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Monday, January 26, 2009

शादी- चार समीकरण


१. तुमसे
एक कप चाय मांगी
खाना खाया
बच्चों को दुलारा
तुमको डांटा
और शरीर जोड़ कर सो गया
तुम्हारा मन वहीं तकिये के ऊपर सुलगता रहा
और मेरा मन?
ये है शादी

२. तुमने सामान की एक फेहरिस्त मुझको थमाई
बच्चों की ढेर सी शिकायतें बताई
चाय, खाने की सामजिक रीत निभाई
और सो गई
मेरा मन सोचता रहा, और जागता रहा
और तुम्हारा?
ये है शादी

३. तुमने मुझे प्यार से टिफिन थमाया
और दिन भर सोचती रही मेरी गतिविधियाँ
कामना में रही तुम मेरी सफलता की
इंतज़ार किया सूरज के बुझने का
ताकि मैं उदित हो सकूँ
तुम्हारी शाम में-
यह है शादी

४. मैंने सुबह तुमसे विदा ली
और छोड़ गया अपना अस्तित्व,
अपनी चंचलता और निजी सानिध्य
तुम्हारे आँचल में
दिन भर एक नए मुखौटे के साथ
तुम्हें याद रख कर भी भूला रहा
गोधुली में जब लौटा
तुम्हारी चाय में घुल गया अपराजित मन, थकन और क्लान्ति
और मैं फिर महकने लगा
ये है शादी

यूनिकवयित्री- रचना श्रीवास्तव

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19 कविताप्रेमियों का कहना है :

manu का कहना है कि -

प्रथम पाठक की तरफ़ से ,यूनी कवियत्री को गणतंत्र दिवस की बधाई....
चारों समीकरण हमारी रोज मर्रा की जिन्दगी को उकेरते हैं..
गिले,शिकवे ,जिम्मेदारियों , प्यार, इंतज़ार, झुन्झलाह्तें , और शुभकामनायें ..
फ़िर शाम को वापसी का इंतज़ार .
और भला क्या है शादी.....

आलोक साहिल का कहना है कि -

kavita ke madhyam se aapke anubhavon se rubaru hua......achha laga....
gantantra diwas ki dheron shubhkamnaayein.
ALOK SINGH "SAHIL"

Harihar का कहना है कि -

बहुत अच्छी कविता
शब्दों में अनुभव का सुन्दर आयोजन !

शोभा का कहना है कि -

बहुत ही सुन्दर लिखा है रचना जी।

Vinaykant Joshi का कहना है कि -

रचनाजी,
जीवन की सच्चाई को बयां कराती पंक्तियां.
.
इंतज़ार किया सूरज के बुझने का
ताकि मैं उदित हो सकूँ
तुम्हारी शाम में-
.
विशेष अच्छी लगी
सादर,
विनय के जोशी

Anonymous का कहना है कि -

ये लीजिये , आ गए विज्ञापन लेकर ..अमा यार कुछ तो कभी लिखे हुए पर भी लिख दिया करो .पर .खैर

neelam का कहना है कि -

विनय जी सुधर जायिये ,ऐसे तो हम लोग आपके ब्लॉग को कभी देखने नही वाले ,इतनी संजीदा कविता पर लिख ने जा रहे थे की मनु जी की झाड़ देखकर हँसी निकल गई ,विनय जी बहुत हो गया है अब |

neelam का कहना है कि -

बेहद संजीदा रोज की बातों को इतना बढ़िया लहजा ,वल्लाह बहुत ही उम्दा ,कई बार पढ़ चुके हैं

neelam का कहना है कि -

बेहद संजीदा रोज की बातों को इतना बढ़िया लहजा ,वल्लाह बहुत ही उम्दा ,कई बार पढ़ चुके हैं

manu का कहना है कि -

neelam ji ,
pakaa hai ke ye walaa "ANI MOUSE" main hi hoon............????

अवनीश एस तिवारी का कहना है कि -

good one !

Divya Narmada का कहना है कि -

शब्द चित्र मन भाए हैं

Anonymous का कहना है कि -

स्नेहिल शब्दों के लिए आप सब की आभारी हूँ. आशा है प्यार और अभिनन्दन बना रहेगा.
शादी सचमुच एक मधुर और सम्पूर्ण संवेदना है और इस कविता के माध्यम से मैंने एक मध्यम वर्गीय पुरूष के जीवन दर्शन और उसके वैवाहिक संबंधों को समझने की कोशिश की है. उम्मीद है प्रयास सफल रहा और मैं अपनी बात कह पायी.
धन्यवाद
रचना

विश्व दीपक का कहना है कि -

शादी के चारों समीकरण सोचने पर मजबूर करते हैं।
एक सुलझी हुई कविता के लिए रचना जी को बधाईयाँ।

-विश्व दीपक

देवेन्द्र पाण्डेय का कहना है कि -

३‍‍-४ शादी १-२ बर्बादी
३-का जवाब नहीं---बहुत अच्छा लगा पढ़कर
----देवेन्द्र पाण्डेय

manu का कहना है कि -

kaahe devender ji ek jaraa si daant ko ....aur zaraa si shopping ..aur jimmewaari ko barbaaadi kah rahe hain...
ab shaadi ki hai to ye sab bhi hogaa hi.....jabhi to mazaa hai...
ha..ha..ha..ha

शैलेश भारतवासी का कहना है कि -

रचना जी,

मुझे ऐसा लगता है कि पिछले १ वर्ष में आपकी लेखनी बहुत प्रखर हुई है। वह यह समझने भी लगी है कि असल कविता क्या है। पहले तो इसके लिए बधाई।

जहाँ तक समीकरण हो मैं समझ पाया। शुरू के दो समीकरण पति-पत्नी के संबंधों के बारीक छिद्रों को शब्द देते हैं। वहीं आगे के दो समीकरण संबंधों की सार्थकता की वक़ालत करते हैं। अगर मेरा अंदाज़ा ठीक है तो मैं यह कभी नहीं चाहूँगा कि मेरी ज़िदंगी में पहले दो समीकरण आयें, हमेशा आगे के दो समीकरणों से वैवाहिक ज़िंदंगी का गणित हल कर सकूँ।

हो सकता है कि आपने यह मानकर लिखा हो कि समीकरण 1 X समीकरण 2= समीकरण 3 X समीकरण 4.

मैं तो फिलहाल इतना ही समझ पाया हूँ।

manu का कहना है कि -

SHAILESH JI,
NAMASKAAR ....
PATAA NAHEEN KE AAP IS SHAADI KE LADDOO SE BACHE HAIN YAA NAHEEN.......
PAR IN PAHLE DO SAMIKARNON SE GHABRAANE KI ZAROORAT NAHIN HAI.........

YE ZINDGI KO HASEEN HI BANAATE HAIN...........
EK AUR DHANG SE SOCH KAR DEKHEIN..
AUR DEWNDER JI ...AAP BHI MAHSOOS TO KAR KE DEKHIYE..YE DOOSRA PAHLOO...

Nikhil का कहना है कि -

बहुत बढिया रचना जी,
देर से आया, माफी चाहता हूं...
निखिल

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