परिभाषा:
मात्राएँ यदि तीस लघु, नौ गुरु मिलें सुजान।
उस दोहे को 'त्रिकल' कहें, 'सलिल' काव्य-विद्वान।।
नौ गुरु के सँग तीस लघु, मात्राएँ लें देख।
'सलिल' 'त्रिकल' दोहा रचें, शुद्ध बने अभिलेख।।
दोहे के इस प्रकार में 9 गुरु + 30 लघु = कुल 39 अक्षर होते हैं, जिनकी कुल मात्राएँ 9 x 2 = 18 + 30 = 48 होती हैं।
उदाहरण:
1. सुख-दुःख दो पद, रात-दिन, चरण चतुर्युग चार।
तेरह-ग्यारह विषम-सम, दोहा विधि अनुसार।। -सलिल
2. तन-मन यदि परवश हुआ, गँवा मान-सम्मान।
जीवन-मरण समान तब, सुमिर आत्म-अभिमान।। -सलिल
3. विषम चरण के अंत में, रखिये 'सनर' अवश्य।
'जतन' अंत सम चरण का, सार्थक कर कवि-कथ्य।। - सलिल
4. घट-घट भरी उदासियाँ, पनघट-पनघट प्यास।
गुमसुम-गुमसुम खेत हैं, पगडंडियाँ उदास।। -डॉ. रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर'
5. गज त्यौं सुमिरौं हरि तुम्हें, हम सुमिरें केहि काज?
हम गजगामिन हेतु हरि, तुमहुँ बनत जब ग्राह।। -अम्बिकाप्रसाद 'दिव्य'
6. कटि तनु भरे सुजंघ जुग, सब तन भरे उमंग।
खिलत जवानी पाइ मनु, खिलत रहत से अंग।। -रामचरित उपाध्याय
7. अगल-बगल, मुद-थल जुगल, अति कल इहिं बल पाय।
ताकत तिरिछेयी अहैं, सूधे को न बनाय।। - डॉ. राजेश दयालु 'राजेश'
8. नचत स्याम थिरकत पगनि, दलि दुःख-दल करि कुंठ।
दीन्यौ इक इक हिलनि मैं, एक-एक बैकुंठ।। - डॉ. राजेश दयालु 'राजेश'
उक्त दोहों में गुरु-लघु मात्राओं के संयोजन में चरणों या पदों का कोई प्रतिबन्ध नहीं है। किसी भी चरण या पद में मात्राएँ आवश्यकता के अनुसार हो सकती हैं किन्तु पूरे दोहे में 9 गुरु व 30 लघु मात्राएँ होना अनिवार्य है।
विविध काल के दोहकारों के उक्त उदाहरणों में मात्राओं के संयोजन की विविधता देखें किन्तु शब्दावली या भाषा सम-सामयिक ही रखें ताकि पाठक पढ़कर समझ और रस ले सकें।
आगामी लेख मालाओं में दोहों में गुरु मात्रा की संख्या क्रमशः कम होंगी और ऐसे दोहों की रचना के लिए छंद और भाषा पर अधिक अधिकार आवश्यक है। दोहा संग्रहों में भी ऐसे दोहे कम ही मिलते हैं। प्रयास यही है कि पर्याप्त संख्या में उदाहरण दिए जा सकें ताकि विविधता पर दृष्टि जा सके. पाठक भी ऐसे दोहे भेजें तो उन्हें भेजनेवाले के नाम सहित सम्मिलित किया जाएगा।
आगामी अंश में 8 गुरु + 32 लघु मात्राओं के कच्छप दोहे पर चर्चा होगी। पाठक स्वयं के अथवा अन्यों के लिखे त्रिकल और कच्छप दोहे दोहाकार के नाम सहित भेजें।
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
आचार्य जी
गुरु पूर्णिमा पर हमारा प्रणाम स्वीकार करें। त्रिकल दोहा बनाना आसान नहीं हैं फिर भी एक प्रयास किया है। आपके अवलोकनार्थ प्रस्तुत है-
घुमड़-घुमड़ बादल करें
पवन देख डर जाय
तपत-तपत धरती कहे
बरस प्यास ना जाय।
दोहों के बारे में अच्छी जानकारी.
हिन्द युग्म से जुड़ना सार्थक लगता है.
बहुत ही अच्छी जानकारी
आचार्य जी प्रणाम
त्रिकल दोहा रचने का एक प्रयास
१ १ १ १ १ १ १ १ १ १ १ २ १ १ १ १ २ १ १ २ १
सब जन समरथ लगि रहें, कउनउ ना कमजोर |
अनगढ़ पत्थर लगि रहें, अंतर्मन में चोर ||
१ १ १ १ २ १ १ १ १ १ २ २ २ १ १ २ २ १
सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव
शैलेशजी!
पथ को सुरुचिपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करने के लिए आभार.
अजित जी!
गुरु पूर्णिमा पर्व पर अनंत-अशेष शुभ कामनाएं.
आपने त्रिकल दोहा सही लिखा है बधाई. ८-१० त्रिकल दोहे लिखें तो सधने लगेगा.
अम्बरीश जी!
आपने भी त्रिकल सही लिखा है. बधाई . 'कउनउ'
की जगह 'कउनऊ' कर लीजिये.
बहुत ही सुन्दर और अच्छे दोहे आभार ।
प्रणाम आचार्य जी,
त्रिकल दोहा रचने का प्रयास जारी है, किन्तु अब तक बन नहीं पाया है. पाठ समझ में आ गया है. जैसे ही बन जाएगा, लेकर हाज़िर हो जाउंगी :)
साहित्कारों के दोहे गुरु पूर्णिमा पर हमारे लिए उपहार है.
बधाई.
धन्यवाद आचार्य जी,
सादर,
अम्बरीष श्रीवास्तव
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