कण कण में बसता भगवान
जन जन में रहता भगवान,
माया तेरी बड़ी निराली
एटम में दिखता भगवान ।
इलेक्ट्रान है छोटा कितना
सुई नोक का खरब है जितना,
एटम में जब छलांग लगाए
ऊर्जा का इक अंश निकलता ।
स्फुरण, प्रस्फुरण यह दिखाते
स्पेक्ट्रम से पहचान बताते,
नगण्य कहो तुम इनको कितना
अनेक प्रभाव यह दिखलाते ।
एटम खुद है छोटा इतना
नाभिक का तो फिर क्या कहना,
लेकिन इसे विखंडित करके
मिलती ऊर्जा चाहो जितना ।
विकिरण के स्वरूप तो देखो
एल्फा, बीटा, गामा, परखो,
यह भी ऊर्जा अपनी रखते
खूब संबाल कर इनको रखो ।
कवि कुलवंत सिंह
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17 कविताप्रेमियों का कहना है :
कविता और विज्ञान का अच्छा संगम
?!
बल उद्यान पर पोस्ट होनी चाहिए थी ano
कविता विज्ञान के हिसाब से तो ठीक है पर एक सवाल है
माना कि एटम कण कण मे है और भगवान भी पर दोनो की तुलना कैसे नही हो सकती?
मेरे हिसाब से anonymous जी ठीक कह रहे है ये कविता बाल उद्यान के लिए ज्यादा उपयोगी है
सुमित भारद्वाज
कविता विज्ञान के हिसाब से तो ठीक है पर एक सवाल है
माना कि एटम कण कण मे है और भगवान भी पर दोनो की तुलना कैसे हो सकती?
मेरे हिसाब से anonymous जी ठीक कह रहे है ये कविता बाल उद्यान के लिए ज्यादा उपयोगी
सुमित भारद्वाज
यह कविता बाल-उद्यान के लिए अधिक उपयुक्त थी।
विज्ञान की भूली बातें याद आ गई
सादर
रचना
shayad,baki sabhi log thik kah rahe hain.
ALOK SINGH "SAHIL"
मुझे कविता कुछ कम पसंद आई.
थोडी रुखी-रुखी लगी
छमा चाहती हु.
Is kavita ko padh kar mujhe Shri maan Brijesh Pathak Maun ji(the then famous personality for art, paining, sculptors, poetry etc) ka phone aaya aur ek ghante tak baat karte rahe...
Is kavita par Doordarshi Shri Nand Kishor Nautiyaal ji, President, Maharashtra Hindi Sahitya Akademy ne apni baat me (chirantan) me vishesh roop se tippani ki hai.
Hum sabhi bate karte hain Bhagwaan ki.... Lekin usko feel karne ka waqt zindagi me kabhi kabhi hi aa pata hai aur woh bhi kuch logo ki zindagi me hi.....
Dipali Ji,
Aap ki balaag tippani mujhe adhik khushi deti hai.. kshama shabd ka prayog kar mujhe chota mat banaiye..
कुलवंत जी,
आपने कहा बिल्कुल ठीक है, परन्तु इसी भाव को किसी और तरीके से कहा जाता तो शायद इसे "बाल०उद्यान" योग्य नहीं कहा जाता।
धन्यवाद
कुलवंत जी, फ़ोन चाहे किसी का भी आया हो, यह बालकविता ही है और मुझे तो बचपन में भी ऐसी कविताएँ नहीं भाती थी।
आप अनुभवी हैं। बेहतर समझ सकते हैं।
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