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Thursday, March 19, 2009

कुछ काव्यरचनाओं को न जाने कैसे ये बातें मालूम पड़ गईं


शामिख़ फ़राज़ अक्सर ही अपनी कविताओं से हिन्द-युग्म पर दस्तक देते रहे हैं। फरवरी माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में भी इनकी एक कविता अव्वल १० में शुभार रही।

पुरस्कृत कविता

मैंने तुम्हारे प्यार से जुड़े
जज्बातों के टुकड़े
दिल के कमरे में रखी
यादों की अलमारी में
वक़्त का ताला लगा के
रख दिए थे लेकिन
न जाने बात कैसे
मेरे कलम को मालूम हो गई
और वो बता आया है
नज्मों और ग़ज़लों को
रुबाई और मसनवियों को
कविताओं और क्षणिकाओं को
और कुछ काव्यरचनाओं को


प्रथम चरण मिला स्थान- नौवाँ


द्वितीय चरण मिला स्थान- आठवाँ


पुरस्कार- कवयित्री निर्मला कपिला के कविता-संग्रह 'सुबह से पहले' की एक प्रति


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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

seema gupta का कहना है कि -

मैंने तुम्हारे प्यार से जुड़े
जज्बातों के टुकड़े
दिल के कमरे में रखी
यादों की अलमारी में
वक़्त का ताला लगा के
रख दिए थे लेकिन
" behtrin..shabd or jujbaat..."

Regards

neelam का कहना है कि -

ek galti kar gaye ,kalam ko bhi taale me rakh dena tha ???????hahahahahahahahahaahahahahahhahaha

तपन शर्मा Tapan Sharma का कहना है कि -

shuru ki kuch lines achhi thi..
par maja bilkul nahin aaya...
aapse bahut ummedein hain..

Divya Narmada का कहना है कि -

. युग के अनुरूप लेखन के लिए बधाई.

manu का कहना है कि -

अच्छे ख्याल लगे शामिख जी,
आप कही कुछ भी छुपा लें ,,,कलम को तो पता लग ही जाता है,,,,,
शायद वो आपका ही रूप होती है,,,,
बधाई,,,,

Harihar का कहना है कि -

न जाने बात कैसे
मेरे कलम को मालूम हो गई
और वो बता आया है
नज्मों और ग़ज़लों को

बहुत सुन्दर ! शमिख जी !

Anonymous का कहना है कि -

' जज़्बात , वक़्त , याद ,.....?'
क्या यह भी हिंदी कविता है?
है भी तो बड़ी हलकी सी फ़िल्मी अंदाज़ की.

neelam का कहना है कि -
This comment has been removed by the author.
neelam का कहना है कि -

gahri,gair filmi andaaj ki kavita likhna to har kisi ke bas ki baat nahi ,yah kaam to sirf aap ko hi supurd kiya gaya hai

manu का कहना है कि -

मालूम था के अब साहब यहाँ पर भी आ सकते हैं,,,,
सो फिर आना पडा,,,,, शे'र पर तो पाबंदी लग गई है...::::)
पर जुबान पर नहीं,,
नीलम जी ने सही कहा है के ये काम आपके सुपुर्द है,,,,,
हर किसी के बस की बात नहीं है,,,,,
शामिख जी, और स्मिता भी,,,
आप लोग जब भी कविता लिखें तो उसमे ,,,
एक नदी और एक पुल का ज़िक्र जरूर करें,,,,,,,
फिर उडा दें उसे तेज हवा के झोंके से,,
कविता में आयेगा एक नया भाव,,,,,,
हाँ,
कमेंट कुछ ऐसे मिल सकते हैं,,,,,
मकडी के जाल में ,,,,,जाने क्या था,,,???

डियर,
कहीं तो ,,,किसी को तो कविता जैसा कुच्छ लिखने दिया करें,,,,,
बाबू जी, क्या फायदा के आदमी कविता पढ़े,,,,और हिंदी या उर्दू की डिक्शनरी खोले समझने के लिए,,,,,अब और कहाँ पर ढूंढूं आपके महान कमेंट,,,??//

Anonymous का कहना है कि -

नीलम जी और मनु साहब
मेरा उपहास उडाने या कटाक्ष करने या अशालीन भाषा का प्रयोग करने से सच्चाई नहीं बदल जाए गी.
हर भाषा की अपनी एक अस्मिता होती है उस की रक्षा करना सीखिये . हिंदी की
सम्र्द्धता का सम्मान कीजिये
ये आधा तीतर आधा बटेर वाली कविताओं से हिंदी का कोई भला नहीं हो गा. निर्णायक मंडल के निर्णय के सम्मान की बात अपनी जगह है.

manu का कहना है कि -

श्रीमान जी,
ये सही है के हमारे कमेंट से अआप कुछ असहजता महसूस कर रहे हैं,,, शायद आपकी कविता का उदाहरण देकर,,,,,किन्तु ,,,
अशालीन भाषा जैसा कुछ नहीं है,,,,,
यदि आपको अंग्रेजी में डियर और मिलीजुली भाषा में बाबूजी संबोधित कर दिया तो इसमें बुरा मानने की बात नहीं है,,,,,,अब के बार श्रीमान जी लिखा है ,,,,अधिक आदर देने के लिए,,,,,इससे अधिक शुद्ध हिंदी हमें नहीं आती,,,,,

और एक बात पर गौर कीजियेगा,,,,
हम दोनों भाषाओं को अलग ना करने की बात कह रहे हैं,,,,,,,
और आप इन्ही दोनों में से एक को तीतेर और एक को बटेर कह रहे हैं,,,,,,

अब भी कुछ बचता है कहने को,,,,,,??

सदा का कहना है कि -

मैंने तुम्हारे प्यार से जुड़े
जज्बातों के टुकड़े
दिल के कमरे में रखी
यादों की अलमारी में
वक़्त का ताला लगा के
रख दिए थे ।
बहुत ही नाजुकी से लिखे गये ये अल्‍फाज बयां करते हैं हाले दिल, उम्‍दा रचना के लिये बधाई ।

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