तुम्हारी यादों से बने वो घर तो मिलें
मैं इन्हें तोड़ दूँ पर पत्थर तो मिलें
आए रावण तेरी लंका नहीं तो नहीं सही
कम से कम भेजे हुए बंदर तो मिलें
मैं इन लोगों को अब कैसे पहचानूंगा
तुम जो काट चुके हो वो सर तो मिलें
माना के ये तुझे रोक नहीं पाए
टूटे हुए ही सही वो लंगर तो मिलें
कश्तियों से भी सच उगलवा लेंगे
रेत में धँसे वो समंदर तो मिलें
--पराग अग्रवाल