सितमगर की जुल्फों के अंदाज़ देख रहा हूँ
मैं जानां की तासीर-ए-आवाज़ देख रहा हूँ
ऐ निगाहों तुम होश-ओ-हवास में रहना
मैं परिंदे की आखिरी परवाज़ देख रहा हूँ
आगाज़ हुआ हैं जबसे तामीर-ए-आशियाने का
तब से इन हवाओं को नाराज़ देख रहा हूँ
क्या देख रहे हो समंदर में गौर से
मैं इसका मुसलसल रियाज़ देख रहा हूँ
जिसके हाथो में कभी त्रिशूल हुआ करता था
मैं आज उसके हाथों में साज़ देख रहा हूँ
शब्दार्थः तासीर-ए-आवाज़- आवाज़ का असर, परवाज़- उड़ान, तामीर-ए-आशियाने- भवन-निर्माण, मुसलसल- शृंखलित, सतत, लगातार
--यूनिकवि पराग अग्रवाल
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
18 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत खूब लिखा है .हर पंक्ति ही बहुत खुबसूरत है.
पराग जी आपको दुबारा पढ़ कर खुशी हो रही है.
कहन अच्छी लगी
बेहतरीन ग़ज़ल पढवाने के लिए धन्यवाद
वीनस केसरी
पराग - बहुत ही अच्छा लिखा है - बधाई
सितमगर की जुल्फों के अंदाज़ देख रहा हूँ
मैं जानां की तासीर-ए-आवाज़ देख रहा हूँ
ऐ निगाहों तुम होश-ओ-हवास में रहना
मैं परिंदे की आखिरी परवाज़ देख रहा हूँ
सुरिन्दर रत्ती
पराग भाई बहुत बढिया......
- तेरी कलम से निकला सु-राग देख रहा हूँ
- दिल की जुबां से चखता 'पराग' देख रहा हूँ
आपकी बात कहने का अंदाज़ बहुत ही अनोखा है...एकदम धीमे-धीमे उतरती है....संजीदा रचना के लिए शुक्रिया..
बेहद उम्दा गज़ल
बधाई स्वीकारें\
पराग जी आपका अंदाज देख रही हूँ ,नायाब है |
ग़ज़ल तो नही है गुरु बहर तो कहाँ ढूंढे -आवाज अंदाज परवाज के साथ रिवाज कैसे बनेगा काफिया ?हाँ सीख लो तो ग़ज़ल कह सकते हो ग़ज़ल तो नहीं है पर आपका मिजाज गज़लियत का है मानना पडेगा -वही
anonymous जी,
बहर के बारे मे तो कुछ नही कह सकता पर जहाँ तक काफिये और रदीफ का सवाल है तो मै आपसे सहमत नही हूँ
क्योकि काफिया आ+ ज़ पूरी तरह ठीक है
और रदीफ भी
सुमित जी गौर करें अंदाज .परवाज , नाराज ,
में साज .हैं २२१, और रियाज है १ १२ यह रीयाज होता तो कल जाता यहाँ रिवाज भे नहीं चलेगा आगाज चल सकता यूँ तो का भी ख्याल होता है उर्दू में पर हिन्दी में चलता है ano
Anonymous saab.....
aapne jo wazan ki baat ki hai vo main samajh raha hoon....
par aapko ek baat ki jaankari dena chahta hoon.....
ke qaafiyon ke wazan barabar hona zaroori nahi hai...........
wazan ki iktalaah to hai mujhe par abhi behr par kaam chal raha hai........
misaal ke taur par GHALIb ka ek sher pesh karta hoon.......
ke..
Baazecha-e-atfaal hai duniya mere aage.............
hota hai shab-o-roz tamasha mere aage.........
yahan qaafiye ka wazan dekhiye....
duniya.. ka wazan 112 aa raha hai..
aur tamaasha ka wazan 122 aa raha hai...
to urdu me bahut jagahon par riyayat di gayi hai wazan ke liye.......
baaqi main abhi seekh hi raha hoon............
aage se aur tavajjjo di jayegi...
shukriya
बहुत सुंदर लिखा है मजा आया
सादर
रचना
माँ बदौलत,कमाल कर दिया पराग भाई.
बेहद संतुलित और जोरदार रचना.
आलोक सिंह "साहिल"
shukriya alok bhai...
aur baaqi sabhi logon ko bhi saadar pranaam ke aapko ghazal pasand aayi....
:)
very nice Gazal.. heart touching
एक एक शे’र काबिलेतारीफ!!!
पराग जी, गालिब का उदाहरण ग़लत दिया है. आप ऐसे पढ़ें:
है दुनिया = १(१ + १)२ = १२२
तमाशा = १२२
बाजीचाये उत्फाल है दुनिया मेरे आगे (२२१1 २२११ २२११ २२)
होता है शबो रोज़ तमाशा मेरे आगे (२२११ २२११ २२११ २२ )
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)