मई 2009 की यूनिकवि प्रतियोगिता के नौवें स्थान की कविता का प्रकाशन हम अभी तक नहीं कर पाये थे, क्योंकि हमें रचयिता के परिचय और चित्र का इंतज़ार था। 3 बार रिमांइडर भेजा गया, लेकिन कोई उत्तर नहीं मिला। अर्थात् वे इंटरनेट से दूर हैं। हमारे पास बस इतनी जानकारी है कि यह रचना श्यामली त्रिपाठी ने लिखा है। आज इतनी ही जानकारी के साथ कविता पढ़िए, शेष फिर कभी।
पुरस्कृत कविता- वितृष्णा
मन नहीं करता- लिखूं कविता, ग़ज़ल या गीत
नहीं भरता पेट इससे उन गरीबों का
जो पात्र हैं हमारी रचनाओं के
नहीं ढँकता तन किसी बच्ची का-
गीत में हमने सिये हैं फ्रॉक के पैबंद जिसके
नहीं कम होती गरीबी, भूख या प्यास
नहीं कम होती एक भी बूँद-
भ्रष्टाचार के समुद्र से
नहीं कटता पहाड़ बेरोज़गारी का-
ग़ज़ल या गीत की नदी से
बुझ जाते हैं अंगारे मन के-
निकल कर क़लम से
सोचती हूँ, बंद कर दूँ लिखना-
कविता, गीत या ग़ज़ल
सहेज लूं वो अंगारे
शायद कभी विस्फोट हो अन्दर के ज्वालामुखी का
शांत हो कर जल बनेगा बहुत मीठा
प्यास ही बुझ जायेगी-
उन भूखे-प्यासे किरदारों की
जिन पर रंग चुके हैं हम-
किताबें-दर-किताबें.....
प्रथम चरण मिला स्थान- छठवाँ
द्वितीय चरण मिला स्थान- नौवाँ
पुरस्कार- राकेश खंडेलवाल के कविता-संग्रह 'अंधेरी रात का सूरज' की एक प्रति।
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12 कविताप्रेमियों का कहना है :
मुझे लगता है कि ये रचना आखिरी स्थान पर नहीं होनी चाहिये थी एक भाव्मय और सार्थक रचना के लिये कवि बधाई का पात्र है आभार्
Bahut hi bhaavpoorn kavita hai
gahraai ko chhooti hui
bahut bahut badhai
मन नहीं करता- लिखूं कविता, ग़ज़ल या गीत
नहीं भरता पेट इससे उन गरीबों का
जो पात्र हैं हमारी रचनाओं के
बहुत अर्थपूर्ण शब्दों से शुरू होती रचना. शुरुआत के साथ पूरी कविता ही सुन्दर है.
दिल मे भीतर तक असर करती है ये रचना..
Saralta se jivan ki katuta batayi hai.
badhayi.
गीत में हमने सिये हैं फ्रॉक के पैबंद जिसके
वाह...
प्यास ही बुझ जायेगी-
उन भूखे-प्यासे किरदारों की
जिन पर रंग चुके हैं हम-
किताबें-दर-किताबें.....
अच्छा लिखा है,,
नीमला जी,,
ये तो नौंवे स्थान पर है,,
सबसे लास्ट में तो हम थे...
:)
श्यामली जी आपकी कविता सत्यता बयान कर रही है...अत्यंत करुण
बहुत भयंकर कविता ! खूब पसंद आई !
नहीं भरता पेट इससे उन गरीबों का
जो पात्र हैं हमारी रचनाओं के
बहुत ही गहरे भावों को प्रकट करती इस रचना के लिये बधाई ।
मन नहीं करता- लिखूं कविता, ग़ज़ल या गीत
नहीं भरता पेट इससे उन गरीबों का
जो पात्र हैं हमारी रचनाओं के
आपकी कविता सत्य बयान कर रही है...
अत्यंत करुण
बहुत अच्छी कविता जी
दिल को छू गयी बधाई हो
गीत में हमने सिये हैं फ्रॉक के पैबंद जिसके
कितने गहरे भाव हैं सच कहा है मात्र लिखने से क्या होगा
बधाई
रचना
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