हिन्द-युग्म की ओर से सभी भारतीयों को 63वीं स्वतंत्रता दिवस की बधाइयाँ। आज हम इस अवसर पर आपके लिए लेकर आये हैं ढेर सारी कविताएँ। हिन्द-युग्म लगभग 38 महीने पहले शुरू हुआ था। हिन्द-युग्म के संग्रहालय में बहुत सी ऐसी रचनाएँ हैं जो अब भी ताज़ी हैं। चिंताएँ स्थाई हो गई हैं। आशा है हमारी यह प्रस्तुति आप पसंद करेंगे-
2009 के अंक से
2008 के अंक से
- 15 कवियों की कविताएँ एक साथ (प्रतिभागी कवि- | मयंक सक्सेना | सुधीर सक्सेना 'सुधि' | प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध" | हरकीरत कलसी 'हकी़र' | सी आर राजश्री | विवेक पांडेय | वीनस केशरी | संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी | प्रदीप पाठक | विवेक रंजन श्रीवास्तव "विनम्र" |विद्याधर दुबे |कमलप्रीत सिंह | प्रदीप मानोरिया | देवेन्द्र पाण्डेय | निशिकांत तिवारी।)
- आगे बढ़ता देश हमारा
- आज़ाद हिंद
- स्वाधीनता दिवस
- आज के युवा
- एक ख़ास पल
- गणतंत्र दिवस
- अट्ठावन बरस गणतन्त्र के
2007 के अंक से
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5 कविताप्रेमियों का कहना है :
Sundar Pryas..
kavita prstut karane ke liye dher sari badhayi..
ek ek karake padenge..
dhanywaad..
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई..हिंद युग्म को..
सभी कविताएँ बहुत प्रेरणा श्रोत हैं..
बधाई..
एक देश है जिसकी आधी आबादी,
डूबोती है पावरोटी चाय में,
और अभिनय करती है खुश होने का....
सड़क के किनारे फटी हुई चादर में,
माँ छिपाती है अपना बच्चा,
पिलाती है दूध.....
सभी कविताये अच्छी लगी. लेकिन एक खास पल पढ़कर यह रामधारी सिंह दिनकर की कविता याद. आई.
श्वानो को मिलता दूध वस्त्र भूखे बच्चे अकुलाते हैं.
मन की हड्डी से चिपक जड़ों में रत बिताते हैं.
मुझे तो बहुत गर्व होता है .जब अपने देश के लिए लिखता है .सारे रचनाकारों को बधाई .
हर कोई मुस्करा रहा था .शानदर कार्यक्रम लगा देश भक्ति के सफल आयोजन के लिए बधाई .
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