मिलना है गर तुझको कभी सचमुच ही ग़म से जिन्दगी
तो आके फिर तू मिल अकेले में ही हमसे जिन्दगी
हाँ आज हम इनकार करते हैं तेरी हस्ती से ही
खुद मौत मांगेंगे, जियेंगे अपने दम से जिन्दगी
हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
इक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी
सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें
पाएं हैं ग़म कितने तेरे इस पेचो-खम से जिन्दगी
नाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी
हैं ‘श्याम’ गर मेरा नहीं, तो है पराया भी नहीं
कट जाएगी अपनी तो यारो, इस भरम से जिन्दगी
मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,मुस्तफ़इलुन,
२ २ १ २ २ २ १ २.२ २ १ २,२ २ १ २,
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
Waah !!
Jindagi ko dekhne ka yah najariya bhi bakhoobi bayan kiya aapne...
हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
इक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी
बहुत सुंदर है |
अवनीश तिवारी
behtri ghajal.
यार,दुआओं के बदले दुआ दे रहा हूँ।
खुद से निकाल के तुझे खुदा दे रहा हूँ.
रख संभाल के अपने लिए मित्र,
चुरा के तुझे बफा दे रहा हूँ .
see my bloggggggggggggggg
www.sunilkumarsonubsa75.blogspot.com
HEY
श्याम जी नमस्कार ,
बहोत ही शानदार ग़ज़ल कही है आपने.. वो भी बड़ी और चुस्त बहर के साथ ...ये शे'र अब इसके बारे में क्या कहूँ मैं ...
नाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी
,.... उफ्फ्फ्फ्फ़ कमाल हो गया .. ढेरो बधाई आपको साहिब..
अर्श
Mere blog par aane ka shukriya. Bahut achchhi gajlen likhte hain aap.Badhai.
लाजवाब
hi shyam ji........Khoobsoorati se bayan kiya hai aapne zindagi ke sath kee gayee baatcheet ko ......kafiyon ka upyog to unke roop ke anuroop hi prayog kiya hai aapne.badhaeeyan......
हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
इक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी
इस शे'र में 'छम से' का इस्तेमाल बहुत पसंद आया।
अच्छी ग़ज़ल श्याम जी,
बधाई हो,,,,
सुलझा दिया इक बार तो सौ बार उलझाया हमें
पाएं हैं ग़म कितने तेरे इस पेचो-खम से जिन्दगी
नाहक नहीं हैं हम इसे सीने से चिपकाये हुए
इस जख्म से सीखा है क्या-क्या पूछ हमसे जिन्दगी
sunil ji ,
jo chura ke di gayi ,wo wafa kaisi ???????????????????//////////
chura ke tujhe ,ya phir tujhse wafa de rahaan hoon
दोनों,,,,,
चुरा के तुझे भी,,,
और चुरा के तुझसे भी,,,,,,
:::::::::::))))))))))
हैं ‘श्याम’ गर मेरा नहीं, तो है पराया भी नहीं
कट जाएगी अपनी तो यारो, इस भरम से जिन्दगी।
तू इन ख़यालों में सही, आके तसल्ली हमको दे,
वरना उधर मर जायेगी कोइ शरम से ज़िन्दगी।
हर बार ही देखा तुझे है दूर से जाते हुए
इक बार तो आजा मेरे आँगन में छम से जिन्दगी
श्याम जी
उम्दा ग़ज़ल
ज़िन्दगी से वार्ता
बहुत खूब !!!
सादर !!
आप सभी का मेरी रचनाओं को जो आशीर्वाद मिलता है,उससे मेरी रचनाओं का आगामी सफ़र खुशनुमां हो जाता है-आभार
श्याम सखा ‘श्याम’
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