शामिख़ फ़राज़ की एक कविता 'अम्मी' आप सभी पिछली बार पढ़ चुके हैं। जनवरी माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में भी इनकी एक कविता शीर्ष १० में आई है।
पुरस्कृत कविता- मेरी कविता के अक्षर
छोटे बच्चों जैसे शैतान हैं
मेरी कविता के अक्षर
और शैतानी कुछ ऐसी
करते हैं यह अक्सर
होता हूँ जब कभी मैं
गुमसुम तनहा और खामोश
तुम्हारी, हाँ, तुम्हारी
यादों की तरफ ले जाते हैं
मेरा हाथ पकड़कर
छोटे बच्चों जैसे शैतान हैं
मेरी कविता के अक्षर
स्याही की चमड़ी में लिपटे हैं
कागज़ की चादर पर बैठे हैं
कभी शब्दों से निकल कुछ कहते हैं
तो कभी चुप-चुप ही रहते हैं
कभी यह बड़बोले लगते
तो कभी लगते मूकबधिर
छोटे बच्चों जैसे शैतान हैं
मेरी कविता के अक्षर
और शैतानी कुछ ऐसी
करते हैं यह अक्सर
चाहे हकीक़त का किस्सा हो
या दिल के जज़्बात हो
खिलने वाली कलियों का ज़िक्र हो
या बिखरे हुए पतझड़ के पात हो
देखो चाहे कहीं की कोई बात
ख़त्म करते हैं तुम्हीं पे ले जाकर
छोटे बच्चों जैसे शैतान हैं
मेरी कविता के अक्षर
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ३॰५, ५, ६॰५
औसत अंक- ५
स्थान- अठारहवाँ
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ४, ६, ५ (पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ५
स्थान- बारहवाँ
अंतिम चरण के जजमेंट में मिला अंक- ४
स्थान- आठवाँ
टिप्पणी- जिन कविताओं में भाषा की बात भाषा से शुरूकर उसी पर अंत कर दी जाती है वहाँ कविता अपने प्रवाहमयी संयोजन में चूक जाती है और कविता में इन्द्रियबोधात्मकता भी समाप्तप्राय हो जाती है। इस कविता में विचारबोध का प्राबल्य कविता को बोझिल और उबाऊ बनाता है।
पुरस्कार- ग़ज़लगो द्विजेन्द्र द्विज का ग़ज़ल-संग्रह 'जन गण मन' की एक स्वहस्ताक्षरित प्रति।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
11 कविताप्रेमियों का कहना है :
होता हूँ जब कभी मैं
गुमसुम तनहा और खामोश
तुम्हारी, हाँ, तुम्हारी
यादों की तरफ ले जाते हैं
मेरा हाथ पकड़कर
छोटे बच्चों जैसे शैतान हैं
मेरी कविता के अक्षर
"कविता के अक्षरों की शैतानी को सुन्दरता से अभिव्यक्त किया गया है.."
Regards
शमीख जी वास्तव में आपकी कविता के अक्षरों की पहचान
हमें भी होने लगी है | आपकी पहली कविता के अक्षर
फोंकानी, सांसी से बहार निकल आई अम्मी..... अभी तक माँ
की याद दिला जाते है | बहुत ही सुन्दरता से आपने अपने
भावों को कविता में संजोया है | बहुत-बहुत बधाई
अक्षर,,,,,,,???
मुझे तो शामिख भी शैतान लगते हैं,,,,,
हा,,हा,,हा,,
भाई जान ,इसे हलके से लेना,,,,कविता पसंद आयी,,,,,,कुछ दिनों से तल्ख़ कहते लिखते,,आज आपको देखते ही शरारत का मूड हो गया,,,,,अब अपकेकव्यपल्लावन वाले चित्र के लिए भी कुछ सोचते हैं.....वो भी अछा लगा कुछ लिखा गया तो वहा ज़रूर भेजना चाहूंगा,,,....बधाई ,,,
फ़राज़ बधाई स्वीकारिये अक्षर जो बने शैतान
पाठक लिखेंगे कविता आप के चित्र पर लगा ध्यान
शहरों की चका चौंध में
गुम हैं हम इन्सान
शब्द वहां से निकल कविता में आए
हो गए शैतान
अम्मी कविता के
बाकी है दिल पर निशान
शब्दों का प्रयोग सुंदर है
कविता अच्छी है
सादर
रचना
कविता की गति तो ठीक है पर जैसा तीसरे चरण के जज ने कहा है इसमें विचारबोध का प्राबल्य कविता को थोड़ा बोझिल अवश्य करता है.
रचना सुन्दर है.
... बहुत खूब।
आपके अक्षरों की शैतानियाँ देखकर हमें भी उनसे शैतानी करनी का मन हो रहा है !बहुत ही अच्छी रचना बहुत-बहुत बधाई!
सुन्दर अभिव्यक्ति पर बधाई
भाई..
बहुत भायी.. तुम्हारी ये शब्द रचना..
इस रचना को पढ़ कर लगा ही नहीं ये ही शब्द इतनी शैतानी करते है..
अभी तो बहुत शांत और मनमोहक लगे..
बार बार पढने को जी हुआ..
सादर
शैलेश
खिलने वाली कलियों का ज़िक्र हो
या बिखरे हुए पतझड़ के पात हो
देखो चाहे कहीं की कोई बात
ख़त्म करते हैं तुम्हीं पे ले जाकर
छोटे बच्चों जैसे शैतान हैं
मेरी कविता के अक्षर
बहुत ही सुन्दर रचना, आभार्
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)