पिछले हफ्ते एक भोजपुरी कविता भेजी थी इस बार एक काशिका बोली मे लिखी कविता भेज रहा हूँ। प्रस्तुत कविता काशिका बोली में हास्य-व्यंग शैली में लिखी गयी है। काशी क्षेत्र में बोली जाने वाली बोली काशिका बोली के नाम से जानी जाती है। काशिका बोली भोजपुरी का ही एक रूप है।
बंसत आने को है। यह मौसम हम भारतीयों में ही नहीं विदेशियों को भी जश्न मनाने का अवसर देता है। बंसत के बाद फागुन का त्योहार हम सदियों से मनाते चले आ रहे हैं। बसंत और फागुन के बीच कुछ वर्षों से भारत में एक और दिन त्योहार की तरह मनाया जाने लगा है। वह है--वेलेन टाइन डे। इसी को लक्ष्य कर लिखी गयी है कविता--वेलेन टाइन।
--देवेन्द्र पाण्डेय
वेलेन टाइन
बिसरल बंसत अब तs राजा
आयल वेलेन टाइन ।
राह चलत के हाथ पकड़ के
बोला यू आर माइन ।
फागुन कs का बात करी
झटके में चल जाला
ई त राजा प्रेम क बूटी
चौचक में हरियाला
आन क लागे सोन चिरैया
आपन लागे डाइन
बिसरल बसंत अब तs राजा
आयल वेलेन टाइन।
काहे लइका गयल हाथ से
बापू समझ न पावे
तेज धूप मा छत मा ससुरा
ईलू--ईलू गावे
पूछा त सिर झटक के बोली
आयम वेरी फाइन।
बिसरल बंसत अब तs राजा
आयल वेलेन टाइन।
बाप मतारी मम्मी-डैडी
पा लागी अब टा टा
पलट के तोहें गारी दी हैं
जिन लइकन के डांटा
भांग-धतूरा छोड़ के पंडित
पीये लगलन वाइन।
बिसरल बंसत अब तs राजा
आयल वेलेन टाइन ।
दिन में छत्तिस संझा तिरसठ
रात में नौ दू ग्यारह
वेलेन टाइन डे हो जाला
जब बज जाला बारह
निन्हकू का इनके पार्टी मा
बड़कू कइलन ज्वाइन।
बिसरल बसंत अब त राजा
आयल वेलेन टाइन।
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
काहे लइका गयल हाथ से
बापू समझ न पावे
तेज धूप मा छत मा ससुरा
ईलू--ईलू गावे
तनी जल्दी आ गइल है इ कवितवा
सरस्वती पुजवा भुलाइल गइल है ,
पाण्डेय जी का ,
काहे अबहनी से सबका ,
याद लगवैत हैं इ
वेलेन- टाइन का ,
इ का ठीक है ,
तनी बुझाइल जाई हमका
सुंदर रचना है | इस नवीन प्रयास के लिए बधाई भी |
यह सच है कि हमें अपने त्योहारों आदि को नही भूलकर उसे और अच्छे तरीके से मनाते रहना चाहिए |
-- अवनीश
काहे लइका गयल हाथ से
बापू समझ न पावे
तेज धूप मा छत मा ससुरा
ईलू--ईलू गावे
पूछा त सिर झटक के बोली
आयम वेरी फाइन।
बिसरल बंसत अब तs राजा
आयल वेलेन टाइन।
सच में हम बसंत पंचमी भूल गये हैं और कमर्शलाइज़ेशन की दुनिया में वेलेंटाइन डे नाम उभरा है.. ज्यादा नहीं ८-९ साल पहले से ये दिन हमारे देश में राज कर रहा है.. जिसकी वजह से बसंत पंचमी भूल गये हैं..
आत्म विस्मृति एक ऐसा कारण है जिसने इस देश को खोखला बनाने में अहम भूमिका निभाई है..
वसंत पंचमी पर ऋतु के स्वागत के साथ सरस्वती पूजन का विधान था. वेलेंटाइन दिवस को जिस तरह भारत में मनाया जाता है उसे देखकर तो संत वेलेंटाइन भी दुखी ही होते होंगे. रचना हास्य रस के साथ व्यंग के भाव समाहित किए है. हास्य-व्यंग लिखना सरल नहीं होता. इसलिए बधाई.
अंगना म सूखल तुलसी के बिरवा
घर म कैक्टस मुस्कैलस
आपन संस्कृति बिसराई के बिदेसी संस्कृति जे अप्नैलस
बहुत करारा व्यंग है
सुंदर लिखा है
रचना
:))))
वैलेंटाइन डे पर
बहुत खूब !!
RAAURE KE KAVITAA NEEK BA.
ABHI TO ITANAA HI AAYAA HAI MUJHE .......BAAKI JAB KUCHH AUR SEEKH JAAUNGAA TO AUR LAMBE COMMENT DENE KI KOSHISH KAROONGA .,,.....
ACHHI KAVITA.......
PAR AAJ ANGREJI ME LIKHANE KE LIYE MAAAF KAREIN
मुआफ नही किया ,आप के लिया सज़ा मुक़र्रर की गयी है ,बाल उद्यान में हितोपदेश में रखी है
पढिये और अमल करिए अभी से हु हु हूह हू हिन्दी में हसिये
आन क लागे सोन चिरैया
आपन लागे डाइन
बिसरल बसंत अब तs राजा
आयल वेलेन टाइन।
दिन में छत्तिस संझा तिरसठ
रात में नौ दू ग्यारह
वेलेन टाइन डे हो जाला
जब बज जाला बारह
बड़ी हीं मीठी जबान में बड़े काम की बात लिखी है आपने। हास्य में व्यंग्य का अच्छा तड़का लगाया है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
नीक लागल कविता...
कविता तो बहुत बन गईल बऽ। रूकूँ, कोई कम्पोजर से बात करथहऽ, एकरा संगीत देके गावे खातिर। मज़ा आ जाई, गीत सुने में।
शैलेश जी बहुत उम्दा विचार है :)
अपनी आवाज़ की दुनिया के सितारों को ही एक मौका दे दीजिये
सादर !!
कविता की प्रशंसा के लिए सभी का आभारी हूँ।
तन्हा जी -काशी की बोली, खड़ी बोली और भोजपुरी का मिश्रण है। कुछ शब्द तो वाकई इतने मीठे हैं कि बरबस लोगों का मन मोह लेते हैं । जैसे-राजा । यहॉ राजा, प्यार का संबोधन है । बड़े-छोटे का भेदभाव मिटाकर लोग एक दूसरे से पूछते हैं-का राजा का हाल चाल हौ ? मस्त हौआ न ! दूसरा कहता है-चौचक! आवा तोहू मजा ल । यहाँ चौचक का मतलब -प्रचुर मात्रा में।
नीलम जी-
वेलेन टाइन कs याद अबहनी से ए बदे दिलावत हैं कि एन मौका पे कोई छाँटा न दे-दे। छाँटा मतलब धोखा। एहसे ढेर का बुझाई आपका--हा-हा-हा-। ऐसन पाठक मिलें त जे कवि न रहे उहो कविता लेखन लागे।
--बहुत-बहुत धन्यवाद।
वैसे इस कविता में वेलेनटाइन का भावार्थ पश्चिमी सभ्यता से है।
-देवेन्द्र पाण्डेय।
maaf kari tani humka ,humri tippni
se kaun din laagal hai ki hum jaanat hai aur sabka samjaawat hai ki i tiuhaar humaar hai.ab hasi kare ka man kiya to kai(kah) diye ,
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