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Sunday, August 16, 2009

थोड़ी बहुत बगावत का जुज़ भी ज़रूरी है


मुहम्मद अहसन हिन्द-युग्म के सक्रियतम पाठक हैं। एक बार यूनिकवि का ख़िताब भी जीत चुके हैं। जुलाई माह की यूनिकवि प्रतियोगिता में इनकी एक कविता ने 6वाँ स्थान बनाया।

पुरस्कृत कविता- सलाह

पुरसुकून जिंदगी के लिए
समझौते ज़रूरी हैं,
मगर यह देख लेना कि,
समझौते कहीं इस क़दर न हो जाएं
कि और कुछ करने के
लायक़ ही न रहो

बड़े और बुजुर्गों की,
मां बाप और रिश्तेदारों की
इज्ज़त और फ़र्माबरदारी

फ़र्ज़ और लाज़मी है,
मगर यह देख लेना कि
एइत्क़ाद के समंदर में
आँख इस क़दर न बंद हो जाय
कि तुम उन के जुर्म में शरीक हो जाओ

हाकिमों और ओहदेदारों
मिज़ाजपुरसी यक़ीनन ज़रूरी है,
आदाब और अदब ज़रूरी हैं,
हुक्मबरदारी लाज़मी है,
मगर यह देख लेना कि
हुक्म और आदाब बजा लाने के जोश में
कहीं इस क़दर न झुक जाना
कि रीढ़ की हड्डी ही टूट जाय

एइत्क़ाद और परस्तिश ज़रूरी हैं,
ईमान और एतबार ज़रूरी हैं
मगर यह देख लेना कि
जिंदा इंसान के लिए
ज़मीर ओ खुद्दारी भी ज़रूरी हैं;
सही और ग़लत का इम्तियाज़ भी ज़रूरी है,
चीजों के इखलाकी
और गैरइखलाकी होने का
फ़र्क भी भी ज़रूरी है ;
और इंसान के जिंदा वजूद के लिए
थोड़ी बहुत बगावत का जुज़ भी ज़रूरी है
.............................................................
एइत्क़ाद - श्रद्धा
इम्तियाज़ - भेद
इखलाकी -नैतिक
गैर इखलाकी - अनैतिक
जुज़ - अंश


प्रथम चरण मिला स्थान- छठवाँ


द्वितीय चरण मिला स्थान- छठवाँ


पुरस्कार और सम्मान- सुशील कुमार की ओर से इनके पहले कविता-संग्रह 'कितनी रात उन घावों को सहा है' की एक प्रति।

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18 कविताप्रेमियों का कहना है :

Disha का कहना है कि -

achchhi rachna hai
badhai

manu का कहना है कि -

जिंदा इंसान के लिए
ज़मीर ओ खुद्दारी भी ज़रूरी हैं;
bahut khoob...
aaur..
और इंसान के जिंदा वजूद के लिए
थोड़ी बहुत बगावत का जुज़ भी ज़रूरी है

laajawaab..............

दिपाली "आब" का कहना है कि -

@ahsan ji

पुरसुकून जिंदगी के लिए
समझौते ज़रूरी हैं,
मगर यह देख लेना कि,
समझौते कहीं इस क़दर न हो जाएं

कि और कुछ करने के
लायक़ ही न रहो

har ek misra ek seekh ban kar saamne aata hai, potli baand ke rakhne ka jee karta hai, sacchai se bhi sacchi rachna. bahut pasand aayi,is pratiyogita ki ab tak ki prakaashit sabhi rachnaao mein se sabse behtareen rahi aapki kavita.
badhai

hem pandey का कहना है कि -

जिंदा इंसान के लिए
ज़मीर ओ खुद्दारी भी ज़रूरी हैं;
सही और ग़लत का इम्तियाज़ भी ज़रूरी है,
चीजों के इखलाकी
और गैरइखलाकी होने का
फ़र्क भी भी ज़रूरी है ;
और इंसान के जिंदा वजूद के लिए
थोड़ी बहुत बगावत का जुज़ भी ज़रूरी है
- बहुत सुन्दर.

sangeeta sethi का कहना है कि -

जिंदा रहने के लिए थोडी बहुत बगावत भी ज़रूरी है |
कवि ने तो मनन की बात ही छीन ली| कवि को साधुवाद |

neelam का कहना है कि -

ईमान और एतबार ज़रूरी हैं
मगर यह देख लेना कि
जिंदा इंसान के लिए
ज़मीर ओ खुद्दारी भी ज़रूरी हैं;
सही और ग़लत का इम्तियाज़ भी ज़रूरी है,
चीजों के इखलाकी
और गैरइखलाकी होने का
फ़र्क भी भी ज़रूरी है ;
और इंसान के जिंदा वजूद के लिए
थोड़ी बहुत बगावत का जुज़ भी ज़रूरी है

ahsan bhaai ,jindabaad

Shamikh Faraz का कहना है कि -

मैं कहूँगा कि शुरूआत बहुत ही ज़बरदस्त दी है.

पुरसुकून जिंदगी के लिए
समझौते ज़रूरी हैं,
मगर यह देख लेना कि,
समझौते कहीं इस क़दर न हो जाएं

वाणी गीत का कहना है कि -

थोडी बगावत भी जरुरी है ...बहुत बढ़िया ...!!

विनोद कुमार पांडेय का कहना है कि -

आज की दुनिया का मत्वपूर्ण भाग है जीवन मे समझौताओं का दौर..कई बार हमारे जीत हार इस पर भी निर्भर करते है..

बढ़िया विचार...बेहतर कविता

Divya Prakash का कहना है कि -

कविता उच्च कोटि की , नया पन तथा गहराई समेटे हुए ,,,, कविता आज कल के फैशन के माप दंडों से दूर ...भावों की लेखनी से लिखी गयी है ...मुझे ख़ुशी है की आज पहली बार आपकी ऐसी कविता पढने को मिली ..
सादर
दिव्य प्रकाश दुबे
http://www.youtube.com/watch?v=oIv1N9Wg_Kg

Manju Gupta का कहना है कि -

कविता में गहराई है . बधाई .

मुकेश कुमार तिवारी का कहना है कि -

अहसन साहब,

एक समझाईश भरी कविता, जो जिन्दा बने रहने के लिये रास्ते तय कराती है कि क्या होना चाहिये और क्या नही?

अहसन साहब को सच कहना खूब आता है, और वो इस फ़न के माहिर है हालांकि कभी -कभी सच किसी तल्ख हो सकता है सच की अपनी तासीर है, की तरह देखियेगा :-

फ़र्ज़ और लाज़मी है,
मगर यह देख लेना कि
एइत्क़ाद के समंदर में
आँख इस क़दर न बंद हो जाय

कि तुम उन के जुर्म में शरीक हो जाओ
हाकिमों और ओहदेदारों
मिज़ाजपुरसी यक़ीनन ज़रूरी है,

आदाब और अदब ज़रूरी हैं,
हुक्मबरदारी लाज़मी है,
मगर यह देख लेना कि
हुक्म और आदाब बजा लाने के जोश में
कहीं इस क़दर न झुक जाना

कि रीढ़ की हड्डी ही टूट जाय
एइत्क़ाद और परस्तिश ज़रूरी हैं,

सादर,


मुकेश कुमार तिवारी

सदा का कहना है कि -

इंसान के जिंदा वजूद के लिए
थोड़ी बहुत बगावत का जुज़ भी ज़रूरी है

बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

---और इंसान के जिंदा वजूद के लिए
थोड़ी बहुत बगावत का जुज़ भी ज़रूरी है
---- बेहतरीन सलाह।
यह जानकर प्रसन्नता हुई कि आवश्यकता पड़ने पर
अहसन साहब भी
सलाह के रूप में
उपदेश देने में यकीन रखते हैं
----------------------------------------------
दुष्यंत कुमार का एक शेर याद आ रहा है---
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।
--देवेन्द्र पाण्डेय।

Akhilesh का कहना है कि -

और इंसान के जिंदा वजूद के लिए
थोड़ी बहुत बगावत का जुज़ भी ज़रूरी है

Ahsan Saab
kavita mein urdu sabdo ka prayog accha laga. sacche mayne main hindustani kavita laga rahi hai.

gajal main hindi ka prayog kul ker ho raha hai to kavita main urdu ka prayog bhi badhna chahiye.
nischit hi is kavita se hum jaise naye log jinhone hindi urdu ko alag alag ker ke nahi dhekha , sukoon milega.

rachana का कहना है कि -

क्या सुंदर समावेश है उर्दू शब्दों का कविता के भावः भी सुंदर हैं
आदाब और अदब ज़रूरी हैं,
हुक्मबरदारी लाज़मी है,
मगर यह देख लेना कि
हुक्म और आदाब बजा लाने के जोश में
कहीं इस क़दर न झुक जाना

कि रीढ़ की हड्डी ही टूट जाय
एइत्क़ाद और परस्तिश ज़रूरी हैं,
.क्या कहने
सादर
रचना

मुहम्मद अहसन का कहना है कि -

दोस्तों,साथियों,
३दिन के बाद आज नेट तक पहुँच पाया. आप लोगों ने इस कविता को जो इज्ज़त बख्शी , मैं भाव विभोर हूँ.
देवेन्द्र जी,
आप को अलग से जवाब दूँ गा,अभी दफ्तर जाने की जल्दी है, मैं आप के प्रशंसकों में से हूँ.
हिन्दयुग्म,
मेरी कविता का मूल ढांचा किस परिवर्तित हो गया, मेरे लिए विस्मय और कष्ट का कारण है.
मुहम्मद अहसन

Anonymous का कहना है कि -

इतनी घिसी पिटी घटिया कविता से anonimous 1,2,3,4 सब गायब हैं कहीं ये कवि ही तो इन के सरगना नहीं हैं

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