अब-1
अब कौन कहता होगा
तुम्हारी अंगड़ाइयों को हवाएँ,
नहीं झेलनी पड़ती होंगी ना
वे पागल कविताएँ।
अब-2
अब भी भरती होगी वो गली
बारिशों में लबालब,
पैर सन जाते होंगे ना
दो बाँहों के बिना?
अब-3
अब कहाँ होता होगा
बिन छुए प्यार,
कौन होगा बेवकूफ़
कि तेरी आँखें ही देखता रहे!
लड़कियाँ
शुक्र है कि
भगवान ने बनाई लड़कियाँ
वरना पुराने दोस्तों से मिलने पर
क्या बच जाता कॉमन,
बात करने को?
आस्था
वो मुस्कुराते हुए
चढ़ती थी सीढ़ियाँ
तो हाय राम!
भीड़ जुट जाती थी मन्दिर में,
गेरुआ पहन लेते थे
शहर के सारे नास्तिक।
पहला चुम्बन
पहले चुम्बन के बाद
उसे आई थी शर्म,
इतनी कि
लाल चेहरा छिपाने को
फिर मेरे होठों में आ छुपी थी।
अब-4
अब तो नहीं छीनता होगा
सुबह सुबह कोई अख़बार।
आराम से पढ़ती हो ना
फ़िल्मों वाला पन्ना
अब अकेले?
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
30 कविताप्रेमियों का कहना है :
khoobsoorat.
khas taur se akhbar akele padhne ka vaakya
बाँध दिया ना उपर का पलक
सर के बालों से और
नीचे का बिनूना दाढी से
अब !
फिर से गुनाहगार गौरव की कलम ही है ।
अब कहाँ होता होगा
बिन छुए प्यार,
कौन होगा बेवकूफ़
कि तेरी आँखें ही देखता रहे!
:))
अब कौन कहता होगा
तुम्हारी अंगड़ाइयों को हवाएँ,
नहीं झेलनी पड़ती होंगी ना
वे पागल कविताएँ।
अच्छी पंक्तियां हैं...
हूँ.... अच्छी बात है-
वो मुस्कुराते हुए
चढ़ती थी सीढ़ियाँ
तो हाय राम!
भीड़ जुट जाती थी मन्दिर में,
गेरुआ पहन लेते थे
शहर के सारे नास्तिक।
अलमस्त होके लिखी हैं "कमबैक" क्षणिकाएं....क्या बात है.....नए मूड में देखकर अच्छा लगा..."मीटिंग" का असर तो नहीं है....
ये ख़ास तौर से अच्छी लगीं....
"अब भी भरती होगी वो गली
बारिशों में लबालब,
पैर सन जाते होंगे ना
दो बाँहों के बिना?"
"अब कहाँ होता होगा
बिन छुए प्यार,
कौन होगा बेवकूफ़
कि तेरी आँखें ही देखता रहे!"
"वो मुस्कुराते हुए
चढ़ती थी सीढ़ियाँ
तो हाय राम!
भीड़ जुट जाती थी मन्दिर में,
गेरुआ पहन लेते थे
शहर के सारे नास्तिक।"
क्षणिकाएं मीटिंग से पहले की ही हैं निखिल भाई। मीटिंग के बाद का अभी कुछ पोस्ट नहीं किया है। :)
अब-३ , आस्था और लड़कियाँ पसंद आईं। बाकी में लगा कि कुछ चुक रहा है।
बधाईयाँ।
आते ही कमाल कर दिया। सभी बढ़िया है भाई। 'चुम्बन' वाला अधिक कलात्मक है। अंतिम में 'अब अकेले?' नहीं भी होता तो काम चल जाता। आपका क्या कहना है?
मेरी तरह के नास्तिक इलाहाबाद के हनुमान मंदिर तो इसीलिए जाते थे (याद है मुझे :) )
"अब कहाँ होता होगा
बिन छुए प्यार,
कौन होगा बेवकूफ़
कि तेरी आँखें ही देखता रहे!"
विशेष रूप से पसंद आई !!
और हाँ बढ़िया है शैलेश बहाने से ही सही ,मन्दिर तो जाते रहे.....
हल्का सा मुझे भी लगा तन्हा भाई। ध्यान रखूंगा।
शैलेश जी, मैं तो जीवन में गिनी चुनी बार ही मंदिर गया हूं :) और इसलिए तो नहीं जा पाया।
पहला चुम्बन
पहले चुम्बन के बाद
उसे आई थी शर्म,
इतनी कि
लाल चेहरा छिपाने को
फिर मेरे होठों में आ छुपी थी।
what a way
lines are well composed
regards
शुक्र है कि
भगवान ने बनाई लड़कियाँ
वरना पुराने दोस्तों से मिलने पर
क्या बच जाता कॉमन,
बात करने को?
ye common si baat bhi bahut achchi hai ,likhte rahiye ,
अनुभूति को सहज सुंदर अभिव्यक्त करने में आओ सफल हुए हैं,सफर जारी रखें श्याम सखा श्याम
abki bar aayee kavita yugm par anoonimus ki badhhee
मुझे इनका हयुमर पसंद आया. बधाई!
gauarv is back with a bang और पूरे युग्म पर जश्न है....कमाल
pehle chumban bahut pasand aayi mujhe....
mubarak ho gaurav saab.....
bahut achche.......
वाह ..बहुत सुन्दर..
जितनी तारीफ की जाइए कम है..
शैलेश
अब कहाँ होता होगा
बिन छुए प्यार,
कौन होगा बेवकूफ़
कि तेरी आँखें ही देखता रहे!
नए अंदाज में सच्ची बातें .बहुत अच्छी लगी शायद एसा ही होता है
सादर
राचना
हमेशा की तरह बहुत अच्छा लिखा है. सस्नेह.
"अब कहाँ होता होगा
बिन छुए प्यार,
कौन होगा बेवकूफ़
कि तेरी आँखें ही देखता रहे!"
kuch pagal hain ab bhi...
गौरव भाई,तीसरी क्षणिका ने तो कमाल कर दिया.
बाकि सभी क्षणिकाएं भी अच्छी लगी.
युग्म पर आपको फ़िर से देखकर बहुत खुशी हुई.
आलोक सिंह "साहिल"
"ख़याल फेंका है रफ्तार-e-बेपनाह के साथ..
..
यूँ उडे के खुदा तक पहुंचे ....!
.
.
के उसके पार जो जाएगा मुझ तक पहुंचेगा !"
- गुलज़ार
आपकी क्षणिकाएं पढ़ कर ये क्षणिका याद आई है!
हिन्दयुग्म पर कई दिनों के बाद कुछ ऐसा पढने को मिला जो ख़ुद से अब तक बांधे हुए है.सभी छंद बहुत ही सुंदर है....
हर बार पढने पर अलग-अलग रंग नज़र आता है.
गौरव जी,
पढते ही पता लग गया कि ये आपने लिखा होगा
पढकर अच्छा लगा
अब तो नहीं छीनता होगा
सुबह सुबह कोई अख़बार।
आराम से पढ़ती हो ना
फ़िल्मों वाला पन्ना
अब अकेले?
ये वाला बहुत ही बढिया लगा
सुमित भारद्वाज
सारी क्षणिकायें पसंद आईं.. पर ये वाली थोड़ी ज्यादा
अब कहाँ होता होगा
बिन छुए प्यार,
कौन होगा बेवकूफ़
कि तेरी आँखें ही देखता रहे!
लिखते रहें गौरव भाई... पढ़कर अच्छा लगता है..
i like u dear. can u talk with me?
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