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Sunday, August 16, 2009

तुम्हें नहीं लगता कि हिन्दुस्तान कठिन नाम है


प्रमोद कुमार तिवारी की कविताओं की सच-बयानी बिना किसी आडम्बर और लाग-लपेट के साथ आती हैं, इसलिए इनकी कविता पढ़ने के बाद पाठकों के सामने दूध और पानी अलग-अलग दिखाई पड़ते हैं। ऐसे दो उदाहरण हम पहले भी 'ठेलुआ' और 'दीदी' कविता के माध्यम से प्रस्तुत कर चुके हैं। आज एक नमूना और॰॰॰॰

भीड़

चली आ रही थी वह
भारी पावों से सबकुछ रौंदती
चेहराविहीन
गले के ऊपर कुछ नहीं
गर्दन के बाहर लटक रही थी
लंबी सी जीभ
जीभ पर थे खून के थक्के
बड़े-बड़े पैर बुलडोजर जैसे
किसी ने बताया यह भीड़ है
व्यक्ति को करती निमंत्रित
साथ चलने को
इन्कार का मतलब कुचलना
भीड़ नहीं बना सकती थी
कोई स्कूल या पुल
क्योंकि नहीं थे उसके पास हाथ
केवल पैर, बुलडोजर जैसे
और बहुत बड़ा पारदर्शी पेट
पेट में दिख रही थी कई चीजें-
बेवा का सिन्दूर,
एक तीसवर्षीय बूढ़े की पूरी जवानी
पेट में दिख रही थी एक सूली
जिस पर चढ़ा था एक मासूम जोड़े का प्रेम

भीड़ बाँट रही थी कुतूहल
दे रही थी मुक्ति उतरदायित्व से
बेचारी पुलिस कहाँ डाले हथकड़ी
किसका ले फोटो न पता न ठिकाना
देखते-देखते गायब
सिर्फ़ बड़े-बड़े पैर बुलडोजर जैसे
पैरों के नीचे से निकल रही थीं
तहस नहस दुकानें
खंडहर घर, अधजली किताबें
आँख का पानी
और ऐसा बहुत कुछ
जिसकी पहचान वर्षों बाद होनी थी
मैने लिया भीड़ का साक्षात्कार
तुम्हारा नाम- भीड़
तुम्हारे पूर्वज- भेड़
घर कहाँ है तुम्हारा
.....................
अमेरिकी हो, बिहारी हो, गुजराती हो?
मैं भीड़ हूँ
लक्ष्य क्या है तुम्हारा?
हुआ गलती का अहसास
मैं पहुँचा दूरी बना कर चल रहे
उसके दिमाग के पास
पूछा भीड़ का लक्ष्य
उसने पहले ठंडी निगाहों से घूरा
फिर खामोश सी आवाज में बोला
तुम्हें नहीं लगता
कि हिन्दुस्तान
कठिन नाम है!!!

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11 कविताप्रेमियों का कहना है :

neelam का कहना है कि -

तुम्हें नहीं लगता
कि हिन्दुस्तान
कठिन नाम है!!!

वाकई हिन्दुस्तान बड़ा कठिन नाम है ,इस भीड़ के लिए ,जरूरत सिर्फ इस बात की है हम न तो भीड़ हो और न ही इस भीड़ का हिस्सा ही हो ,
गहरा मंथन करने को बाध्य करती आपकी कविता

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

रोंगटे खड़ी कर देने वाली कविता।
--मैं पहुँचा दूरी बनाकर चल रहे
उसके दिमाग के पास
पूछा भीड़ का लक्ष्य
-------------------
------------------
कि हिन्दुस्तान
कठिन नाम है
पूरी कविता की, अल्प टिप्पणी के माध्यम से व्याख्या करना तो संभव नहीं है
पर इतना अवश्य कहा जा सकता है कि इसने भींड़ को भलीभांति परिभाषित किया है
साथ ही देशवासियों को सचेत भी किया है कि इसका लक्ष्य पूरा हिन्दुस्तान भी हो सकता है।
--हिन्दयुग्म को इस कविता के प्रकाशन के साधूवाद।
-देवेन्द्र पाण्डेय।

manu का कहना है कि -

ek badhawaas sach.....
aapne badi khoobsoorti se bayaan kiyaa hai..

Shamikh Faraz का कहना है कि -

यह पंक्तियाँ सबसे अच्छी लगे.

मैने लिया भीड़ का साक्षात्कार
तुम्हारा नाम- भीड़
तुम्हारे पूर्वज- भेड़
घर कहाँ है तुम्हारा

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

बेहद उम्दा रचना..
भीड़ का हिस्सा है हम सब भी और वो हिस्सा जिसे कोई नियंत्रित नही कर सकता..
यह भीड़ खुद से ही नियंत्रण पा सकती है..

आपने बेहतर चरित्र चित्रण किया भीड़ का....सुंदर कविता.

Nikhil का कहना है कि -

सफर में भीड़ तो होगी, जो चल सको तो चलो...
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो...

सदा का कहना है कि -

तुम्हें नहीं लगता
कि हिन्दुस्तान
कठिन नाम है!
बहुत ही गहरे भावों के साथ प्रस्‍तुत यह रचना बहुत ही अच्‍छी लगी ।

Manju Gupta का कहना है कि -

संत चेलन हमें तो असंत लगा . कल्पना के लिए बधाई .

Manju Gupta का कहना है कि -

अति गहरी रचना है.बधाई

Akhilesh का कहना है कि -

gambhir rachna hai . padh ker kuch sochne per vivas hona pada.
kaash kavi samadhan bhi deta.

Manju Gupta का कहना है कि -

संत चेनल वाला बैठक का कमेन्ट गलती से यहाँ आ गया है यह कमेन्ट इस के लिए नहीं है .

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