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Monday, September 08, 2008

जितने खाली प्याले थे सब के सब जाम हो गए


तमाम दरिया-ओ-समंदर गुलाम हो गए
उसके शहर में अब ये किस्से तो आम हो गए

मैकदों की तकदीर मोहताज है उसके लम्स की
जितने खाली प्याले थे सब के सब जाम हो गए

जो शहंशाह तख्त-ओ-ताज के वाली थे कभी
अब वही लोग मेरे शहर में बेनाम हो गए

जो रास्ते कभी मेरी पहचान हुआ करते थे
अब तो वो भी गुज़र-गाह-ऐ-आम हो गए

उसने तलवार उठा ली थी क़त्ल-ए-आम के लिए
घबराहट में ही अपने टुकड़े तमाम हो गए

--पराग अग्रवाल

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12 कविताप्रेमियों का कहना है :

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

अच्छी ग़ज़ल है |

-- अवनीश तिवारी

Anonymous का कहना है कि -

अच्छी ग़ज़ल पसंद आई
सादर
रचना

Satyendra Prasad Srivastava का कहना है कि -

क्या बात है! बहुत अच्छी ग़ज़ल

वीनस केसरी का कहना है कि -

अच्छी रचना

वीनस केसरी

Smart Indian का कहना है कि -

जो शहंशाह तख्त-ओ-ताज के वली थे कभी
अब वही लोग मेरे शहर में बेनाम हो गए

यह पंक्तियाँ अच्छी लगीं.

SURINDER RATTI का कहना है कि -

पराग - बढ़िया लिखा है आपने बधाई
तमाम दरिया-ओ-समंदर गुलाम हो गए
उसके शहर में अब ये किस्से तो आम हो गए
मैकदों की तकदीर मोहताज है उसके लम्स की
जितने खाली प्याले थे सब के सब जाम हो गए
सुरिन्दर रत्ती

Unknown का कहना है कि -

aachi gazal hai

kafiya aur radeef bhi sahi hai

sumit bhardwaj

Harihar का कहना है कि -

बहुत अच्छी गज़ल

Anonymous का कहना है कि -

हाथी को छूकर देखने वाले अन्धो की कहानी शायद भूल गए लोग - जो इसे ग़ज़ल कह रहे हैं रमन

Anonymous का कहना है कि -

आप सभी का बहुत धन्येवाद, मेरी रचना को सरहाने के लिए, और उस पर अपनी विचार देने के लिए, बहुत अच्छा लगा... सभी लोगो को राये बहुत अहम् हैं, रमन जी आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ, की ये ग़ज़ल बहर से खारिज हैं, मगर आजकल ज़रा ग़ज़ल की इसी तकनीक पर, काम कर रहे हैं, आने वाले दिनों में.. .अगर आप सभी की दुआए यु ही नसीब होती रही तो, एक ग़ज़ल बहर के साथ, पेश करुगा...


और मुझे नौकरी रोज़गार की वजह से, यहाँ आने का और सभी के सुझावों पर.. अलग अलग राये देने का वक्त नहीं मिल पाता हैं.. उसके लिए में माफ़ी चाहुगा...

आप सभी ने अपना कीमती वक्त दिया... उसके लिए में आभारी हूँ
पराग

Pooja Anil का कहना है कि -

पराग जी ,

अच्छा लिखते हैं आप, लिखते रहियेगा.

शुभकामनाएं

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

बहुत ही कमज़ोर रचना। किसी भी पंक्ति ने प्रभावित नहीं किया। अच्छा लिखने के लिए अपने पुरखों को और समकालीन श्रेष्ठ रचनाकारों को पढ़ें। हिन्द-युग्म का संग्रहालय भी आपकी काफी मदद करेगा।

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