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Sunday, January 06, 2008

मैं अगर मैं न रहूँ.....


ये मुनासिब नहीं हम आग में जलते जाएँ,
राह लम्बी है,सफर दूर तक,चलते जाएँ...
मेरी आंखों में कोई बूँद न थी,वो खुश था,
दिल के सागर को न देखा कि मचलते जाएँ...
ठोकरों के सिवा उम्मीद कैसी पत्थर से....
खुदा बनाने से बेहतर है, संभलते जाएँ...
ये रिवायत ही रही है कि सब अजीज मेरे,
मुझपे महफ़िल में हँसे और निकलते जाएँ....
चाँद की तरह उजालों का दिलासा देकर,
चाँद रातों में ही चुपचाप से ढलते जाएं....
मैं अगर मैं न रहूँ, तू अगर तू न रहे,
तब ही मुमकिन है कि हालात बदलते जाएँ.

निखिल आनंद गिरि

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

Anonymous का कहना है कि -

चाँद की तरह उजालों का दिलासा देकर,
चाँद रातों में ही चुपचाप से ढलते जाएं....
मैं अगर मैं न रहूँ, तू अगर तू न रहे,
तब ही मुमकिन है कि हालात बदलते जाएँ.

दिल को छु गई ये पंक्तिया ,शायद अकेले सफर आसन कोई साथ हो थो मुश्किल,कभी पर जरुत पड़ती है कोई हो अपना साहिल,तय करना मुश्किल है.कविता खूबसूरत है.महक

शोभा का कहना है कि -

खुदा बनाने से बेहतर है,सँभालते जाएं...
ये रिवायत ही रही है कि सब अजीज मेरे,
मुझपे महफ़िल में हँसे और निकलते जाएँ....
चाँद की तरह उजालों का दिलासा देकर,
चाँद रातों में ही चुपचाप से ढलते जाएं....

बहुत सुन्दर लिखा है । बधाई

Alpana Verma का कहना है कि -

**अच्छे ख्याल हैं--
***ग़ज़ल के शेरों में अगर थोड़ा अन्तर रखते तो 'देखने ' [जिसको 'विजुअल इम्पक्ट' भी कहते हैं. ] dekhne पढने में और बेहतर होता.यह एक सुझाव है.
**'खुदा बनाने से बेहतर है,सँभालते जाएं...' में 'संभलते' होना चाहिये था -शायद टंकण त्रुटी होगी.लेकिन एक मात्रा से शब्द और शब्द से वाक्य का अर्थ बदल जाता है--कृप्या देखीयेगा.
*अच्छी रचना है.

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत सुंदर लगी यह पंक्तियाँ निखिल जी

चाँद की तरह उजालों का दिलासा देकर,
चाँद रातों में ही चुपचाप से ढलते जाएं....
मैं अगर मैं न रहूँ, तू अगर तू न रहे,
तब ही मुमकिन है कि हालात बदलते जाएँ.

Anonymous का कहना है कि -

निखिल भाई, लंबा समय गुजर गया था.आपको पढे.
मस्त लिखा आपने तो, खासकर इन पंक्तियों ने टू कमाल ही कर डाला.
ये रिवायत ही रही है कि सब अजीज मेरे,
मुझपे महफ़िल में हँसे और निकलते जाएँ....
चाँद की तरह उजालों का दिलासा देकर,
चाँद रातों में ही चुपचाप से ढलते जाएं....
बधाई हो जी
आलोक सिंह "साहिल"

सुनीता शानू का कहना है कि -

कवि परेशान है क्या? क्या बात है निखिल भावपूर्ण रचना है मगर उदासी लग रही है...जैसे कहीं गहरी चोट खाई रचना...
ये रिवायत ही रही है कि सब अजीज मेरे,
मुझपे महफ़िल में हँसे और निकलते जाएँ....
बधाई! सब के दिल तक छू लेने वाली रचना के लिये...

Nikhil का कहना है कि -

अल्पना जी,
वो टंकण की ही त्रुटि है..अब मैंने सुधार कर "संभलते" कर दिया है....शुक्रिया....
आगे भी स्नेह बनायें रखें,...
निखिल

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

निखिल भाई,
बहुत सुंदर |

अवनीश

seema gupta का कहना है कि -

मैं अगर मैं न रहूँ, तू अगर तू न रहे,
तब ही मुमकिन है कि हालात बदलते जाएँ.

बहुत सुंदर ,

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

वाह गिरि जी...वाह

मज़ा आ गया पढ़कर..

Sajeev का कहना है कि -

ठोकरों के सिवा उम्मीद कैसी पत्थर से....
खुदा बनाने से बेहतर है, संभलते जाएँ...
निखिल क्या बात है, कभी कभी तो बिल्कुल गज़ब धा देते हो, और भी शेर है जो लाजावाब है, सुंदर ग़ज़ल के लिए बधाई

Dr. sunita yadav का कहना है कि -

मैं अगर मैं न रहूँ, तू अगर तू न रहे,
तब ही मुमकिन है कि हालात बदलते जाएँ.

निखिल जी सुंदर भाव उत्कृष्ट रचना .......
सुनीता यादव

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

एक बार फ़िर आपके तेवरों का मैं मुरीद हो गया। विशेषरूप से ये-

ठोकरों के सिवा उम्मीद कैसी पत्थर से....
खुदा बनाने से बेहतर है, संभलते जाएँ.

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