शून्यता को छूने की हठधर्मिता उस पेड़ का
हिलकर भर दिया कमरे में एहसास घुटन का
चेतना में गुम्फित असमर्थ शब्द तब फूल बन खिसका
ह्रदय सिसका कौन किसका .........
सम्पर्कहीन अतीत , उदासीन पथ मानस का
कहीं मिल जाता , कहीं गुम हो जाता
जब दीख जाता तभी मुरझा जाता
गुजरते वक्त जो देते थे सबूत जंजाल का
ह्रदय सिसका कौन किसका ......
तीक्ष्णधार बन कर जब छीला छाला चेतन का
तब से चिरंतन अस्वीकार हो तुम मेरे अंतर्मन का
हिमपर्वत- से तुम निश्चिंत हो , कर घन मेरे आवेग का
नयन देहरी पर जल कर बन गयी परित्यक्ता सूरदास का
ह्रदय सिसका कौन किसका...........
सुनीता यादव
10।35 pm
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
नयन देहरी पर जल कर बन गयी परित्यक्ता सूरदास का
ह्रदय सिसका कौन किसका...........
behad sundar panktiya hai ye.badhai.
सम्पर्कहीन अतीत , उदासीन पथ मानस का
कहीं मिल जाता , कहीं गुम हो जाता
जब दीख जाता तभी मुरझा जाता
गुजरते वक्त जो देते थे सबूत जंजाल का
ह्रदय सिसका कौन किसका ......
"beautifully written,very heart touching"
Regards
तीक्ष्णधार बन कर जब छीला छाला चेतन का
तब से चिरंतन अस्वीकार हो तुम मेरे अंतर्मन का
हिमपर्वत- से तुम निश्चिंत हो , कर घन मेरे आवेग का
नयन देहरी पर जल कर बन गयी परित्यक्ता सूरदास का
ह्रदय सिसका कौन किसका...........
सीमा जी बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ रही.
आलोक सिंह "साहिल"
सुनीता जी,
गंभीर भाव लिये व लीक से हट कर शब्द लिये रचना है..परन्तु मुझे लगता है कि व्याकरणिक रूप से कुछ त्रुटियां रह गई हैं. शायद कुछ अल्पविराम लगाने से भाव और उभर आते. पहली पंक्ति में "उस पेड का" "छीला छाल चेतन का".. समझ नही आया.
सुनीता जी
दिल के भावों को सुंदर अभिव्यक्ति दी है . बहुत ही सुंदर रूप मैं दिल की पीड़ा प्रकट हुई है
सम्पर्कहीन अतीत , उदासीन पथ मानस का
कहीं मिल जाता , कहीं गुम हो जाता
जब दीख जाता तभी मुरझा जाता
गुजरते वक्त जो देते थे सबूत जंजाल का
ह्रदय सिसका कौन किसका ......
साधुवाद
ह्रदय सिसका कौन किसका ...
वाह
सटीक
वाह सुनीता जी वाह...
हृदय की सिसकारी
और प्रश्न चिन्ह ?????
जबरदस्त...
बधाई
बहुत सुंदर कविता सुनीता जी,
गुजरते वक्त जो देते थे सबूत जंजाल का
ह्रदय सिसका कौन किसका ......
बधाई!!
भावों की अभिव्यक्ति की अच्छी कोशिश है.
लेकिन शायद कुछ कठिन शब्दों के कारण और मात्राओं की त्रुटि, सार समझने में मुश्किल कर रही है.
१-जैसे--'नयन देहरी पर जल कर बन गयी परित्यक्ता सूरदास का'???बन गयी---सूरदास की होनी चाहिए थी.
२-''तीक्ष्णधार बन कर जब छीला छाला चेतन का''में-
'छीला' की जगह छिला' होना चाहिए था.
३-दीख ' --दिख होना चाहिए था.
४-गुम्फित-?? 'समझ नही आया
५-तब से चिरंतन अस्वीकार हो तुम मेरे अंतर्मन का'?-में--मेरे अंतर्मन का' का के स्थान पर 'में ' सही होता.
६-एक अनुरोध है कवि अपनी कविता में कृपया टंकण त्रुटि जरुर देख लिया करें और जैसा मोहिंदर जी ने कहा..अल्पविराम आदि से कविता के भाव जल्दी स्पष्ट हो जाते हैं.उनका भी ध्यान रखा जाना चाहिए.
कृपया इस सुझाव को सकारात्मक लें.
धन्यवाद.
सुनीता जी रचना निःसंदेह बहुत खूबसूरत है...
अगर मात्राओं को नजर अंदाज किया जाये तो बेहतरीन कहा जायेगा...मगर फ़िर भी ध्यान दें...
आम आदमी के समझ से परे है यह रचना...आप तो ज्ञानी ध्यानी है हम थौड़े अल्प ज्ञानी हैं अतः कुछ सरल शब्दो का प्रयोग इस खूबसूरत रचना पर चार चाँद लगा सकता है...:)
इन दिनों व्यस्त थी ....माफ़ी चाहती हूँ बड़ी देर कर दी टिप्पणियां पढने में....
आप बिल्कुल सही हैं ....मैं सकारात्मक दृष्टि से ही सोचुंगी ..:-)
प्रयास रहेगा आगे ऎसी गलतियाँ कम हों.....
सुनीता यादव
मैंने एक बात पर गौर किया, आपकी ज्यादातर कविताएँ वैयक्तिक हैं। साहित्यकार को आस-पास पर भी कलम चलानी चाहिए। अपनी निराशा-आशा को बहुत बता लिया, कुछ और भी देखिए।
Bohut deri re to kabita net re padhili.Janena tu mo comment dekhilu ki nahin. Tu bhala achhu, astablished heichu janichi.Mo atita ra kichhi prusttha re tu rahi jaichu. Best of luck...adultmoney04@gmail.com
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