहद अकेली पड़ गयी थीं

इस दुनियादारी के फैलते बाजार में हम
अपने को और कितना खरच कर पायेंगे
न जाने नये साल में हम
कितने दोस्तों को दुशमनों में
तबदील हुआ देखेंगे

तमाम आशा भरे विश्वास के साथ इस साल भी
कुछ चीजों के बदलने के आसार कम हैं
मसलन नेता अपना आचरण नहीं बदलेंगे
कई नये घोटालो की पोल खुलेगी

इस नये बरस में हम
एक बरस और पुराने पड़ जायेंगे
और अपने सुधरने का एक बार फिर
असफल प्रयास करेंगे

हो न हो नया साल उनका होगा
इस कोने से उस कोने को
हरा-भरा बनाने में लगे हैं जो,
यकीनन उनका होगा ये नया साल
जो हर चेहरे को
मुस्सकराहट का रंग देने में जुटे हैं

चलों एक बार फिर
कामनाओं की भारी पोटली लादे
नये साल की ओर रुख करें।

-सुश्री विपिन चौधरी



नववर्ष

समय की नदी के तट पर
चिंतन कर , एकांत में बैठकर
कर रहा था प्रतीक्षा,
नववर्ष की दहलीज पर।

सहसा, काल के प्रवाह से निकलकर
संम्मुख खडा हुआ गत वर्ष उभरकर।

और करने लगा मुझसे निवेदन
याद दिलाने, मेरे ही कुछ वचन।

'क्या हुआ उनका,
मेरी पूर्व संध्या पर।

जो किये थे तुमने वादे-
कुछ मुझ से, अन्य खुद से,
कई औरों से भी।

लिये थे कुछ निर्णय
कुछ मेरे, एकाध खुद के,
कई औरों के विषय में भी ?'

मैंने हँसकर कहा, " वादे, निर्णय, वचन ?
किस जमाने के गतवर्ष हो तुम !

दिल बहलाने का एक तरीका है,
हर नववर्ष से मेरा यही सलीका है

कई वर्षों की अपनी तपस्या है
तुमने इसे गंभीरता से लिया,
यह तुम्हारी अपनी समस्या है !"

उसने फिर पूछ ही डाला,

'यह जो तुम्हारे पास है थैला
उसमें आखिर है क्या भला ?'

मैंने कहा,

" वही, हर सालका मसाला,

नववर्ष के लिये नये निर्णय,
नये वचन, नयी माला ! "

---सतीश वाघमारे

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15 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

sushri vipin ji ki naye saal ki nayi potli,ur satish ji ke naye saal ke naye vachan ke saath do no kavitayen behad achhi lagi.
nav varsh ki shubkamnaosahit
mehek

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

दोनों रचनाएँ सुंदर है |
अवनीश तिवारी

शोभा का कहना है कि -

विपिन जी
बहुत अच्छा लिखा है .
हम पूरी तरह तैयार बैठे हैं
पुराने साल को इतिहास के सूखे खोल में बिढ़ाने के लिये
पर क्या हम आसानी से भुला पायेगे
उन तारिखों को जब हम फुट-फुट कर रोये थे
और कोई हमारे पास नहीं था
बधाई

शोभा का कहना है कि -

सतीश जी
आपने नए वर्ष मैं सुंदर रचना भेजी है
समय की नदी के तट पर
चिंतन कर , एकांत में बैठकर
कर रहा था प्रतीक्षा,
नववर्ष की दहलीज पर।

साधुवाद

Anonymous का कहना है कि -

sushri vipin जी, आपके kathy की क्या tarif करूँ. mindblowing अंदाज.
मस्त मस्त कविता
बधाई सहित
आलोक सिंह "साहिल"

Anonymous का कहना है कि -

सतीश जी आप्को पढ़ना अच्छा लगा.बहुत सही कहा आपने-
दिल बहलाने का एक तरीका है,
हर नववर्ष से मेरा यही सलीका है
बिल्कुल मेरे माफिक
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"

Sajeev का कहना है कि -

विपिन जी और सतीश को नववर्ष की बधाइयाँ,

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

दोनों रचनायें बहुत ही सटीक एवं गूढ़...
बहुत बहुत बधाई...

नव-वर्ष मंगलमय हो..

रंजू भाटिया का कहना है कि -

दोनों रचना बहुत ही सुंदर लगी ..नए साल की आपको बहुत बहुत बधाई !!

Alpana Verma का कहना है कि -

**विपिन जी,
''इस दुनियादारी के फैलते बाजार में हम
अपने को और कितना खरच कर पायेंगे''
क्या खूब लिखा है!बढिया!
अच्छी रचना है! बधाई!

***सतीश जी,
अच्छा प्रवाह है आप की कविता में.
जहाँ एक ओर कवि नए साल के वादों के लिए कहता है--
''दिल बहलाने का एक तरीका है,
हर नववर्ष से मेरा यही सलीका है''
लेकिन फ़िर उसी दिल बहलाने के तरीके को ''झोले' में लिए फ़िर रहा है.
" वही, हर सालका मसाला,
नववर्ष के लिये नये निर्णय,
नये वचन, नयी माला ! "
एक अलग रंग है.
कविता पसंद आयी.
शुभकामनाएं...

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

हम पूरी तरह तैयार बैठे हैं
पुराने साल को इतिहास के सूखे खोल में बिढ़ाने के लिये
पर क्या हम आसानी से भुला पायेगे
उन तारिखों को जब हम फुट-फुट कर रोये थे
और कोई हमारे पास नहीं था

चलों एक बार फिर
कामनाओं की भारी पोटली लादे
नये साल की ओर रुख करें।

विपिन जी ...सुंदर भाव लिए यह रचना ...बधाई
'यह जो तुम्हारे पास है थैला
उसमें आखिर है क्या भला ?'

मैंने कहा,

" वही, हर सालका मसाला,

नववर्ष के लिये नये निर्णय,
नये वचन, नयी माला ! "
अलग अंदाज में कही गई बात ....वाह ....क्या खूब !
सस्नेह
सुनीता यादव

Anonymous का कहना है कि -

"हम सभी नये साल की ओर लपकेगें
निचोड़ लेंगे उसका नयापन भी
भर देंगे उसमें वो ही उदासी, पीड़ा और वो
तमाम खामियाँ जो हमनें बीते बरस कमाई थी"

बहुत सुंदर रचना , विपिनजी. नववर्ष की शुभकामनाएं !

हिन्दयुग्म के सभी पाठक और कविमित्रोंको नववर्ष की बधाइयाँ !

मेरी रचनाको मिले आपके प्रेमसे मैं प्रोत्साहित हुआ हूँ, आपका धन्यवाद करना चाहूँगा.

सतीश वाघमारे

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

विपिन जी,

आपकी कविता की अंतिम पंक्तियाँ इसकी प्राण हैं-
चलों एक बार फिर
कामनाओं की भारी पोटली लादे
नये साल की ओर रुख करें।

सतीश जी,

आपकी कविता भी पसंद आई। इस प्रविष्टि के दोनों कवियों की कविताओं का मूल-स्वर एक ही है।

विभा रानी श्रीवास्तव का कहना है कि -

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 02 जनवरी 2016 को लिंक की जाएगी ....
http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

Dr. Raj Kumar Kochar का कहना है कि -

सुंदर
बहुत सुंदर और प्रेरक
सार्थक।

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