समीरलाल (उड़नतश्तरी) की पुस्तक के विजेतापिछले 2-3 माह से हिन्द-युग्म पर पाठकों और लेखकों का आवागमन जिस तेज़ी से बढ़ा है उससे हमें बहुत संतोष और खुशी है कि इंटरनेट पर हिन्दी और हिन्द-युग्म के प्रति हिन्दी प्रेमियों का रुझान बढ़ रहा है। जून 2009 की यूनिकवि एवं यूनिपाठक प्रतियोगिता में प्रतिभागी कवियों और पाठकों की संख्या अब तक की अधिकतम संख्या तक पहुँच गई। जून माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में कुछ 58 कवियों ने भाग लिया। इससे पहले
पिछले वर्ष विश्व पुस्तक मेला, नई दिल्ली में हमारी प्रतिभागिता के बाद यह संख्या प्राप्त हुई थी।
इससे भी बड़ी खुशी की बात यह है कि इस प्रतियोगिता से नये पाठक और कवि जुड़ते जा रहे हैं, जिससे रचनाओं में नई सुंगंध तो है ही पठनीयता में भी ताज़ापन है। मुद्रित पत्रिकाओं में कविताओं की खातिर लगातार घटता स्पेस कवियों और पाठकों को इंटरनेट की तरफ खींच रहा है।
जून माह की यूनिकवि प्रतियोगिता का निर्णय 2 चरणों में 7 निर्णयकर्ताओं द्वारा करवाया गया। पहले चरण में 3 तथा अंतिम चरण में 4 जज रखे गये। पहले चरण से
58 में से 33 कविताएँ चुनी गईं। अंतिम चरण में प्राप्त अंकों और पहले चरण में प्राप्त अंकों के औसत के आधार पर
सत्यप्रसन्न की कविता
'एक सोच की चिंगारी' को यूनिकविता चुना गया।
यूनिकवि- सत्यप्रसन्न
सत्यप्रसन्न मूलतः तेलगू भाषी हैं। आंध्र प्रदेश राज्य के श्रिकाकुलम जिले में 3 मई 1949 को जन्मे सत्यप्रसन्न की शिक्षा-दीक्षा पूर्ववर्ती मध्यप्रदेश एवं वर्तमान छत्तीसगढ़ के सरगुजा, रायपुर तथा रायगढ़ जिले में हुई। बी.एस.सी. करने के बाद मेकैनिकल इंजिनीयरिंग में पत्रोपाधि प्राप्त किया, उसके के पश्चात छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल में, कनिष्ठ अभियंता, सहायक अभियन्ता, कार्यपालन अभियन्ता एवं अधीक्षण अभियन्ता के पद पर ३४ वर्ष तक कार्य किया। 31 मई 2007 को सेवानिवृत्त हो गये। 5 भाईयों और 5 बहिनों में सबसे बड़े सत्यप्रसन्न को कविताओं तथा कहानियों से बचपन से ही लगाव है। लिखना वर्ष 1980 से प्रारंभ किया। कविता तथा लघु कथाओं से विशेष प्रेम। विभिन्न सन्ग्रहों में प्रकशित और आकाशवाणी, दूरदर्शन से प्रसारित। इससे पहले भी हिन्द-युग्म की इसी प्रतियोगिता में लगातार दो बार इनकी कविताएँ (
विषधरों से डर नहीं है,
पेड़ आम का) शीर्ष 10 में स्थान बनाने में सक्षम रही हैं।
पुरस्कृत कविता- एक सोच की चिंगारीकहीं सूख ना जाए सागर इससे पहले,
चलो बांध कर लहरें कुछ मुठ्ठी में धर लें।
कहीं रात की थम ना जाए सासें देखो,
चलो अंजुरी में कुछ ज़िंदा जुगुनू भर लें।
किसी गै़र से मुठ्ठी भर अपनापन मांगें,
ग़म की हर खूँटी पे एक खुशी भी टांगें।
विश्वासों की टूटी डोर हाथ में ले कर;
घोड़े के आगे हम जोतें अपने तांगे।
अपना नाम लिखें पानी में और मिटायें;
झुक आया आकाश ठेल कर परे हटायें ।
अभी झील को थोड़ा भी अहसास नहीं है;
क्या कुछ करने वाली हैं गुस्ताख़ घटायें।
चलो एक तिल लेकर उसको ताड़ बनाएँ ;
हरी दूब का वंश बदल कर झाड़ बनाएँ।
समझौतों के हाथों रिश्ते गिरवी रख कर;
उदासीनता के कांटों की बाड़ लगाएँ।
कहीं सोच पर लग ना जाएँ कल सौ ताले;
बीज मान कर एक शब्द तो आओ रोपें।
कहीं न सूरज ही मर जाए इससे पहले;
एक सोच की चिंगारी तो कल को सौंपें।
प्रथम चरण मिला स्थान- दूसरा
द्वितीय चरण मिला स्थान- प्रथम
पुरस्कार और सम्मान- शिवना प्रकाशन, सिहोर (म॰ प्र॰) की ओर से रु 1000 के मूल्य की पुस्तकें तथा
प्रशस्ति-पत्र। जुलाई माह के अन्य तीन सोमवारों की कविता प्रकाशित करवाने का मौका।
इनके अतिरिक्त हम जिन अन्य 9 कवियों की कविताएँ प्रकाशित करेंगे तथा उन्हें हम
समीर लाल की पुस्तक
'बिखरे मोती' की एक-एक प्रति भेंट करेंगे, उनके नाम हैं-
स्वप्निल कुमार "आतिश"
मनोज सिंह
आलोक उपाध्याय
ऋतू सरोहा
अनुज शुक्ला
अमित अरुण साहू
जीष्णु
मुकुल उपाध्याय
सचिन जैनपिछली बार हमने कुल 19 कविताओं का प्रकाशन किया था। इस बार भी हम 19 कविताओं को प्रकाशित करने का निश्चय किया है। अन्य जिन 9 कवियों की कविताएँ एक-एक करके प्रकाशित होंगी, उनके नाम हैं-
अनिरुद्ध शर्मा
दीपा पन्त
दीपाली आब
गिरिजेश राव
दीपाली पंत तिवारी
कुलदीप जैन
तरव अमित
रवि कान्त अनमोल
जितेन्द्र दवेउपर्युक्त सभी कवियों से अनुरोध है कि कृपया वे अपनी रचनाएँ 31 जुलाई 2009 तक अनयत्र न तो प्रकाशित करें और न ही करवायें।इस बार पाठकों में भी बहुत घमासान रहा। हमारे पुराने सम्मानित पाठकों ने तो नियमित पढ़ा ही लेकिन साथ ही साथ मंजू गुप्ता, शामिख फ़राज़ और अम्बरीष श्रीवास्तव में पढ़ने की होड़ रही। शायद ही हमारे किसी भी मंच की कोई पोस्ट शामिख़ फ़राज़ और मंजू गुप्ता की नज़रों से बची हो। लेकिन मंजू गुप्ता ने अधिकाधिक टिप्पणियाँ रोमन-हिन्दी में की, वहीं शामिख ने लगभग सभी देवनागरी-हिन्दी में। चूँकि हिन्द-युग्म देवनागरी (हिन्दी) के प्रोत्साहन के लिए भी इस प्रतियोगिता का आयोजन करता है। इसलिए हम शामिख़ फ़राज़ को यूनिपाठक का खिताब दे रहे हैं। पिछले महीने के यूनिपाठक मोहम्मद अहसन भी पहले रोमन-हिन्दी में टिप्पणियाँ करते थे, लेकिन हमारे आग्रह पर इन्होंने देवनागरी में करना शुरू किया। यही आग्रह हम मंजू गुप्ता से भी करेंगे।
यूनिपाठक- शामिख़ फ़राज़
24 फरवरी 1987 को पीलीभीत (उ॰प्र॰) में जन्मे शामिख फ़राज़ वर्तमान में बरेली के एक कॉलेज से एम॰सी॰ ए॰ (कम्प्यूटर अनुप्रयोग में परास्नातक) की पढ़ाई कर रहे हैं। पीलीभीत शहर में खुद का डिजीटल फोटोग्राफी का काम करते हैं। इन्हें वैज्ञानिक सोच के पिता और धार्मिक स्वभाव की माँ से अच्छा व्यवहारिक ज्ञान मिला। इन्होंने लेखन की शुरुआत वर्ष २००२ में की थी। इनका पहला लेख क्षेत्रीय अख़बार अमर उजाला में प्रकाशित हुआ और अब तक कई लेख विभिन्न अख़बारों में प्रकाशित हो चुके हैं। बचपन से ही कहानियों के प्रति रुझान था. इसी कारण हिन्दी लेखकों के अलावा विदेशी लेखकों लियो टअलसटॉय, अन्तोन चेखव, मैक्सिम गोर्की, ओ हेनरी को भी पढ़ा।
इन्होंने कभी नहीं सोचा था कि ये एक कवि भी बनेंगे लेकिन 19 सितम्बर 2007 को ज़िन्दगी एक ऐसे इन्सान से मिला गई जिसने इन्हें कवि बना दिया।
साहित्य के अतिरिक्त ग्राफिक्स एंड एनीमेशन, आत्मकथाएं पढ़ना, ऐतिहासिक नगरों को घूमना और सूक्तियां एकत्रित करने का शौक़ रखने वाले शामिख की अब तक तीन कविताएँ शीर्ष 10 में स्थान बना चुकी हैं। (पुरस्कृत कविताएँ-
अम्मी,
मेरी कविता के अक्षर,
कुछ काव्यरचनाओं को न जाने कैसे ये बातें मालूम पड़ गईं)
पुरस्कार और सम्मान- समीरलाल के कविता-संग्रह
'बिखरे मोती' की एक प्रति तथा प्रशस्ति-पत्र।
दूसरे स्थान पर ज़ाहिर तौर हम
मंजू गुप्ता को, तीसरे स्थान पर
अम्बरीष श्रीवास्तव को रखना चाहेंगे। चौथे स्थान के लिए हमने चुना है
सदा को। इन तीनों विजेताओं को भी समीरलाल के कविता-संग्रह
'बिखरे मोती' की एक-एक प्रति भेंट की जायेगी।
इनके अलावा हम
दीपाली आब, स्वप्न मंजूषा 'अदा', दिशा, अनुपम अग्रवाल, निर्मला कपिला, ओम आर्य, अर्चना तिवारी इत्यादि में भी यूनिपाठक पुरस्कार जीतने की ऊर्जा है। हम उम्मीद करते हैं कि जुलाई माह की प्रतियोगिता में ये सभी यूनिपाठक बनने का भी प्रयास करेंगे और हमें प्रोत्साहित करेंगे।
जो पाठक लगातार पढ़ रहे हैं और यूनिपाठक का पुरस्कार जीत चुके हैं वे वार्षिक हिन्द-युग्म पाठक सम्मान के प्रतिभागी बनते जा रहे हैं। इसलिए पढ़ने में कोई कसर न छोड़ें।
हम उन कवियों का भी धन्यवाद करना चाहेंगे, जिन्होंने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर इसे सफल बनाया। और यह गुजारिश भी करेंगे कि परिणामों को सकारात्मक लेते हुए प्रतियोगिता में बारम्बार भाग लें।
प्रशान्त कुमार (काव्यांश)
कुलदीप "अंजुम
अकेलामुसाफिर
के के यादव
कमलप्रीत सिंह
मुहम्मद अहसन
अनुपम अग्रवाल
सुरेन्द्र कुमार 'अभिन्न'
अम्बरीष श्रीवास्तव
संजय अग्रवाल
अखिलेश श्रीवास्तव
शेली खत्री
डा.संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
नीरज वशिष्ठ
स्वप्ना कोल्हे
मंजु महिमा
अक्षय-मन
उधव्व उधव
सजल प्यासा
नीति सागर
सोनिया उपाध्याय
शामिख़ फ़राज़
अमित श्रीवास्तव
आर सी सोनी
आलोक
मोनाली
प्रशांत सोनी
राहुल अग्रवाल
प्रियंका चित्रांशी "प्रिया"
महिमा बोकारिया
संगीता सेठी
निलेश माथुर
सीमा सिंघल
शिवानी दानी
प्रकाश पंकज
दीपक कुमार वर्मा
सुमित वत्स
मंजू गुप्ता
रवि शंकर शर्मा