.प्रिय पाठको! आज का दिन भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। आज ही के दिन राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर जी का जन्म हुआ था। दिनकर जी एक ऐसे कवि थे जिन्होने अपनी कविता से मानसिक क्रान्ति पैदा की। जीवन की कला के इस सच्चे कलाकार ने देश की रक्षा के लिए ही नहीं, परिवार की रक्षा के लिए भी संघर्ष किया। दिन-रात रोटी कमाई तथा अवसाद के क्षणों में काव्य लिखा। इनकी प्रशंसा करते हुए भगवती चरण वर्मा जी ने कहा था- दिनकर हमारे युग के एकमात्र नहीं तो सबसे अधिक प्रतिनिधि कवि थे। किन्तु दुख की बात तो यह थी कि जीवन का सर्वोत्तम काल रोटी-रोज़ी कमाने में बीत गया।
दिनकर जी का मानना था कि कविता केवल कविता है। मानवीय वेतना के तल में जो घटनाएँ घटती हैं, जो हलचल मचती है, उसे शब्दों में अभिव्यक्ति देकर हम संतोष पाते हैं। यदि देश और समाज को इससे शक्ति प्राप्त होती है तो यह अतिरिक्त लाभ है। दिनकर जी साहित्य में रवीन्द्र नाथ , इकबाल तथा इलियट से प्रभावित थे।
प्रभावशाली तेजस्वी व्यक्तित्व होने के साथ-साथ आवेश में भी जल्दी आते थे। ताँडव कविता में उनका यही रूप मिलता है। १९३५ में उन्होने कवि-सम्मेलन आयोजित किया तथा अंग्रेजों के विरूद्ध कविता पढी। अंग्रेजों के कान खड़े होगए। इसी समय रेणुका निकली जिसका स्वागत करते हुए सम्पादकीय में लिखा गया- रेणुका के प्रकाशन पर हिन्दी वालों को उत्सव मनाना चाहिए। अंग्रेज पुनः सजग हो गए। उसका अनुवाद करवाया गया तथा हुँकार प्रकाशित होने पर उन्हें चेतावनी भी दी गई। विशेष बार यह थी कि विद्रोह का बीज बोने वाला कवि अंग्रेज सरकार की नौकरी भी कर रहा था और कविता के माध्यम से क्रान्ति का मंत्र भी फूँक रहा था। उन्हें दंड मिला- ४ साल में २२ तबादले हुए किन्तु दिनकर जी की कलम ना रूकी। सामधेनी में उन्होने गर्व से कहा-
हम दे चुके लहू हैं, तू देवता विभा दे
अपने अनल -विशिख से आकाश जगमगा दे।
उन्माद बेकसी का उत्थान माँगता हूँ
विस्फोट माँगता हूँ, तूफान माँगता हूँ।
उनकी कविता देशभक्ति के दीप जलाती रही । स्वाधीनता के लिए संघर्ष तीव्र होते रहे और कवि की लेखनी उनका उत्साह बढ़ाती रही-
यह प्रदीप जो दीख रहा है, झिलमिल दूर नहीं है।
थक कर बैठ गए क्या भाई, मंज़िल दूर नहीं है।
१९३९ -४५ तक राष्ट्रीय भावनाओं से ओतप्रोत लिखते रहे। सरकारी नौकरी की विवशता और गुलामी झेलते हुए भी राष्ट्रीयता का निर्भीक उद्घोष किया। कुरूक्षेत्र, रेणुका, नील कुसुम और उर्वशी उनके ४ स्तम्भ बन गए।
प्रभावशाली कवि को आवेश में आते देर ना लगती थी। १०४९ में जब वे वैद्यनाथ धाम गए तो उन्होने वहाँ ग्रामीण महिलाओं को जल चढ़ाने की प्रतीक्षा में काँपते देखा। पंडा किसी यजमान से पूजा करवा रहा था। फौरन दिनकर जी आवेश में आगए और बोले- हे महादेव लोग मुझे क्रान्तिकारी कवि कहते हैंऔर आप पंडे के गुलाम हो गए? इसलिए अगर मैं जल चढ़ाऊँ तो मेरे प्रशंसकों का अपमान होगा। इतना कहकर सुराही शंकर के माथे पर दे मारी।
पूँजीवाद के विरूद्ध उनके मन में आक्रोष था। विनय उनका स्वाभाविक गुण था। राष्टपति ने जब उनको अलंकृत पद्मभूषण से किया तब उन्होने अपनी प्रशंसा सुनकर मैथिली शरण गुप्त से कहा- आप सब के चरणों की धूल भी मिल जाए तो उसे अपने माथे पर लगा कर अभिमान नष्ट कर लूँ।
क्रोध और भावुकता के वे मिश्रण थे। एकबार अफसरी शान में एक गरीब आदमी पर छड़ी चला दी। लेकिन रात भर रोते रहे और सुबह उसे बुलाकर क्षमा माँगी और उसे रूपए दिए। जब तक वहाँ रहे उसकी मदद करते रहे। एक बार मद्रास में हिन्दी प्रचार सभा में उनका भाषण हो रहा था। एक छात्रने उनसे पूछा- क्या जीवन में भी आप उतने ही क्रोधी हैं जितने काव्य में दिखाई देते हैं ? दिनकर जी ने कहा- हाँ। किन्तु क्रोध के बाद मुझे रोना आता है।
गोष्ठियों में प्रथम कोटि के नागरिक का व्यवहार करते। प्रतिवर्ष फिल्मों की राष्टीय पुरस्कार समीति के सदस्य रहते। संगीत, नाटक, साहित्य अकादमी और आकाशवाणी की राष्ट्रीय सलाहकार समिति के कर्मठ सदस्य रहे। लेकिन देहाती संस्कार उनमें प्रबल थे। निपट किसानों के समान खेनी भी खाते थे। स्वभाव से ईमानदार थे किन्तु नकली विनम्रता से उन्हें चिढ़ थी।
राष्ट-कवि के रूप में प्रसिद्धि रेणुका के साथ ही प्राप्त हो गई थी , हुँकार से और व्यापक हुई। कलाकार कहलाने के लिए मात्र कल्पना में भटकना उन्हें बिल्कुल भी प्रिय ना था। हुँकार के बाद रसवन्ती आई। कुरूक्षेत्र का प्रकाशन बाद में हुआ। वे आरम्भ से ही सोचते थे- हिंसा का प्रतिकार हिंसा से ही लेना पडता है-
क्षमा शोभती उसी भुजंग को जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दन्त हीन, विषरहित,विनीत,सरल हो।
वे देश में साधु-संतो की अपेक्षा वीरों की आवश्यकता पर बल देते थे-
रे! रोक युधिष्टिर को ना यहाँ, जाने दे उसको स्वर्ग धीर।
पर फिरा हमें गाँडीव गदा, लौटा दे अर्जुन -भीम वीर।
जिस भ्रष्टाचार से देश आज परेशान है उसका संकेत दिनकर जी ने बहुत पहले ही दे दिया था। उन्होने लिखा था- टोपी कहती मैं थैली बन सकती हूँ,
कुरता कहता मुझे बोरिया ही कर लो।
२५ अप्रैल १९७४ को यह महान आत्मा परमात्मा में विलीन हो गई। साहित्याकाश में दिनकर जी सदा-सर्वदा विराजमान रहेंगें और हर युग में उनकी कविता राष्टीय भावनाओं का संचार करती रहेगी। उस महान साहित्यकार को मेरा शत-शत प्रणाम।
आवाज़ पर अमिताभ मीत की आवाज़ में दिनकर की दो कविताएँ ('हाहाकार' और 'बालिका से वधू') सुनें।
रामधारी सिंह दिनकर- चंद स्मृतियाँ
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19 कविताप्रेमियों का कहना है :
दिनकर जी के बारे में इतना सुंदर आलेख पढकर हृदय मंत्र-मुग्ध हो गया।
उनकी जन्म-शती पर सबको बधाईयाँ!
राष्ट्रकवि को शत शत नमन और इतने अच्छे आलेख के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद।
बहुत सुंदर लिखा है आप को बधाई
महान कवि को प्रणाम
सादर
रचना
आलेख पढ़कर बहुत अच्छा लगा और दिनकर जी के जीवन से कुछ अनुकरणीय भी जानने को मिला. बहुत धन्यवाद!
हिन्दयुग्म इसी रह पर अग्रसर रहे ,सुंदर भावभीनी श्रधांजलि है श्यामसखा `श्याम
दिनकर जी की बारे में २ पेज में कुछ कह पाना सूरज को दीये दिखाने जैसा है ,ऐसी महान हस्तिया कभी कभी इस धरा पर अवतरित होती है जो सिर्फ़ अपनी आवाज पर देशवासियों के सुप्त ह्रदय में क्रांति के सिंघनाद से जोश ओ जूनून भर देती है , आपने संक्षेप में जितना लिखा है ,बढ़िया लिखा है ....
दिनकर जी के बारे में पढ़कर बहुत अच्छा लगा । यह लेख भी कम में बहुत कुछ समेट लेता है । दिनकर जी के जन्मदिन पर सम्पूर्ण कविजगत् एवं राष्ट्रभक्तों को बधाई । साथ ही आज दो और खास लोगों का जन्मदिन है । एक तो हैं भगत सिंह और दूसरी हस्ती का नाम है ...
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लता मंगेशकर । उनके जन्मदिन पर उन्हें तथा उनके सभी चाहने वालों को बधाई ।
आज जन्मे सभी लोगों को मेरी तरफ़ से बहुत सारी बधाइयाँ. शहीदेआजम भगत सिंह, राष्ट्र
कवि राम धारी सिंह दिनकर और स्वर कोकिला लता मंगेशकर जी के जन्मदिन को पैदा हुए व्यक्ति भी खास हो जाते है ..हिंद युग्म के प्रयास के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
आपका स्क्रैप औरकुट पर देखा था.. मैंने यह पोस्ट पढ रखी थी, मगर जल्दबाजी में कमेंट नहीं किया था.. :)
बहुत अच्छा लगा जानकर कि आज दिनकर जी का जन्मदिन है..
धन्यवाद..
आज मैंने दिनकर जन-शताब्दी पर ढेरों आलेख पढ़े, लेकिन आपने जितने कम शब्दों में राष्ट्रकवि को श्रद्दाँजलि दी, वो कोई नहीं कर सका। बहुत शानदार पेशकश। आपको साधुवाद।
दिनकर को शत् शत् प्रणाम
दिनकर जी के बारे में आपके द्वारा कही गई बातें उनके व्यक्तित्व ko और करीब से जानने में सहायक सिद्ध हुई है.
दिनकर जी मेरे पसंदीदा कवियों में से एक है उनकी कुरूछेत्र मुझे बेहद पसंद है.पर mai उनके बारे में इतना कुछ नही जानती थी जितना इस लेख के द्वारा jana है.
कवि भी एक व्यक्ति होता है जिसका परिवार भी होता है और ज़िम्मेदारियाँ भी
श्रध्धेय दीनकर जी मेरे ताऊजी की पुत्री गायत्री दीदी की शादी के समय हमारे घर पधारे थे
और बहुत प्रसन्न थे, उनका खुला, हास्य और गौर वर्ण चेहरा आज भी स्मृतियोँ मेँ अँकित है
उन्हेँ मेरे नमन ~~
ये आलेख बहुत बढिया लगा !
- लावण्या
दिनकर जी के बारे मै इतना कुछ जान ने के बाद मै भी उनके भक्तो मै शामिल हो गया हूँ..
आपने उनका चरित्र बहुत सुन्दर चित्रित किया है..मज़ा आ गया...
सादर
शैलेश
नभ से पुष्प गिरें वसुधा पर
मेघ बजायें ढोल...
अमर कवि दिनकर सूर सम
रत्नश्रेषठ अनमोल....
कलम आज उनकी जय बोल
कलम आज उनकी जय बोल
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...
बहुत बढ़िया राष्ट्कवि को मेरा नमन
बहुत ही कम शब्दों में बेहद नपा तुला आलेख,अच्छा लगा पढ़कर.
आलोक सिंह "साहिल"
बहुत अच्छी जानकारी शोभा जी। दिनकर जी के बारे में इतना सब बताने के लिये धन्यवाद।
hindyugm kee parikalpana mohak hai.dinkar jee par sundar prastuti.
rashtra kavi 'hind' kee "AWAZ'bana.shraddha aur anand ka 'yugm' hua.
main 'HIND-YUGM' parivar ke sahodaron ko nimantrit kar raha hoon.
sadyah main ek pariyojna 'SAPT SAPTI SAPTARSHI' par prayas kar raha hoon.prakalp hai hindi sahit bharat kee sat mukhya bhashaon ke sat sat pramukh kaviyon kee saat saat chunee hui rachnaon kee sur shravya drishya(animation sahit) samayojit saat documentriyan banana.
hindi aur 'dinkar' se suruat samajh sakte hain aur unkee bal kavita 'chand ka hatth'pahala chunav.anya ka chunav shayad mere blog par sahee lage lekin main sab ke sujhav jarooree samajhata hoon.
isme mujhe har chetra me vishesh kar animation me sahyog chahiye.yaha poora prakalp 'NOT FOR PROFIT' avadharana par sankalpit hai.aur sabhee ka swagat hai.sampark rajsinh@hotmail.com ph:(usa)1-848-248-0217.
Very nice information shared about Kavi Dinkar. Vaise bhi shayad hi koi vyakti aisi ho jisne Kavi Dinkar ke baaremein na jana ho! per aap ne to unke baaremein itna sab kuchh bata kar ek badhiya pariachay de diya unka apne vachakon ko.
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