अनुपमा…….
तुम अनुपम हो!
शब्दों की मधुर झंकार से
खनकते चित्रों के बीच
सामंजस्य बनाये
तुम्हारा एक-एक शब्द
जंजीर बनकर
भावों को जकड़ लेता है
जैसे
छोटा बच्चा
अपनी माँ से लिपट जाता है...
अनुपमा…….
सच में, तुम अनुपम हो!
तुम्हारे अन्दर की हलचल
जब
क़ागज़ पर खनकती है
तुम पूछती हो - ”क्या यह ग़ज़ल है?”
ठीक इसी समय
मुझे हँसी आ जाती है...
और ग़ज़ल
अपनी खूबसूरती को
हाथों से ढ़ापने का प्रयत्न करती है...
हाथों की पतली दीवार
यकायक असहज होने लगती है
लाखों निगाहें,
झाँकने लगती है
उसके आर-पार
आखिर,
खूबसूरती कब तक छुपती है?
अनुपमा…….
यकीनन, तुम अनुपम हो!
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
वाह क्या बात है।
अनुपमा को आये अभी २ महीने भी नहीं हुए। इतनी ज़ल्दी कविराज के गीतों की प्रेरणा बन गईं। बहुत खूभ!!!
आखिर,
खूबसूरती कब तक छुपती है?
शब्दों की मधुर झंकार से
खनकते चित्रों के बीच
सामंजस्य बनाये
तुम्हारा एक-एक शब्द
जंजीर बनकर
भावों को जकड़ लेता है
जैसे
छोटा बच्चा
अपनी माँ से लिपट जाता है...
वाह! सुन्दर चित्रण ।
आखिर,
खूबसूरती कब तक छुपती है?
हाँ सच ही कहा है हीरे की पहचान बताने की जरुरत नही होती वो तो खुद मे एक पहचान है :)
सुन्दर सी कविता के लिये बधाई :)
गिरिराज जी..
सुन्दर रचना, मैं केवल यह लिख कर कि आप शब्दों के बहुत चतुर चितेरे हैं, अपनी बात की इति नहीं करना चाहता।
"तुम्हारा एक-एक शब्द
जंजीर बनकर
भावों को जकड़ लेता है"
तब मैं उन भावनाओं की कल्पना से अभिभूत होता हूँ जिनको थामने के लिये जंजीरें चाहिये....
तुम पूछती हो - ”क्या यह ग़ज़ल है?”
ठीक इसी समय
मुझे हँसी आ जाती है...
और ग़ज़ल
अपनी खूबसूरती को
हाथों से ढ़ापने का प्रयत्न करती है...
एक खूबसूरत सा चुहल मन में उठता है, एक गुदगुदी सी विषेष कर "अपनी खूबसूरती को
हाथों से ढ़ापने का प्रयत्न करती है..." पढते हुए।
हाथों की पतली दीवार
यकायक असहज होने लगती है
लाखों निगाहें,
झाँकने लगती है
उसके आर-पार
आखिर,
खूबसूरती कब तक छुपती है?
सच है एसी ही है आपकी कविता..बधाई आपको।
*** राजीव रंजन प्रसाद
तुम्हारा एक-एक शब्द
जंजीर बनकर
भावों को जकड़ लेता है
जैसे
छोटा बच्चा
अपनी माँ से लिपट जाता है...
बहुत ही सुंदर भाव लिखे हैं आपने
लफ़्ज़ो की ख़ूबसूरती ने दिल को बाँध लिया ..
एसी सुंदर रचना के लिए बधाई ...
वाह गिरिराज जी,
बहुत सुन्दर
"तुम्हारा एक-एक शब्द
जंजीर बनकर
भावों को जकड़ लेता है"
सत्य कहा आपने
बहुत अच्छी कविता
और मैं तो यही सोच कर आनन्दित हो जाता हूँ कि कितना सुन्दर परिवार बन गया है "हिन्दी-युग्म"
पुनः बधाई
बहुत सुन्दर कविता, बहुत अच्छे भाव
सस्नेह
गौरव
वाह गिरिराज जी...
आपने वो कहावत सिद्ध कर दी..."जहां न पहुंचे रवि...वहां पहुंचे कवि"
होली का असर अब तक है इसलिये लालू जी के स्टाईल में बोलूं तो "बिटबा तुम कमाल कर दिये हो..एक ठो कविता हम पर भी लिखो न..रावडी के अलावा कोनू हमार बडाई न करत है... हा हा.....
सुन्दर रचना के लिये बधाई
आपकी अनुपम रचना पढ़कर .. मन बहुत खुश हुआ।
लिखते रहें
बहुत सुन्दर और अनुपम कविता;
पर अनुपमा जी की टिप्पणी दिखी नहीं अब तक ?क्या उन्हें पसन्द नहीं आई रचना?
sundar man or sundar kalam ho to sundarta or bhi sundar najar aati hai...such me sundar hogi aaupama.
अनुपमा जी की काव्य-प्रतिभा का तो मैं वैसे भी कायल हूँ, आपकी इस कविता ने तो मेरे इस आकर्षण को और भी बढ़ा दिया है। सच में, खूबसूरती छुप ही नहीं सकती। और विशेषतया जब खूबसूरती भावों की हो। अनुपमा जी के कृतित्व को इतने सुन्दर तरीके से रेखांकित करने के लिये कविराज जी को बधाई। और साथ ही बधाई अनुपमा जी को भी, इतने कम समय में इतना सम्मान हासिल करने पर।
wah wah giri saheb ji kya kahte hain aap muskaan aa gayi
bhaut hi sunder rachna aur ishke bhaav bhi jaise apne aap jagaha banate gaye man main
aapki ye karti bhaut pasand aayi
सच मे कविता और कवि और कवियित्री सभी अनुपम है।
Giri Ji
Is bhet ke liye haardik dhanyawaad...Anupama anupam hai ya nahi yeh nahi jaanti hu par aapki kavita sachmuch anupam hai.God Bless You.May all your desires come true...
Always
Anu
बुरा मत मानना कविराज....जाने क्यों पर हंसी आ रही है(सही बातें गलत समय मेरा पीछा छोंड़्ती नहीं)।
एक वाक्य हीं कहूँगा -
शब्दों के रचयिता कविराज जी और रचना की प्रेरणा अनुपमा जी दोनों अनुपम हैं,कोई सानी नहीं है।
'अनुपमा' एक व्यक्ति विषेश है यह कविता से झलकता है, पर यह अगर मात्र एक व्यक्तित्व ही हो सकता तो और भी अच्छा होता और शायद हो भी...किन्तु 'प्रतिक्रियाओं" ने शायद कविता का रुख बदल दिया...
कविता... अच्छी है, प्रतिक्रियाऐं भी अच्छी हैं।
रिपुदमन पचौरी
mujhe ye kavita gudguda gayi.....
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