पिछले हफ्ते हमने पंडीजी यानी प्रमोद कुमार तिवारी की कविता 'ठेलुआ' प्रकाशित की थी, जिसे पाठकों ने खूब सराहा। प्रमोद कुमार तिवारी की कविताओं में गाँव अपनी सभी विषमताओं के साथ जीता है। जहाँ मनीष वंदेमातरम् की 'न्याय' कविता गाँवों की तथाकथित डायनों के प्रति ग्रामीणों के बर्ताब का विभत्स चेहरा और वातावरण प्रस्तुत करती है, वहीं प्रमोद की कविता 'दीदी' डायन बनने की पूरी कहानी और उसके पीछे का समाजशास्त्र खोल देती है।
दीदी
दीदी मुझसे एक खेल खेलने को कहती
एक-एक कर
वह चींटों के पैर तोड़ती जाती
गौर से देखती उनके घिसट कर भागने को
और खुश होती।
एक दिन देखा, छुटकी की आँख बचाकर
दीदी ने उसकी गुड़िया की गर्दन मरोड़ दी।
पड़ोस की फुलमतिया कहती है
तेरी दीदी के सर पर चुड़ैल रहती है
कलुआ ने आधी रात को तड़बन्ना वाले मसान पर
उसे नंगा नाचते देखा था।
दादाजी ने जो जमीन उसके नाम लिखी थी
हर पूर्णमासी की रात, दीदी वहीं सोती है
इसी कारण उसमें केवल कांटे उगते हैं।
स्वांग खेलते समय दीदी अक्सर भूतनी बनती
झक सफेद साड़ी में कमर तक लंबे बाल फैला
वह हँसती जब मुर्दनी हँसी
तो औरतें बच्चों का मुँह दूसरी ओर कर देतीं।
माँ रोज एक बार कहती है
कलमुँही की गोराई तो देखो
जरूर पहले राक्षस योनी में थी-
मुई! जनमते ही माँ को खा गई
ससुराल पहुचते ही भतार को चबा गई
अब हम सब को खाकर मरेगी
माँ रोज एक बार कहती है।
दीदी को दो काम बहुत पसंद हैं-
बिल्कुल अकेले रहना
और रोने का कोई अवसर मिले
तो खूब रोना
अंजू बुआ की विदाई के समय
जब अचानक छाती पीट-पीट रोने लगी दीदी
तो सहम गईं थी खुद अंजू बुआ भी।
पत्थर से चेहरे पर बड़ी-बड़ी आँखों से
दीदी जब एकटक देखती है मुझे
मैं छुपने के लिए जगह तलाशने लगता हूँ।
दीदी के साथ मैं कभी नहीं सोता
वह रात को रोती है, एक अजीब घुटी हुई आवाज में
जो सुनायी नहीं पड़ती सिर्फ शरीर हिलता है।
आधी रात को ही एक बार उसने
छोटे मामा को काट खाया था
और इतने जोर से रोई थी
कि अचकचाकर बैठ गया था मैं।
दीदी मुझे बहुत प्यार करती है
गोद में उठा मिठाई खाने को देती है
उस समय मन ही मन हनुमान चालीसा पढ़ता रहता हूँ
और पहले मिठाई को जेब में
फिर चुपके से नाली में डाल आता हूँ।
दीदी मेरे सारे सवाल हल कर देती है
पर छुटकी बताती है-सवाल दीदी नहीं,
चुड़ैल हल करती है।
दीदी से सभी डरते हैं
बस! शहरवाली सुमनी को छोड़कर
सुमनी बताती है-
माँ ने ही अपनी सहेली के बीमार लड़के से
दीदी की शादी करायी थी!
सुमनी तो पागल है, बोलती है-
घिसट कर ही सही
किसी के संग भाग गई होती
तो दीदी ऐसी नहीं होती।
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
अग्यान और अंधविश्वास को दर्शाती कविता
बढिया
घिसट कर ही सही
किसी के संग भाग गई होती
तो दीदी ऐसी नहीं होती।
kya jabardast tamaacha hai ,kavita ke maadhyam se samaaj ki sadi soch ko ,
iske aage kya kahoon
दीदी से सभी डरते हैं
बस! शहरवाली सुमनी को छोड़कर
सुमनी बताती है-
माँ ने ही अपनी सहेली के बीमार लड़के से
दीदी की शादी करायी थी!
सुमनी तो पागल है, बोलती है-
घिसट कर ही सही
किसी के संग भाग गई होती
तो दीदी ऐसी नहीं होती।
क्या खुबसूरत अंत दिया है आपने. बधाई.
पूरी कविता सांस रोक कर पढ़नी पडी,,,
और बाद में एक गहरी सांस निकली,,
ऐ दोस्त, कहाँ है वो रंग ओ बू किस्से में तेरे
जिसे हम ने देखा था, जिसे हम ने जाना था
-मुहम्मद अहसन
वाह... मन के भीतरी कोने के तक सिहरन दौड़ गयी.. बहुत खूब..
वह रात को रोती है, एक अजीब घुटी हुई आवाज में
जो सुनायी नहीं पड़ती सिर्फ शरीर हिलता है।
आधी रात को ही एक बार उसने
छोटे मामा को काट खाया था
और इतने जोर से रोई थी
कि अचकचाकर बैठ गया था मैं।
अत्यंत मार्मिक रचना
बधाई |
सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव
सब जन समरथ लगि रहें, कउनउ ना कमजोर|
अनगढ़ पत्थर लगि रहें, अंतर्मन में चोर||
दीदी के बारे में एक चीज़ लिखना भूल गए.....ये दीदी हर गांव में चेहरा बदल-बदल कर मिल जाती हैं.....चुड़ैल की तरह....
कविता के रूप मे एक दम जीता जागता सत्य मैने अस्पताल मे नौकरी करते हुये अपनी आँखों से ऐसी लडकियों को देखा है जिन्के बारे मे इस कविता मे लिखा गया है फिर भी उनकी संवेदनाओं को इस तरह व्यक्त ना कर पाती जैसे इस कवि ने तस्वीर खींची है मन को भिगो देने वाली् लाजवाब कविता के लिये लेखक को बधाई
बहुत ही मार्मिक कविता
दिल को छू गयी
आज भी अंधविश्वास की डोर में इतना उलझा है समाज की उसे निकालना मुश्किल है
इस अन्धविश्वास से पीड़ित एक युवती की स्थिति बहुत अच्छी प्रकट की आपने अपनी कविता में बधाई
कलमुँही की गोराई तो देखो
जरूर पहले राक्षस योनी में थी-
मुई! जनमते ही माँ को खा गई
ससुराल पहुचते ही भतार को चबा गई
अब हम सब को खाकर मरेगी
माँ रोज एक बार कहती है।
Jabardast Kavitaa...Jordaar ant
तो दीदी ऐसी नहीं होती, बहुत ही सजीव चित्रण मर्मस्पर्शी भावों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार्
तिवारी जी,
आपकी कविता ने एक कहानी को जीवंत किया है , बहुत मार्मिक दास्तान है. अच्छी कविता है. उस से भी अच्छी एक बात लगी कि आपने एक समस्या को उठाया, उसकी जड़ तक पहुंचे ओर साथ में एक समाधान भी प्रस्तुत किया. समाज को आज ऐसे समाधान की ही आवश्यकता है, समस्याएं तो बहुत से लोग उठाते हैं, पर समाधान नहीं मिलता. साधुवाद.
कविता से अंध विश्वास का सच पता लगा .
बधाई.
बहुत अच्छी कविता.............
चुभता व्यंग्य..........
काश एक बार वो भी पढ़ते
जो दीदी को दीदी बनाते हैं...............
Mujhe wakt nahi mil pata, padh kar apni raaye dene ka, par aaj khana khaate wakt, hindyumg ko khola to ye aapki rachnaa, padhne lagi.. roti ka niwaalaa bich me hi rakh kar, padhi puri kavita..... bahut marm hai aur bahut gehri... ishwar aapki kalam ko vichaaro ko bahut aage badhaaye..
EK PAGAL HO CHUKE SAMAJ MEIN AISE HI KAVITAYEIN LIKHI JA SAKTI HAIN
PAHALI PANKTION MEIN EK HINSAK MAN PRTISHOD SE BHRA LEKIN JAKDA HUA MAN PRTIBIMBIT HO RHA HAI ... KAVI NE ANTIM PANKTI BAHUT SARTHAK KAHI HAI घिसट कर ही सही
किसी के संग भाग गई होती
तो दीदी ऐसी नहीं होती। SACHI BAAT YE HAI SHADI BYAH KE NAM PAR HAM LADKIYON KO BAHLATE FUSLATE HAI YE TO UN BECHARIYON KO BAD MEIN PATA CHLTA HAI KI UNKE SATH KAISA DOKH HO GYA HAI .
chudel hoti to gharme koy raheti jo lo bo leho wo ho ta nahi. fir 4 week ke baad to apni saheli ke sath saher chali gali or waha usne services joint kali services kar karte
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