कल तक जो हुई जाती थी रकीब मेरे वास्ते,
वही जिंदगी आज बन गई नसीब मेरे वास्ते।
दिल में बुत बनाकर जिसे ताउम्र पूजता रहा,
उस हमनशीं की दुआ पली करीब मेरे वास्ते।
चाँद-तारों की फाँस में फँसे रहे मेरे ख्वाब,
अपने चाँद को भूलना बना सलीब मेरे वास्ते।
'मैं' को कर डाला जिस पल धराशायी मैंने,
'तुम' बन बैठे उस पल हीं हबीब मेरे वास्ते।
खुद को खोना हीं बना खुद को पाने का सबब,
'तन्हा' यह इश्क रहा अजीबो-गरीब मेरे वास्ते।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
तन्हा जी
भू प्यारी गज़ल लिखी है
दिल में बुत बनाकर जिसे ताउम्र पूजता रहा,
उस हमनशीं की दुआ पली करीब मेरे वास्ते।
खुद को खोना हीं बना खुद को पाने का सबब,
'तन्हा' यह इश्क रहा अजीबो-गरीब मेरे वास्ते।
तन्हा जी
सच में,खुद को खोकर ही खुद को पाया
जा सकता है,इश्क़ को पाया जा सकता है,बेहदखूबसूरत ग़ज़ल लिखी है अपने.
महक
मैं' को कर डाला जिस पल धराशायी मैंने,
'तुम' बन बैठे उस पल हीं हबीब मेरे वास्ते।
बहुत खूब ..ख़ुद को खो के पा लेने का सुख .यह पंक्तियाँ बहुत अच्छे से बयान कर गई ..बधाई सुंदर गजल के लिए !!
'मैं' को कर डाला जिस पल धराशायी मैंने,
'तुम' बन बैठे उस पल हीं हबीब मेरे वास्ते।
तन्हा जी क्या खूब लिखी मजा आ गया.
आलोक सिंह "साहिल"
दिल में बुत बनाकर जिसे ताउम्र पूजता रहा,
उस हमनशीं की दुआ पली करीब मेरे वास्ते।
सबसे खूबसूरत शेर है...
Tanha jee, aapki ye gajal mujhe...ek aur meethi gajal ki yaad dila gayi...
" Hosh walon ko khabar kya bekhudi kya cheej hai.
Ishq kijiye fir samajhiye bekhudi kya cheej hai...."
Bahut hin badhiyan gajal likhi hai aapne...
Badhai sweekar karen...
खुद को खोना हीं बना खुद को पाने का सबब,
'तन्हा' यह इश्क रहा अजीबो-गरीब मेरे वास्ते।
--- ह्म्म्म बहुत खूब
अवनीश तिवारी
खुद को खोना हीं बना खुद को पाने का सबब,
'तन्हा' यह इश्क रहा अजीबो-गरीब मेरे वास्ते।
खूबसूरत , सुंदर गजल
'मैं' को कर डाला जिस पल धराशायी मैंने,
'तुम' बन बैठे उस पल हीं हबीब मेरे वास्ते।
खुद को खोना हीं बना खुद को पाने का सबब,
'तन्हा' यह इश्क रहा अजीबो-गरीब मेरे वास्ते।
बहुत खूब, सुन्दर गजल...
'खुद को खोना हीं बना खुद को पाने का सबब,
'तन्हा' यह इश्क रहा अजीबो-गरीब मेरे वास्ते।'
इश्क की ये भी इंतहा है!
बहुत खूब!
सभी शेर बहुत अच्छे हैं.
तन्हा जी,
सुन्दर गजल लगी
एक शेर मिलता जुलता आपके शेर से
एक से दो हुये तो हुये इस तरह
खुद को खोने लगे, तुम को पाने लगे
तनहा जी माफ़ कीजिये इस ग़ज़ल मे कोई नई बात नही मिली, आप इससे बहुत बेहतर कर सकते हैं इसलिए कह रहा हूँ
सजीव जी, मैं आपकी बात से सहमत हूँ। इसीलिए इसे पोस्ट करने से कतरा रहा था, लेकिन लोगों ने इसे पसंद किया तो मुझे लगा कि हो सकता है कि कुछ खास हो। वैसे मैं इससे अच्छी गज़ल लिखकर आपको जरूर पढवाऊँगा।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
'मैं' को कर डाला जिस पल धराशायी मैंने,
'तुम' बन बैठे उस पल हीं हबीब मेरे वास्ते।
क्या खूब .....सुंदर प्रस्तूती
सुनीता यादव
पहले शे'र में 'वास्ते' का दोबार प्रयोग ही मुझे नहीं भाया।
चाँद-तारों की फाँस में फँसे रहे मेरे ख्वाब,
अपने चाँद को भूलना बना सलीब मेरे वास्ते।
यह शे'र बहुत पसंद आया।
शैलेश जी,
गज़ल कमजोर है यह मुझे मालूम है। लेकिन वास्ते के प्रयोग के बारे में जो आप कह रहे हैं , वह गज़ल का नियम है। लोग हिन्द-युग्म पर गज़ल लिखने में नियम-कानून मान नहीं रहे, लेकिन मैं मानता हूँ। और गज़ल लिखने का यह नियम है कि पहली दो पंक्तियों में रदीफ और काफिया होना चाहिए, उसके बाद चौथी, छठी..इस तरह लिखते हैं। पहली दो पंक्तियों को 'मतला' कहते हैं।
वैसे आगे से आपकी बातों का ध्यान रखूँगा।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
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