तुम्हारी यादों से बने वो घर तो मिलें
मैं इन्हें तोड़ दूँ पर पत्थर तो मिलें
आए रावण तेरी लंका नहीं तो नहीं सही
कम से कम भेजे हुए बंदर तो मिलें
मैं इन लोगों को अब कैसे पहचानूंगा
तुम जो काट चुके हो वो सर तो मिलें
माना के ये तुझे रोक नहीं पाए
टूटे हुए ही सही वो लंगर तो मिलें
कश्तियों से भी सच उगलवा लेंगे
रेत में धँसे वो समंदर तो मिलें
--पराग अग्रवाल
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
गर है तुकांत कविता तो यूँ ही पढ़ लेंगे
मगर है ये गजल तो इसमें बहर तो मिले ...........
काफी समय बाद दिखे पराग भाई,
गज़ल बहुत ही अच्छी लगी, हर शे'र बढिया है, पर 1,3 और 4 का जवाब नही
बहुत मजा आया गज़ल पढकर, बहर की जानकारी नही है पर ये रचना लय मे लग रही है इसलिए गज़ल कहा
काफी समय बाद दिखे पराग भाई,
गज़ल बहुत ही अच्छी लगी, हर शे'र बढिया है, पर 1,3 और 4 का जवाब नही
बहुत मजा आया गज़ल पढकर, बहर की जानकारी नही है पर ये रचना लय मे लग रही है इसलिए गज़ल कहा
तुम्हारी यादों से बने वो घर तो मिलें
मैं इन्हें तोड़ दूँ पर पत्थर तो मिलें
बढ़िया लगी
अच्छी ग़ज़ल..पराग जी.......तीसरा शेर पसंद आया.......
आलोक सिंह "साहिल"
शेर अच्छे हैं |
भाव भी अच्छे हैं | बहर आदि नियमों के पैमाने पर तो जानकार ही बता सकते हैं कि कितनी खरी ग़ज़ल है |
बधाई |
-- अवनीश तिवारी
पराग ,
अच्छी रचना ,
तुम्हारी यादों से बने वो घर तो मिलें
मैं इन्हें तोड़ दूँ पर पत्थर तो मिलें
पसंद आया.
बधाई
पराग आये महीनों बाद, पर आये तो सही
गज़ल बे-बहर है तो, कोई फर्क पड़ता नहीं
पहला तीसरा आये पसंद, पर नहीं थी कुछ सधी
आगे भी आपको पढ़ेंगे, ये उम्मीद कुछ बँधी
कश्तियों से भी सच उगलवा लेंगे
रेत में धँसे वो समंदर तो मिलें
अच्छा लगा
रचना
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