उठल डड़ौकी चलल हौ बुढ़वा दिल में बड़ा मलाल बा ।
बड़कू कs बेटवा चिल्लायल, निन्हकू चच्चा भाग जा
गरजत हौ छोटकी कs माई, भयल सबेरा जाग जा
घर से निकलल घूमे-टहरे , चिंता धरल कपाल बा
उठल डड़ौंकी चलल हौ बुढ़वा दिल में बड़ा मलाल बा ।
घर में बिटिया सयान हौ, बेटवा बेरोजगार हौ
सुरसा सरिस बढ़ल मंहगाई, बेइमान सरकार हौ
काटत-काटत, कटल जिन्दगी, कटत न ई जंजाल बा ।
उठल डड़ौंकी चलल हौ बुढ़वा दिल में बड़ा मलाल बा
हमके लागत बा दहेज में बिक जाई सब आपन खेत
जिनगी फिसलत हौ मुट्ठी से जैसे गंगाजी कs रेत
मन ही मन ई सोंच रहल हौ, आयल समय अकाल बा ।
उठल डड़ौंकी चलल हौ बुढ़वा दिल में बड़ा मलाल बा।
कल कह देहलन बड़कू हमसे का देहला तू हमका
खाली आपन सुख की खातिर पैदा कइला तू हमका
सुनके भी ई माहुर बतिया काहे अटकल प्रान बा
उठल डड़ौंकी चलल हौ बुढ़वा दिल में बड़ा मलाल बा ।
ठक-ठक, ठक-ठक, हंसल डंड़ौकी, अब तs छोड़ा माया-जाल
राम ही साथी, पूत न नाती, रूक के सुन लs काल कs ताल
सिखा के उड़ना, देखाss चिरई, तोड़त माया जाल बा
उठल डड़ौंकी चलल हौ बुढ़वा दिल में बड़ा मलाल बा ।
कवि- देवेन्द्र कुमार पाण्डेय
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
राउरे के कविता नीक बा
दुनिया के यही रीत बा
दहेज़ म बिक गैइल बाप
महतारी के गहिना बा
जिन्नगी भर कईली जेकरे खातिर
दिखावत वही बिटवा आँख बा
का कहीं आपन बबुआ
यही हर घर के साँच बा
सादर
रचना
लाजवाब कविता....शानदार टिपण्णी....
नीलम जी और रचना जी मिलकर लगता है के इस बार मुझे यूनिपाठक का ईनाम नहीं लेने देंगी .....लेखक के साथ साथ इन्हें भी बधाई...
एकाध शब्द के लिए बाहर खोज बीन करनी पड़ेगी...बाकी तो समझ आ गया.
मैंने भी प्रयास किया है भोजपुरी में लिखने का लेकिन अभी अच्छा नही लिख पा रहा हूँ |
आपकी की रचना अच्छी है | मजा आया बंधू पढ़कर |
वैसे आपक क लिखा लाजवाब बा,
हम हूँ कुछ लिखब ऐसे, हमार ख्वाब बा |
-- अवनीश तिवारी
नीक बा !
:)))
मजेदार रही कविता
और अच्छा लगी रचना जी
की सटीक टिपण्णी !!
पहिला लाईन के मतलब ना बुझाईल..बाक़ी कविता बहुत बढिया लागल...
निखिल
रचना जी जैसन पाठक पाइके मनवां खुशी से झूम रहल बा ।
मनुजी, कठिन शब्द लिख दिए होते तो खोजबीन नहीं करनी पड़ती।
निखिल जी- जब घर के बुजुर्ग अपनी डंड़ौंकी(छोटी डंडी) उठा लेते हैं तो फिर किसी को बिस्तर में सोते रहने की हिम्मत नहीं पड़ती --पहली लाइन में सुबह के इसी दृश्य को दिखाने का प्रयास किया गया है।
देवेन्दरजी इ ददंदौकी हमका बड़ा ही सुहाल बा ,
कविता बड़का ही लुभौल बा ,नीक बा ,
हमरे हिन्दयुग्मेपे ई टोपी बाला हमका डरवा लगात बा ,
इकार नाम मनु रखल है ,जाने अपना से ,जाने इकर माई बाप बा
हिन्दी में लिखो ,हिन्दी में लिखो लगावत रहत गुहार बा
अच्छा लगा इस भाषा मैं कविता
और टिप्पणियाँ पढ़ना
अभिव्यक्ति का मध्यम कुछ भी हो
सरस होना चाहिए
नीलम जी बहुत अच्छी लगी आपकी टिपण्णी भी
एक परिवार सा अपनापन है यहाँ हिन्दयुग्म पर
मनु जी का कार्टून बनाने का सपना साकार होता नही दीखता
हा हा ...
सादर !!
मैं भोजपुरी बोल नहीं सकता.. लेकिन कुछ कुछ समझ आ जाती है.. कठिन शब्द छोड़ दें तो.. जैसे डड़ौंकी का ही मतलब मुझे नहीं पता था।
खैर.. कविता बहुत अच्छी लगी देवेंद्र जी... और बाद में आपने मतलब भी समझाया...
रचना जी की टिप्पणी पर, मनु जी का वार
निखिल को हुई दिक्कत, नीलम जी का पलटवार
देवेंद्र जी ने समझाया पहली पंक्ति का सार
सेहर जी को लग रहा हिन्दयुग्म अपना परिवार..
:-)
इन दोहों को लिखने की कोशिश की इस बार
आचार्य आप कहाँ गये लेकर युग्म पर पाठ चार...
Devemdra jee,
BaDa niman. America men rahate huye bhee aapakee kavita mujhe choo gayee. 'DaDaukee' ka arth mujhe maalum nahee. Kripaya batayen. Main bhee Bhojapur se hoon aur Anjoria.com pr prah likhata hoon.Aapakee kavita se kuch milatee- julatee meri kavita prastut hai.Link par click kar padhen-
http://www.anjoria.com/sahitya/kksingh6.htm
Ashaa baa bhavishya men raur aur bhojpuri rachna padhake milee.
Saadar
Kamal Kishore Singh MD
तपन जी ,
सही कहत बा
आचार्य जी कहाँ गईल बा
लिख दो खाली दो ठो तो दोहा ,सब जने आप का
बड़ा मिस करत बा
और जौने जौने के लागल है हिन्दयुग्म हमार परिवार
बा ,उन सबका आभार बा
हमरे परिवार मा सबका स्वागत करन का हमार अधिकार बा
कमल किशोर जी-
डड़ौंकी शब्द जब मैने पहली बार सुना तो इस शब्द ने मुझे इतना आकर्षित किया कि अर्थ ढूंढते-ढूंढते कविता बन गई। डंड़ौकी का शाब्दिक अर्थ होता है--छड़ी---छोटी डंडी । भावार्थ में आप इसे -बुढ़ापे की लाठी--समझ सकते हैं।
माहुर बतिया--जहरी बुती बातें।--मुझे भी भोजपुरी का अधिक ग्यान नहीं है। अपने देश की भाषा ने जैसे आपके ह्रदय को छू लिया वैसे ही यदा-कदा यह मेरे मन को भी लुभाती है। अंजोरिया डॉट कॉम नहीं खोज सका---।
पहले रचना जी फिर तपन शर्मा --नीलम जी ने इस पृष्ठ को मजेदार बना दिया है। इसके लिए मैं सभी पाठकों का आभारी हूँ।
--देवेन्द्र पाण्डेय।
तपन जी
आप सलिल जी की दोहा कक्षा के होनहार छात्र साबित हो रहे हैं :)
नीलम जी का आतिथ्य भाव को मेरा प्रणाम है
सादर !!
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