नमस्कार,
हिंदयुग्म की शुरुआत हुए अब साल बीत गया है. इस दौरान हमने कई अनुभव बटोरे. गाँव-गाँव जाकर हमारे साथी लोगों को हिन्दी को तकनीक से जोड़ने की मुहिम के लिए प्रेरित करते रहे. हमने कुछ संस्थानों में कार्यशालाएं भी करायीं, जिसका सुफल हमें मिल भी रहा है. इसके अलावा कला की अन्य विधाओं को एक मंच पर लाने के प्रयास भी कारगर सिद्ध हुए. इस महीने साहित्य-जगत की चर्चित हस्ती उदय प्रकाश भी हमारे साथ हुए. उन्होंने हमारे प्रयासों की गहराई को समझा और हमें शुभकामनायें भी दीं. हिन्दयुग्म को प्राप्त हुआ उनका यह महत्वपूर्ण संदेश हमारे पाठकों के समक्ष प्रस्तुत हैं, ताकि वो भी समय की मांग और बाज़ार के प्रभाव के बीच हिन्दयुग्म के प्रयासों की सार्थकता को समझें और हमसे पूरी आस्था के साथ जुड़ें भी...
मैं हिन्दयुग्म के माध्यम से अपनी भाषा हिन्दी को संरक्षित करने, समृद्ध करने, नए समय और समाज के अनुरूप उसे ढालने, संशोधित-परिवर्द्धित करने, नई तकनीकी आवश्यकता के सन्दर्भ में उसे विकसित करने और प्रोन्नत करने के प्रयास में आप सबको ह्रदय से शुभकामनाएं देता हूँ। आपके इस प्रयास में मैं आपका भागीदार रहूंगा। जैसा हम सब जानते हैं, हिन्दी कहने के लिए भले ही राजभाषा बना दी गई हो और इसकी सेवा के नाम पर कुछ निश्चित विशिष्ट वर्गों-वर्णों ने अपने-अपने स्वार्थों की रोटी सेंकी हो और वे इस भाषा के नाम पर कमाई कर रहे हों लेकिन वास्तविकता यह है कि हिन्दी आज भी इस देश की जनता या "प्रजा" की भाषा है। यह जनभाषा है। इसे राजभाषा बनाकर संस्कृत या फारसी की तरह शासकीय कामकाज, राजकीय साहित्य और उच्चवर्गीय स्वार्थलिप्सा को लिए जिस तरह से अपनी जड़ों यानी करोड़ों जनता से विच्छिन्न कर दिया गया है, उसे हमें फिर से जोड़ना होगा। संसार की दूसरी सबसे बड़ी भाषा और इसका साहित्य मात्र कुछ राजनीतिक-व्यावसायिक वर्गों की रस्सी में जकड़ी हुई दुधारू गाय बन जाए, जबकि उसकी करोड़ों सन्ताने इस भाषा में रोज़गार, शिक्षा, ज्ञान और विज्ञान से भूखी, वंचित रह जायें, इस स्थिति को बदलने में "हिन्दयुग्म" जैसे असंख्य स्वायत्त और निजी प्रयास होने चाहिए। क्योंकि भूमंडलीकरण और विश्वव्यापी बाज़ार ने इस भाषा को अपने हितों और स्वार्थों को लिए कई तरह से बदलने, क्षत-विक्षत करने और इसे अपना उपनिवेश बनाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। हम हिन्दी में, इसकी लिपि और इसके शब्दकोष में नए बदलावों को विरोधी नहीं हैं, लेकिन हम इतने अबोध भी नहीं हैं कि अपनी भाषा पर होने वाले इन आघातों के बारे में अनभिज्ञ हों। कोई भी भाषा, उस भाषा का व्यवहार करने वाले मानव समुदाय की अस्मिता का एक सबसे प्रमुख संघटक होती है। संसार के कुछ भाषा-विज्ञानियों और समाजविदों ने तो भाषा को मनुष्य की "व्यावहारिक चेतना" तक माना है। कहने की ज़रूरत नहीं कि आज हमारी अस्मिता और हमारी चेतना दोनों पर कई प्रकार के दबाव और अतिक्रमण का संकट है।
मेरी अपनी ही एक कविता की पंक्ति है-"आज गुलाम बनने और गुलाम बनाने के खेल में बहुत बड़ा पूंजीनिवेश है". आप "हिन्दयुग्म" के माध्यम से इस संकल्प में आगे बढें, कामयाब हों।
नए वर्ष की बहुत-बहुत शुभकामनाएं....
उदय प्रकाश
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
उदय प्रकाश जी
अपने बहुत ही सार्थक संदेश दिया है. भारत देश के लोग इस बात को समझें तथा अपनी भाषा के विकास मैं योगदान देन यही कामना है. कवि भारतेंदु ने इसलिए कहा था
निज भाषा उन्नत्ति आहे सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को शूल
इस तरफ़ ध्यान आकर्षित करने के लिए नमन
हिन्दी भाषा यूं ही आगे बढे यही हम सब की भी कामना है ..आपने अपनी बात बहुत अच्छे से कही है उदय जी !!नए वर्ष की बहुत शुभकामनाएंआपको भी !!
निश्चित भाषा का प्रश्न देश के उन करोड़ों-करोड़ लोगों के वर्तमान और भविष्य से जुड़ा है, जिनके खून-पसीने पर हरामखोर गुलछर्रे उड़ा रहे हैं। इस संघर्ष-प्रवाह में हम भी आपके साथ।
मैं आदरणीय उदय जी की बात से सहमत हूँ.
और हिन्दी भाषा के सम्मान को बनाये रखने के हर प्रयास में हमारा सहयोग रहेगा.
इस दिशा में सभी प्रयासरत कार्यशालाओं को मेरी बहुत बहुत शुभकामनाएं.
बहुत ही सटीक बात, अपनी भाषा के उत्थान, विकास व समृद्धि के लिये सभी से सहयोग की आकांक्षा है..
आदरणीय उदय प्रकाश जी,
एक और एक ग्यारह होते हैं .. आप का साथ निश्चय ही.. हिन्दी और हिन्द-युग्म दोनों के लिये एक शुभ संकेत है
Dhanyavaad Uday Ji Aapke maargdarshan ke liye
va aapki sundar kavitaaoN
ke liye
उदय प्रकाश जी,
"आज गुलाम बनने और गुलाम बनाने के खेल में बहुत बड़ा पूंजीनिवेश है" आपके इस कथ्य से सहमति जताते हुए..आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।
*** राजीव रंजन प्रसाद
उदय प्रकाश जी, इतने सार्थक संदेश के लिए साधुवाद.
आलोक सिंह "साहिल"
उदय जी,
कुछ चीज़ें ऐसी हैं जिनके लिए हमें अलग-अलग खेमों से ऊपर उठ कर काम करना होगा....हिन्दी की बेहतरी का प्रयास करने के लिए भी हमें अपनी बाज़ार की जरुरत और घर की मर्यादा के बीच का फर्क समझना होगा...
आपके मार्गदर्शन से हमारा हौसला और भी बढ़ गया.....
हिन्दी जिन्दाबाद....
हिन्दी के प्रति आपके योगदान का तहेदिल से शुक्रिया अपना स्नेह व आशीर्वाद बनायें रखें...
इस संदेश के माध्यम से हममें ऊर्जा भरने के लिए धन्यवाद।
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