कल से ही हर अखबार, वेबपत्रिका और ब्लॉग में आज़ादी दिवस की धूम है। हमने भी इस दिवस के लिए धड़ाका बचाकर रखा है। जुलाई २००८ की प्रतियोगिता में आई ऐसी ही एक कविता है जिसके रचनाकार है विनय के जोशी। उसमें भी भारत की बात है, जश्न की बात है। आगे से विनय के जोशी हिन्द-युग्म पर प्रत्येक वृहस्पतिवार अपनी कविताएँ खुद पब्लिश करेंगे।
पुरस्कृत कविता- आगे बढ़ता देश हमारा
एक जर्जरित फ्रॉक में
दूसरा उघाड़े बदन
चमड़ी पर मेल की पपड़ियाँ
कूल्हे पर फटी निक्कर
गटर की अविरल धारा
कभी बोतल मिल जाती
कभी मिल जाता
पेप्सी का खाली टिन
दौड़ कर किनारे
बोरी के खजाने में
जमा कर आते
खुश हो जाते
दुगुने उत्साह से
फिर लग जाते
नज़र पड़ी
बहते आधे खाए सेव पर
हाथ से पोंछा
कुछ ख़ुद खाया
कुछ उसे दिया
खाली पेट में कुछ गया
तभी हाथ में पकड़ी
लकड़ी से अटक गया
रंग-बिरंगा एक कपड़ा
डंडा बन गया झंडा
करते कीचड़ में धमाल
अबोध भाई-बहन
संवेद स्वर में गाते रहे
झंडा ऊँचा रहे हमारा
आगे बढ़ता देश हमारा
प्रथम चरण के जजमेंट में मिले अंक- ७, ६॰५, ५॰५, ६॰५, ७॰२५
औसत अंक- ६॰५५
स्थान- प्रथम
द्वितीय चरण के जजमेंट में मिले अंक- ६॰६, ६, ६॰५५(पिछले चरण का औसत)
औसत अंक- ६॰३८३३
स्थान- पाँचवाँ
पुरस्कार- मसि-कागद की ओर से कुछ पुस्तकें। संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी अपना काव्य-संग्रह 'दिखा देंगे जमाने को' भेंट करेंगे।
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
बहुत बढ़िया लिखा है आपने विनय जी...!
हिंद-युग्म पर नियमित कवि के रूप में आपका बहुत बहुत स्वागत.. इंतज़ार रहेगा आपकी और भी कविताओं का |
अंत में आंसू छलक गए, बहुत ही मार्मिक लिखा है |
बस शब्द नही मिल रहे लिखने के लिए \
हर्षवर्धन
kya kahen?? sach likha hai ..bahut zyaadaa
क्या बात है भाई...अंत ऐसा होगा, सोचा ही न था.. बिल्कुल सच..कड़वा सच...बहुत अच्छे विनय जी..
बहुत मार्मिक अंत है विनय जी...
बहुत बहुत स्वागत है विनय ,
अच्छी कविता के लिए बधाई और १५ अगस्त की शुभकामनाएं
सदर
दिव्य प्रकाश
बहुत अच्छी रचना है | स्वतंत्रता दिवस की ढेरों शुभकामनाएं |
अवनीश तिवारी
बहुत सुंदर शब्द चित्र सी कविता ........ बधाई
प्रदीप मानोरिया
बहुत ही बढि़या
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