मेरे गाँव की काली माँई
बड़ी परतापी हैं
सबकी मनौती पुराती हैं
पाँच नारियल माना था मैंने
बोर्ड में सेकेण्ड डिवीजन पास हुआ
गाँव की हर नई बहुरिया
उनको चुनरी चढाती है
गाँव के पच्छिम जो पीपल है
उस पर दइत्रा बाबा रहते हैं
एकबार सोनवा के बाबू पर सवार हुए थे
एक बोतल दारू ओर दो चिलम गांजा से जान बची
जब बाबा मरे थे
बाबूजी इसी पीपल पर
कलसे में पानी टांगा करते थे
अब वो कलसा नहीं है
'''''''''''''बाबा पियासे होंगे
मेरे गाँव का जो रस्ता है
जिसकी छाती पर, आज भी
बचपन से अब तक के
मेरे पैरों की नाप है,
मेरा घर जानता है
तुम आँख बन्द करके भी आओ
तुम्हें मेरे घर तक पहुँचा ही देगा
ये तो पहले भी बता चुका हूँ
मैं और मेरे गाँव का चाँद
हमजोली हैं
माँ ने दोनों को चांदी की कटोरी में
साथ-साथ दूध-भात खिलाया है
जब सरसों के फूल खिलें
जब आमों में बौर लगे
मटर-तीसी फुलाने लगें
झुरमुट में छिपी कोयल बुलाने लगे
मेरे गाँव मत आना
इतनी सुन्दरता तुम्हें बाउर कर देगी
आना जब बारिश हो
आह मेरे गांव की बारिश
पूरे मन से बरसती है
बचपन में खूब भीगा हूँ इसमें
और मारा है बाबूजी ने
बाबूजी की मार याद नहीं
पर बारिश की फुहार आज भी याद है
मेरे गाँव का रस्ता
मेरे गाँव का पीपल
मेरे गाँव की बारिश
मेरे गाँव की कोयल
सबसे तुम्हारी बातें करता हूँ
इस फागुन ज़रूर से ज़रूर आना
मिलवाऊँगा सबसे।
कवि- मनीष वंदेमातरम्
शब्दार्थ-
माँई- माँ
परतापी- प्रतापी, शक्तिवाली
दइत्रा बाबा- एक तरह की काल्पनिक शक्ति
कलसा- कलश
बाउर कर देना- बौरा देना, मतवाला बना देना
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10 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत सुन्दर रचना है मनीष जी, बिल्कुल गाँव के शांत और सुरम्य परिवेश में पहुँचा दिया आपने। देशज शब्दों का प्रयोग बहुत अच्छा लगा। इसके बिना शायद कविता में जान नहीं आ पाती। गाँव के सामाजिक जीवन का भी अच्छा चित्रण है। होली का पर्व आ रहा है, शायद इसी लिये गाँव की याद फिर बलवती हो रही है, आपके कवि-ह्रदय में। बधाई।
हमरे गाँव के याद ताजा हो गईल। :)
सच मे आज की शहरी जिन्दगी जैसी भी हो, गाँव का आनन्द नही दे सकते, और उस पर भी आपने जिस तरह से लिखा है, सारे पलो को जीवंत कर दिया है, इतनी सुन्दर कविता के लिये बधाई।
होली की शुभकामनाएँ !
गाँव का व गाँव की आत्मा का सुन्दर वर्णन है ।
घुघूती बासूती
मनीष जी,
कविता वह है जो पढ़ने अथवा सुनने के साथ ही मन पर उतरती जाये और वहां एक छाप छोड़ जाये. इस कसौटी पर आप की कविता अक्षरश: सही बैठती है.
सुन्दर सामायिक रचना
आप को एंव आपके समस्त परिवार को होली की शुभकामना..
आपका आने वाला हर दिन रंगमय, स्वास्थयमय व आन्नदमय हो
होली मुबारक
ये तो पहले भी बता चुका हूँ
मैं और मेरे गाँव का चाँद
हमजोली हैं
माँ ने दोनों को चांदी की कटोरी में
साथ-साथ दूध-भात खिलाया है
बहुत ही सजीव वर्णन लिखा है आपने ....बहुत सी यादे दिल में ताज़ा हो गयी पढ़ के
आपको होली की बहुत बहुत शुभकामनाएँ...
मनीष जी..
मन के भीतर तक उतर जाने वाली रचना..देशज शब्द तो इस कविता का जैसे प्राण हों। मेरी निशचित विचार धारा है कि एसी रचनायें पाठको को न सिर्फ कविता विधा से पुनः जोडेंगी अपितु अपने अतीत और अपने आप से भी....
*** राजीव रंजन प्रसाद
kavita bhut sundar ban padi hai.....aapko bhadhaaiyaan
जब सरसों के फूल खिलें
जब आमों में बौर लगे
मटर-तीसी फुलाने लगें
झुरमुट में छिपी कोयल बुलाने लगे
मेरे गाँव मत आना
इतनी सुन्दरता तुम्हें बाउर कर देगी
गाँव की सुंदरता का बखान करना हो तो कोई इस तरह करे। मन प्रसन्न हो गया। गाँव की यादें ताजा हो गईं।
बधाई आपको।
इस रचना पर इतने समय बाद नजर पडी...क्षमा करें मनीष पढ नहीं पाया था....
गान्व देखना गांव सोंचना और गांव लिख पाना और वो भी एक मौलिक ढंग से..हर कहीं सफ़ल है यह रचना....
बहुतेरे बिम्ब अभी भी प्राण मांग रहे है, गांव का कितना हिस्सा अभी भी अछूता है इस कविता के बाहर भी...कवि से आग्रह है कि यदि इस कहानी को उपन्यास कर सके....क्षणिका को महाकाव्य तो पाठक उपक्र्त होंगे....
"ये तो पहले भी बता चुका हूँ
मैं और मेरे गाँव का चाँद
हमजोली हैं
माँ ने दोनों को चांदी की कटोरी में
साथ-साथ दूध-भात खिलाया है"................बहुत खुब मनीष बहुत खुब...मन प्रसन्न हो गया...चान्द नाच गया एक बार आन्खों मे....गान्व जिन्दा हो गया मन मे....जाने कब से मैंने उसे खुद मार रखा था....जान बूझकर...
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