आज मन कर आचमन!
खींच ला अंतड़ियों से खोखले संयम का कण-कण!!
क्षत-विक्षत!
फिर भी विनत!
कौन-सा यह धर्म है!
तुझको तनिक-भी शर्म है?
अमृत पलकों को दिखा के,
नैनों में जो नश्तर टाँके,
सोच! उसकी भावना का
मोल क्या,क्या अर्थ है?
जान ले, कुमित्रता की
मित्रता एक शर्त्त है।
सत-असत,
बस एक मत,
जो निकट पलता दंश हो,
हितकारी है - विध्वंस हो ।
मेरे मन!
दॄश्य दुश्मन वो तो अदॄश्य- शांत रहने का चलन,
खींच ला अंतड़ियों से खोखले संयम का कण-कण।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)
18 कविताप्रेमियों का कहना है :
पलकों को अमृत दिखा के........नैनों में नश्तर जो टाँके ........
बहुत सशक्त कविता ....बधाई हो तनहा जी ...
बहुत अच्छा लगा ये भी..........की
जान ले कुमित्र्ता की मित्रता भी शर्त है....
सटीक.....
रचना एक बार में नही समझ आती है बंधू |
मेरी समझ से - कवि अपने भीतर के बुराई को त्याग कर ऊपर उठकर लड़ने को कहता है |
सुंदर है |
अवनीश
अच्छी कविता ...पसंद आयी .....
अनिल कान्त
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
आज मन कर आचमन!
खींच ला अंतड़ियों से खोखले संयम का कण-कण!!
क्षत-विक्षत!
फिर भी विनत!
कौन-सा यह धर्म है!
तुझको तनिक-भी शर्म है?......सच कहा आपने..बहुत अच्छी कविता..कृत्रिम धर्म के मर्म को भेदती हुई...
मेरे मन!
दॄश्य दुश्मन वो तो अदॄश्य- शांत रहने का चलन,
खींच ला अंतड़ियों से खोखले संयम का कण-कण।
सब समय का चक्र है दीपक जी
ज्यादा कुछ लिखेंगे तो पोल पट्टी खुल जायेगी ,कि आता जाता तो है नही कुछ फिर भी बोलती रहती है आय ,बाय शाय
मेट्रो शहर में रहने वाले एक कसबे के सीधे इंसान की मनोव्यथा का इससे अच्छा चित्रण कोई और क्या कर सकता था ,आप अच्छे कवि है ,विश्व के दीपक हैं ,और तनहा भी हैं हम नही ,यह तो आपका नाम बताता है ,हा हा हा हा हा हा
तन्हा जी,
कभी कभी आपकी कविता इतने रहस्य छिपाए रहती है कि समझना मुश्किल हो जाता है, आपसे एक निवेदन है कि ऐसी कविता की समीक्षा भी लिख दिया करें, ताकि हम कविता का रहस्य जान सकें .
धन्यवाद .
पूजा अनिल
वाह ! अद्बुत भाव शब्द और अभिव्यंजना .yatharcth ko chitrit karti बहुत बहुत सुंदर लगी आपकी यह रचना.
पूरी कविता समझ नहीं आई... :-( अनाड़ी हैं भई..
ये लाइन अच्छी हैं
जान ले, कुमित्रता की
मित्रता एक शर्त्त है।
क्या कहूं? कुछ कहा नहीं जाए
भाव थोड़ा क्लिष्ट हो ही
गए तनहा जी !!
मेरी रचना को पढने और टिप्पणी करने के लिए सभी मित्रों का शुक्रिया।
मैं स्वीकार करता हूँ कि जब मैने भी इस रचना को दूबारा पढा तो लगा कि कुछ बातें खुल कर नहीं आईं।
इस रचना की कुछ पंक्तियाँ मैने २६/११ (मुंबई पर आतंकवादी हमला) के तुरंत बाद लिखी थी। रचना अधूरी पड़ी थी। २६ जनवरी को मैने सोचा कि इसे पूरा करके पोस्ट कर दूँ,लेकिन ज्यादा विस्तार नहीं दे पाया। इसी कारण "भारत" , "पाक", "आतंकवादी" ऎसे शब्दों को डाल नहीं पाया।
वैसे
"क्षत-विक्षत!
फिर भी विनत!
कौन-सा यह धर्म है!
तुझको तनिक-भी शर्म है?"
हर उस इंसान पर लागू होता है , जो समाज में हारने के वावजूद विपत्तियों के विरूद्ध खड़ा नहीं होता। इसी लिए लिखा है कि
"जो निकट पलता दंश हो,
हितकारी है - विध्वंस हो ।"
मेरा मानना है कि "कुमित्र" उसी को कह सकते हैं जो "मित्र" हो, जो "मित्र" हीं नहीं वो काहे का "सुमित्र" या "कुमित्र"।
"जान ले, कुमित्रता की
मित्रता एक शर्त्त है।"
उम्मीद करता हूँ कि अब यह कविता थोड़ी-थोड़ी स्पष्ट हुई होगी।
धन्यवाद,
विश्व दीपक
deepak ji,
jo shabd aapne naheen daale unki is me zaroorat bhi naheen thi...unke bagair hi kam se kam 90-95 pratishat kavitaa saaf hai...aur is se zyaada saaf honi bhi naheen chaahiye....
agar zyaada hi saaf ho jaaye to kavitaa ka mazaa kahaa....???
par aapne ye tippani dekar bahut sahi kiyaa
तन्हा जी,
अर्थ स्पष्ट करने की ज़रूरत ही नहीं। क्योंकि बिना किसी संदर्भ-प्रसंग के, यह बात समझ में आ रही है कि कविता की रचना क्यों हुई। 11/26 इसकी विवेचना, इसके प्रयोजन का एक आयाम हो सकता है। सफल कविता वो है जिसके कई आयाम हो, जैसी ज़रूरत। और मैं मानता हूँ कि यह कविता उस तरह से सफल है।
शब्द-चुनाव दो राष्ट्रकवियों 'गुप्त' और 'दिनकर' की याद दिलाता है। हालाँकि यहाँ पर मेरा मत है कि भाव यही रखते हुए भाषा सामयिक होती तो कविता को मैं संग्रहणीय कहता। शेष आप जानें॰॰॰॰॰
अमृत पलकों को दिखा के,
नैनों में जो नश्तर टाँके,
सोच! उसकी भावना का
मोल क्या,क्या अर्थ है?
जान ले, कुमित्रता की
मित्रता एक शर्त्त है।
सुंदर कविता!!!
निश्चित रूप से हमे भारत और भारतवासियों के विकास के लिए संकल्पित होना चाहिए..
एक एक नागरिक का कर्तव्य है....
बढ़िया कविता..
तन्हा जी,
अच्छी रचना है। शब्द,भाव,प्रेषण सभी स्पष्ट हैं। रचना सशक्त है। बधाई।
"सत्यप्रसन्न"
सत-असत,
बस एक मत,
जो निकट पलता दंश हो,
हितकारी है - विध्वंस हो ।
मेरे मन!
दॄश्य दुश्मन वो तो अदॄश्य- शांत रहने
waah bahut sundar.
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)