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Friday, October 26, 2007

इस साल गाँव में 'रमलील्ला' नहीं हुई


देर से आने के लिए माफ़ी चाहूंगा।असल में मैं गाँव चला गया था,गाँव की बातें लाने;जो लाया वो आपके सामने है)


इस साल गाँव में
'रमलील्ला' नहीं हुई
'कारन' कि
गाँव में 'फुटमत' हो गई
लल्लन यादव और
दीना मल्लाह के बीच
'परधानी' के चुनाव में
'मारापीटी' हो गई
लल्लन राम बनते हैं
दीना लक्ष्मण

देवराज सिंह का छोटा लड़का
सुमेर चौधरी की लड़की के साथ
भाग गया
देवराज सिंह का लड़का
सीता बनता था
गठीले बदन की
भूरी-भूरी आँखों वाली
गोरी-चिट्टी सीता जी

'बजरंगी मिसिर'
पिछली 'रमलील्ला' से ही
जेल में हैं
गैंगस्टर एक्ट लगा है
रात में बस लूटते थे
क्या देह पाया है बजरंगी
स्टेज पर चढ़कर जब ललकारता है,तो
दो-तीन गाँव तक सुनाई देता है
गाँव में जब से 'रमलील्ला' हो रही है
वही हनुमान बनता है

ले दे के एक मंगला यादव बचे हैं
छत्तीस के छत्तीसो गुण मिलते हैं उनके
रावण से
पर भाई!
अकेले रावण से ही तो रामायण नहीं है ना!!

तो, इसबार
लड़कों ने 'नाच' करानी चाही
बुजुर्गों ने 'कीर्तन'
पँचायत हुई
फैसला हुआ
पुरब टोला 'नाच' होगी
पश्चिम टोला 'कीर्तन'
अगली साल से दोनो टोले
अपनी-अपनी 'रमलील्ला' करायेंगे
माने
अब से हर दशहरा हम
अपना-अपना रावण जलायेंगे

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13 कविताप्रेमियों का कहना है :

राजीव रंजन प्रसाद का कहना है कि -

मनीष जी,

आप से बेहतर एसा कोई "समकालीन" कवि नहीं पाता जो असल भारत, यानि कि "गाँव" और ग्रामीण परिवेश पर इतने दखल के साथ लिख सकता हो। यह कविता एसा करारा व्यंग्य है जो हमारे समाज को उसका सच्चा चेहरा दिखाती है। प्रत्येक पेरा कविता को और संन्निहित व्यंग्य को पराकाष्ठा प्रदान करता है।

गाँव में 'फुटमत' हो गई
लल्लन यादव और
दीना मल्लाह के बीच
....
लल्लन राम बनते हैं
दीना लक्ष्मण

देवराज सिंह का छोटा लड़का
सुमेर चौधरी की लड़की के साथ
भाग गया
देवराज सिंह का लड़का
सीता बनता था

'बजरंगी मिसिर'
पिछली 'रमलील्ला' से ही
जेल में हैं
गैंगस्टर एक्ट लगा है

ले दे के एक मंगला यादव बचे हैं
छत्तीस के छत्तीसो गुण मिलते हैं उनके
रावण से
पर भाई!
अकेले रावण से ही तो रामायण नहीं है ना!!

अब से हर दशहरा हम
अपना-अपना रावण जलायेंगे
आपकी लेखनी को नमन।

*** राजीव रंजन प्रसाद

शोभा का कहना है कि -

मनीष जी
गाँव से आफ बहुत अच्छी भेंट लेकर आए । पढ़कर लगा सब कुछ अपनी आँखों से देख लिया ।
सबके मनों में ही रावण का वास है । अच्छा है कि सब अपना-अपना रावण ही जलायें । एक सुन्दर रचना के
लिए बधाई ।

भूपेन्द्र राघव । Bhupendra Raghav का कहना है कि -

बहुत अच्छा, बहुत रोचक ढंग से ग्रामीण परिवेश व उसके बदलते स्वरूप को उजागर किया है आपने
ऐसा लग रहा है पढते पढते जैसे सब कुछ सामने चल रहा हो..

मनीष जी,
वन्देमातरम

Avanish Gautam का कहना है कि -

अच्छी कविता मनीष भाई!

anuradha srivastav का कहना है कि -

मनीष, इतना सजीव वर्णन कि लगता है, सब चरित्रों को निभाने वाले पात्र जाने-पहचाने से हैं।
ग्रामीण परिवेश, चरित्र और मानसिकता बहुत ही प्रभावी तरीके से चित्रित किया है।
बधाई .............

विश्व दीपक का कहना है कि -

लल्लन यादव और
दीना मल्लाह के बीच
'परधानी' के चुनाव में
'मारापीटी' हो गई
लल्लन राम बनते हैं
दीना लक्ष्मण

देवराज सिंह का लड़का
सीता बनता था

क्या देह पाया है बजरंगी
स्टेज पर चढ़कर जब ललकारता है,तो
दो-तीन गाँव तक सुनाई देता है

छत्तीस के छत्तीसो गुण मिलते हैं उनके
रावण से
पर भाई!
अकेले रावण से ही तो रामायण नहीं है ना!!

माने
अब से हर दशहरा हम
अपना-अपना रावण जलायेंगे

मनीष जी,
सच हीं कहा जाता है, देर आए दुरूस्त आए। बहुत हीं सुंदर कविता है। गाँव का नज़ारा आप हमेशा नज़रों के सामने ला देते हैं। इसके लिए मैं आपका तहे-दिल से शुक्रिया करता हूँ।
सामयिक विषयवस्तु लेकर आपने जो कविता लिखी है, इसके लिए आप बधाई के पात्र हैं।

-विश्व दीपक 'तन्हा'

Anita kumar का कहना है कि -

कविता पढ़ कर ऐसा लगा जैसे आप सामने बैठे बतिया रहे है और अपने गांव के हाल चाल बता रहे है, बहुत ही आत्मीयता है कविता में,

Anonymous का कहना है कि -

rajiv ji kitippaniya aur unaki kavitaon se mai hamesha se hi prabhavit raha hoon.........

manish ji, aapki kavita adbhut hai...
sach mai gavon me itna dakhal kisi ka milta hai to sirf premchand ji ke tatha fanishvar ji ke upanyaso me............
sadhuvad
mai aur kya kahoon meri tippani sirf uparokt tippaniyon ki punaravratti hi hogi

Sajeev का कहना है कि -

manish ji kya khoob khaka khicha hai, pori tarah se sahmat hun rajeev ji se

SahityaShilpi का कहना है कि -

एक और सुंदर रचना के लिये बधाई स्वीकारें, मनीष जी!
बहुत प्रभावी तरीके से आपने ग्रामीण परिवेश और हमारी सामाजिक विसंगतियों पर व्यंग्य किया है. पुनश्च: बधाई!

रंजू भाटिया का कहना है कि -

बहुत सुंदर रचना हमेशा की तरह ...अपना अपना रावण ख़ुद जलना होगा बहुत ही सुंदर बात और
गांव का सही माहोल .बहुत ही खूबसूरत लगा .. बधाई आपको मनीष जी !

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

मनीष जी,

हमारे गाँव में तो उलटा हुआ। आजकल के बच्चे टीवी पर रामायण देखना ज्यादा पसंद करने लगे हैं, क्योंकि किशोरों का मानना है कि रामलीला कराने के लिए बहुत अधिक चंदा चाहिए। उसके बाद सारा ड्रेस, स्टेज की अलग से तैयारी, रोल के लिए रिहर्सल, इन सबसे बचने के लिए रामलीला ही नहीं हो रही है।

कविता की बात करूँ तो इस बार आपने पूरी तरह से गद्य लिख दिया है। लाइनों को जोड़ देंगे तो नये तरह की लघुकथा हो जायेगी। जल्दीबाज़ी में न लिखा करें।

Unknown का कहना है कि -

achchi lagi.....
alok

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