गुज़ारिश मां से....
मेरी किताबों के ऊपर जमी धूल
मत झाड़ना....
और हर रोज मत भूलना....
अगरबत्ती जलाना...
गर्द और धुएं में ही तो
मैं तुम्हारे पास बचा हुआ हूं....मां
भाई से
कभी गुस्सा आए तो....फाड़ डालना
घर के अलमीरे में पड़ी
मेरी सारी तस्वीरें....लेकिन अफसोस
आईना देखोगे तो भी...
....मैं याद आऊंगा ही
बहन से....
मेरे हिस्से की रोटियां
गली के कुत्तों को खिला दिया करना
सुना है...कुत्ते वफादार ज्यादा होते हैं......
ख़ुद से......
हर दिन सोचकर निकलता हूं...
घर से कि आज छोड़ आऊंगा...
अपनी बदकिस्मती को...
किसी चौराहे पर.....
लेकिन हर दिन उसकी वफादारी
मजबूर कर देती है
उन्हें अपने साथ बाइज्ज़त लौटा लाने को
मैं उनके वफादारी का कायल हूं
और...वो मेरे...हर कुछ की....
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23 कविताप्रेमियों का कहना है :
प्रथम पाठक की बधाई लें..........गणतंत्रता दिवस की बधाई भी सबको साथमें....
अन्तिम पंक्ति के अन्तिम तीन शब्द कुछ अस्पष्ट से लग रहे हैं ...बाकी कवित बहुत अच्छी है...
बहुत अच्छे...! छोटी पर दिल को छू लेने वाली...!
बहुत सुंदर.... गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं...!
इस बार तो जम गये अभिषेक.....
मां वाली तो लाजवाब है....हिंदयुग्म की सर्वश्रेष्ठ में से एक....
बहन वाली थोड़ा पची नहीं....वफादारी, कुत्ते, रोटी....गलत उपमाएं, गलत संदर्भ में....
निखिल
ये तो ब्लॉग की दुनिया में नायाब संग्रह है..
बधाई,,,
निखिल
चारो बहुत अच्छी लगी,
पर २ और ४ सबसे अच्छी लगी
सुमित भारद्वाज
गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं...
बहुत बहुत सुंदर हैं छोटी छोटी रचनाएं..........बहुत कुछ बोल रहिहैं ये सब रचनाएं
pahli aur chauthi kavita ne to kamaal hi kar diya!!!!
bahut hi sundar...
ALOK SINGH "SAHIL"
वाह क्या बात है। बहुत बढ़िया।
abhishek ji ,
yah theek nahi ,itne
kunthit aur bhramit lag rahen hain ,itna vidroh........... kuch sakaaratamak dristikon apnaayen ,maa aur bahan bete aur bhaai ki bafaaari par shaq ,bahut kuch uljha hua hai ,sab sulajh jaaye is umeed ke saath ,
kavitaayen apni jagah par hain
दूसरी और चौथी अच्छी लगी...
बहुमत अच्छा कह रहा है तो मैं भी...वरना कोई गुमनाम, अनाम, बेनाम बात को न पचा पाये.
सारी लघुकविताएँ अच्छी लगीं। अभिषेक जी अपने लय में लौटते दीख रहे हैं।
"बहन" वाली ढर्रे से अलग तो है हीं लेकिन मैं जैसा समझ रहा हूँ, उसमें कुत्ते और रोटी की उपमा का प्रयोग खुद से गहरा रोष और खीझ व्यक्त करने के लिए किया गया है। और अगर यही सोच कर लिखा गया है तो यह रचना चारों में सबसे ज्यादा गहरी है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
पसंद आईं। सच बयानी है इनमें। लेकिन 'बहन' वाली बातों को कम स्पष्ट कर पा रही है, क्योंकि यदि आप मनुष्यजाति के ऊपर अपना व्यंग्य कस रहे हैं, तब भी बहन के मार्फत बात रखना कंफ्यूजन पैदा कर रहा है। या हो सकता है कि आप अपने परिवार के किसी सदस्य की दगाबाज़ी से दुःखी हों, हो सकता है कि वो आपके टुकड़ों पर पलता हो। जो भी है, मुझे कम क्लीयर लगी।
विश्व दीपक तन्हा ने तकरीबन सही भाव समझा है...आप सभी का शुक्रिया...
abhishek ji
bahut sunder bhai vali to kya kahne
badhai
rachana
bahut achchi lagi sabhi par bhai aur bahan bali yun kahen atiuttam lagi badhai
Really liked the emotions behind all stanzas. One cannot forget one's near n dear ones. The last stanza was the best. At the same time I wud like 2 say(halanki bahut difficult hai...hum kabhi kabhi khud ko bahut mushkiloon ka samana karne ke baad toota bikhara pate hain) tat we shud fight till we succeed...."burae waqt ki ek achchi baat hai....woh ek din khatam ho jaata hai"
kya baat hai
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