वह कुत्ता
मेरी आत्मा की आवाज़ लिये
रो रहा है !
मैंने भी भूख से
कितनी पूस की रातें
रोते गुजारी थी
पर...
वह मेरी लाचारी थी
मेरे पेट में आग तो थी
किन्तु हाथ छोटे थे
फिर मैंने समय की तान पर
अपने रूदन को ढाला
यक़ीं मानिये
वहाँ मेरी आत्मा नहीं थी
मेरे उस लयबद्ध रूदन को
लोगों ने सराहा-खरीदा-पूजा
मैं भी रोना छोड
अपनी भूख मिटाने लगा ।
हाय !
ये मेरी भूख
न जाने कैसे
हवस हो गई ?
मैं अब नहीं रोता
बिल्कुल नहीं
अब मेरी आत्मा रोती है
वैसे ही
जैसे वह कुत्ता
पूस की इस रात को
रो रहा है ।
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
abhishek ji atma ki rudan ko behad achho tarikese bhapa jana aur pesh kiya hai,badhai
mehek
मैं अब नहीं रोता
बिल्कुल नहीं
अब मेरी आत्मा रोती है
वैसे ही
जैसे वह कुत्ता
पूस की इस रात को
रो रहा है ।
-- उत्तम !!!
अवनीश
अभिषेक जी
बहुत अच्छी कविता लिखी है अपने. दिल की पीड़ा को बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी है.
वह कुत्ता
मेरी आत्मा की आवाज़ लिये
रो रहा है !
मैंने भी भूख से
कितनी पूस की रातें
रोते गुजारी थी
पर...
paatni जी बहुत ही acchhi प्रस्तुति. क्या खूब कहा-
न जाने कैसे
हवस हो गई ?
मैं अब नहीं रोता
बिल्कुल नहीं
अब मेरी आत्मा रोती है
आलोक सिंह "साहिल"
गहरी चोट है
हाय !
ये मेरी भूख
न जाने कैसे
हवस हो गई ?
अभिषेक जी,
बहुत ही सुन्दर शब्दमाला पिरोयी है आपने..
अंतर्मन की व्यथा बहुत ही मार्मिक तरीके से..
बहुत बहुत बधाई
अच्छी अभिव्यक्ति है.....
''मेरे उस लयबद्ध रूदन को
लोगों ने सराहा-खरीदा-पूजा''
और--
मैं अब नहीं रोता
बिल्कुल नहीं
अब मेरी आत्मा रोती है
-बहुत अच्छे!
'पूस की रात रुदन'!
कम शब्दों में बहुत कुछ कह रही है आप की कविता पाटनी जी.
और ऐसा कर पाना एक अच्छे कवि की निशानी है--बधाई..
पटनी जी,
सुन्दर भाव लिये कविता है...
जीवन में किसी भी वस्तु की कमी या अधिकता दुखदायी ही होती है.
वह मेरी लाचारी थी
मेरे पेट में आग तो थी
किन्तु हाथ छोटे थे
फिर मैंने समय की तान पर
अपने रूदन को ढाला
यक़ीं मानिये
वहाँ मेरी आत्मा नहीं थी
मेरे उस लयबद्ध रूदन को
लोगों ने सराहा-खरीदा-पूजा
मैं भी रोना छोड
अपनी भूख मिटाने लगा ।
अद्भुत आत्म प्रकाशन है ......आत्मिक पीडा की अभिव्यक्ति
सुनीता यादव
क्या कहूँ शब्द ही नही है मेरे पास...अद्भुत कविता है...बधाई...
आपकी कविताओं का क्राफ्ट बहुत अच्छा होता है।
Great poem. The style of writing is good.
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