कहते हैं कि कविता के केंद्र में आम आदमी होता हैं। लेकिन कुछ कविताएँ आम आदमी से भी पीछे की पाँत में खड़े लोगों की बात करती हैं। इनकी सोच, सामाजिक स्थिति और इनको समझने की साफ दृष्टि कुछ कविताओं में होती हैं। युवा कवि प्रमोद कुमार तिवारी कविता की उसी जमीन पर शब्दों के बीज़ डालते हैं। हिन्द-युग्म के प्रारम्भिक कवि मनीष वंदेमातरम् की कविताओं (जैसे- इस फागुन ज़रूर से ज़रूर आना, सनीचरी, बुचईया, मेरे गाँव की एक और बात, इस साल गाँव में बाढ़ आयी है, इस साल गाँव में 'रमलील्ला' नहीं हुई) में हम जिस गाँव-देहात की बातों की गंध सूँघते आये हैं, लगभग वैसे ही एक कविता आज हम आपको पढ़वा रहे हैं।
ठेलुआ
प्रमोद कुमार तिवारी
21-09-76 को कैमूर जिला (बिहार) के परसियां गांव में जन्म।
गांव से निकल कर इलाहाबाद विश्वविद्यालय, बीएचयू और जेएनयू (8 साल) में समय बिताया जहाँ पढ़ाई कम आवारागर्दी ज्यादा।
शास्त्रीय संगीत, पत्रकारिता और भोजपुरी में गहरी रुचि, कई वर्ष इनको दिया।
भोजपुरी की पहली साप्ताहिक समाचार पत्रिका द संडे इंडियन के भोजपुरी संस्करण को स्थापित करने में सहयोग। भोजपुरी और हिंदी की तमाम पत्रिकाओं में पिछले 10 वर्षों से रचनाएं प्रकाशित और आकाशवाणी तथा दिल्ली दूरदर्शन से प्रसारित।
लफ़्ज (उपसंपादक), विभोर (उपसंपादक), मीडिया-मंत्र (कंटेंट हेड) और इतिहास बोध पत्रिकाओं से लंबा जुड़ाव।
सम्मान- नवोदित लेखक सम्मान, हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार।
सृजनात्मक लेखन के लिए हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार द्वारा दो बार सम्मानित।
राष्ट्रीय स्तर के कविता के मंच पर अनेक कार्यक्रम।
संप्रति- द संडे इंडियन में संपादकीय डेस्क प्रमुख के रूप में कार्यरत एवं भाषा एवं साहित्य पर स्वतंत्र-कार्य।
मेरा एक दोस्त था21-09-76 को कैमूर जिला (बिहार) के परसियां गांव में जन्म।
गांव से निकल कर इलाहाबाद विश्वविद्यालय, बीएचयू और जेएनयू (8 साल) में समय बिताया जहाँ पढ़ाई कम आवारागर्दी ज्यादा।
शास्त्रीय संगीत, पत्रकारिता और भोजपुरी में गहरी रुचि, कई वर्ष इनको दिया।
भोजपुरी की पहली साप्ताहिक समाचार पत्रिका द संडे इंडियन के भोजपुरी संस्करण को स्थापित करने में सहयोग। भोजपुरी और हिंदी की तमाम पत्रिकाओं में पिछले 10 वर्षों से रचनाएं प्रकाशित और आकाशवाणी तथा दिल्ली दूरदर्शन से प्रसारित।
लफ़्ज (उपसंपादक), विभोर (उपसंपादक), मीडिया-मंत्र (कंटेंट हेड) और इतिहास बोध पत्रिकाओं से लंबा जुड़ाव।
सम्मान- नवोदित लेखक सम्मान, हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार।
सृजनात्मक लेखन के लिए हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार द्वारा दो बार सम्मानित।
राष्ट्रीय स्तर के कविता के मंच पर अनेक कार्यक्रम।
संप्रति- द संडे इंडियन में संपादकीय डेस्क प्रमुख के रूप में कार्यरत एवं भाषा एवं साहित्य पर स्वतंत्र-कार्य।
नहीं है
नहीं-नहीं था
खैर छोड़िए, पता नहीं
था या है
पर जब हम साथ होते
तो फुर्र से उड़ जाता समय
हर खेल में बनाता उसे गोंइया
जब आसमान से बातें करती उसकी गुल्ली
तो देता अपने काल्पनिक मूछों पर ताव।
सुख से ज्यादा दुख का साथी
फ़सल मेरी गाय बर्बाद करती
डांट सुनता वो
ईख उखाड़ता मैं
मालिक उसे मारता।
उस समय मैं सातवीं में था जब
ससुराल से आई खास मिठाई दी थी उसने
मिठाई के भीतर से शानदार अठन्नी निकली थी,
मिठाई से भी मीठी।
उसका नाम मुझे पसंद न था,
कभी-कभी मैं पूछता, उसके नाम का मतलब
वह सिर्फ़ इतना बताता- नाम तो बस नाम है
बहुत पूछने पर कहता
जैसे घूर-फेंकना है, बेचुआ है, कमरुआ है
वैसे ही ठेलुआ है
काफी शोध के बाद पता चला
माँ ने उसका नाम ‘रामलाल’ रखा था
पर वह सिर्फ़ और सिर्फ़ ठेलुआ था
ज्यादा से ज्यादा ‘मुसना’ का बेटा ठेलुआ।
उसे ठेलुजी कहना कुछ ऐसा
जैसे ठाकुर हुंकार सिंह के सिर पर गोबर की खाँची रखना
या परमेसर मिसिर की गंगाजली में मूस का तैरना
शायद आपने भी महसूसा हो
शहर की घड़ियां गावों से बहुत तेज दौड़ती हैं
कुछ दिनों बाद जब गांव लौटा तो
सड़कें चमकदार और चेहरे धूसर हो चले थे।
दोस्त मिला रास्ते में
संकोच के साथ पहली बार किया नमस्ते,
यंत्रवत उठे थे उसके हाथ
गौर किया मैंने दोस्त कहीं नहीं था
ठेलुआ ने तिवारीजी को सलाम ठोंका था
पूछा, कैसे हो?
कुछ ज्यादा ही परिपक्व आखों से देखते हुए बोला
अच्छा हूँ जी
पता चला,
बनारस में रिक्शा खींच रहा है उसकी जिन्दगी
ठाट से।
बच्चे?
दो हैं जी, दो भगवान के पास चले गए,
अच्छे हैं
बड़का बहुत होशियार है
सेठ के यहाँ तेजी से काम सीख रहा है
और छुटकी तो घर का सारा काम देख लेती है,
नाम क्या हैं उनके?
गबरा और टुनिया
इन नामों का मतलब?
क्या पंडीजी आप भी!
नाम तो बस नाम होता है?
--प्रमोद कुमार तिवारी
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
29 कविताप्रेमियों का कहना है :
खूबसूरत कविता का खूबसूरत अंत
Kavita padhkar gaon aur Premchand ji ki yad aa gayi.
Vakayi hakikat hai phele jamane mein mithayi mein sasural-vale paise chupa dete the.
Kavita prabhavshali hai
Badhayi.
कथा का अंत बड़ी सहजता से किये हो पंडीजी,,,
पढ़कर कुछ मन भारी सा हो गया,,,
वाह ! कविता हो तो ऐसी ---जो पंडीजी के ह्रदय में समा जाय और ठलुआ पढ़े तो उसे भी भा जाय।
-Devendra Pandey.
बेहतरीन बेहतरीन बेहतरीन
तीसरा स्तंज़ा प्रेम चंद की 'गुल्ली डंडा' से प्रभावित.
अच्छी कविता, बधाई योग्य. प्रशंसनीय . siidhi, saral, saras kavita .
प्रवचन और दर्शन शास्त्र के कष्ट से भी बचे रहे.
तिवारी जी बधाई
khoobsurat rachna ke liye badhai..
देवेन्द्र जी ,
इ ठीक बात नइखे ,ठलुआ कौन बा ,जौने जौने लोग हिंद युग्म देखत बा ,उ सब लोग ग्यानी बा ,,आगे जरा ध्यान रखे के जरूरत है ,आपका |
अच्छी लगी
hindi type nahi ho rahi,kshama chahungi....
socha chali jaun,par itni jabardast rachna padhkar yun hi lautna aasaan nahi tha.......
gr8
प्रमोद जी,
सच ही नाम तो बस नाम ही होता है और पंडी जी भी बेहतर जाने हैं।
पीछे आये हुये टी.व्ही. सीरियल " नीम का पेड़ " में डॉ.राही मासूम रजा साहब नें बुधई के माध्यम से यह प्रसंग बड़ी संजीदगी से उठाया था कि वह अपने बेटे को सुखराम के नाम से पुकारे जाने चाहता है ना कि "सुखई"।
अच्छी कविता के लिये बधाई।
मुकेश कुमार तिवारी
बड़का बहुत होशियार है
सेठ के यहाँ तेजी से काम सीख रहा है
और छुटकी तो घर का सारा काम देख लेती है,
नाम क्या हैं उनके?
गबरा और टुनिया
इन नामों का मतलब?
क्या पंडीजी आप भी!
नाम तो बस नाम होता है?
कविता का अंत सुन्दर लगा.
पुनः प्रशंसा
दर्शन मुक्त, प्रवचन मुक्त, राजनीति मुक्त कविता,
कवि अपनी किस्सा गोई की कला का उत्कृष्ठ नमूना पेश करते हुए अपनी संवेदनशीलता का परिचय देता है. इस के लिए उसे, न चीखना चिल्लाना पड़ता है, न आक्रोश दिखाना पड़ता है, न फूहड़ भद्दे शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है . यही कला है.
हिन्दयुग्म के कुछ महारथियों को इस से सीखना चाहिए.
इन नामों का मतलब?
क्या पंडीजी आप भी!
नाम तो बस नाम होता है?
बहुत ही बेहतरीन लिखा है ।
एक पंडितजी यहां भी
http://www.bhaskar.com/blog/index.php?blog_id=28
नीलमजी-
आप भी न जाने क्या-क्या सोंच लेती हैं ---मैं तो तिवारीजी के ठेलुआ की ही बात कर रहा था----बस --े की मात्रा लगाना भूल गया था।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
bahut achchhi kavita hai. badhai!apki kavita 'gulli danda' ki yad dilati hai, phir bhi aaj ke samay mein gaon ko yad karna, dosto ko yad dilana apne aap mein badi bat hai.
आधुनिक हिन्दी कविता की कई भावधाराएँ हैं, कोई एक नहीं। यही नहीं, अभी एक साथ कई पीढियों के कवि मौजूद हैं और महत्वपूर्ण रच रहे हैं। पर इसमें लोकोन्मुख कविताओं का अपना अलग महत्व है,वहां लोक के न सिर्फ़ अनुभव व्याप्त हैं जो कविता की अंतर्वस्तु में समाहित हो जाते हैं बल्कि उनका अपना अभिनव रूप भी विकसित है। यहां लोक के अपने मुहावरे हैं और अपने ठाठ भी।कहना होगा कि ठेठ और देसी का जो ठाठ है वह कभी बिसारा नहीं जा सकता। उपर्युक्त दृष्टि से प्रमोद कुमार तिवारी की यह कविता अत्यंत सफल और सशक्त है ।मैने लोक की कविताओं के उपर बहुत काम किया है। लोक-चेतना की एक अच्छी पत्रिका है ‘कृतिओर’ जिसके संपादक अभी रमाकांत शर्मा जी हैं और प्रधान संपादक श्री विजेन्द्र। वहां मैने देखा है कि लोकवादी कविताओं का कितना मूल्य है! मैं प्रमोद जी को उनकी इस अन्यतम कविता के लिये बधाई देता हूँ।
नाम क्या हैं उनके?
गबरा और टुनिया
इन नामों का मतलब?
क्या पंडीजी आप भी!
नाम तो बस नाम होता है?
यथार्थ का हू-बहू चित्रण
एक बेहद सरल और अच्छी कविता
दिल को छू गयी
बधाई हो पंडी जी
बड़का बहुत होशियार है
सेठ के यहाँ तेजी से काम सीख रहा है
और छुटकी तो घर का सारा काम देख लेती है,
नाम क्या हैं उनके?
गबरा और टुनिया
इन नामों का मतलब?
क्या पंडीजी आप भी!
नाम तो बस नाम होता है?
कविता का अंत बहुत सुंदर है .कविता के भावः और शब्द प्रभावी है
अच्छी कविता के लिए बधाई
रचना
तिवारी जी,
सुन्दर शब्दों में एक भाव भरी कविता है. बधाई.
आप सभी सुधी और सहृदयी पाठकों का आभार। हां, प्रशंसा ज्यादा हो गई और आलोचना की मात्रा कम रही। भाई सुशीलजी ने 'कृतिओर' और विजेन्द्रजी का जिक्र किया है। हकीकत यह है कि विजेन्द्रजी जैसे विद्वानों और कुछ किताबों से मिले संस्कार से ही कुछ लिख सका हूं। जब आजीविका की जद्दोजहद में नहीं लगा था तब विजेन्द्रजी के लगातार संपर्क में था। 4-5 साल पहले 'कृतिओर' में कविता भी छपी थी। उनके बहुत सारे पत्र अमूल्य निधि हैं। मेरे खयाल से दिनोंदिन संवेदनहीन और यांत्रिक होती दुनिया में कविता को बचाना मनुष्यता को बचाना है। इस मोर्चे पर डटे आप सभी सैनिकों (महिलाएं भी, माफ करें उनके लिए हमारे समाज ने शब्द नहीं दिए हैं)का मैं खैरमकदम करता हूं। इस अभियान के लिए शैलेशजी को खास तौर से धन्यवाद।
प्रमोद
mahilaaon me aakrosh badhaane ki asafal koshish ,aapko shabd nahi mila wo doosri baat hai .
kisi bhi prakaar ki vaimanasyta badhaane se bachen kavita me to aalochna ki jagah thi hi nahi ,par ab aap mahilaaon ko naaraj karne ki anjaane me hi sahi galti kar rahe hain .
waise aapse milkar achcha laga ,aawaragardi aur aap do alag alag baaten hain ,apne prashanskon ki list me hmaara naam bhi shaamil kar hi lijiye .
agli kavita ki pratikhsha me .
कैसी बातें करते हो पंडीजी,
और भी पकना बाकी है क्या...?
क्या अब भी आपको डर नहीं लगता महिलाओं से...?
हमरो नाम ही देखो जी. उहिमा रखा का है जी?
पंडी जी, जैसे टुनिया, गबरा वैसे ही औरन के भी नाम हैं.
बेहतरीन कविता....कविता कहूं या छोटी कहानी..... आप बार-बार आया करें...
Pramod Ji, kavita kya hai, wahi apne gaon ki yaad hai, ab to yaadon se bhi mit gaya hai, acchha laga apki kavita padkar.
Age bhi apka blog padte rahainge.
Hamne bhi blogging ke shetra main naye naye kadam rakhe hain aur aap jese logon ke margdarshan ki awashykata mahsoos karte hain.
Kabhi waqt mile to jaroor ayeyega,
Prabhatsardwal.blogspot.com
कविता होगी अंतर्जाल पर .
ठेलुआ के तो दिल की बात है
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)