जीवन में दूसरों के
झाँकने का सुख
असीम है
ख़ुद को बाहर रख
घर में
औरों का घुसना
कितना सरल है
बेटी भाग गई
बेटे ने घर छोड़ा
बाप को प्रीत पराई लगी
ये प्रपंच
अक्षुण आन्नद देता है
स्वान्तः सुखाय
चितार्थ करती
पर निंदा
के अनमोल पलों को
मैंने भी भोगा है
पराई गलियों में,
भटकते-भटकते
स्वयं में भटकी जो एक रोज़
अंत विहीन वीरानगी,
घटा घोप स्याह अन्धकार के अलावा
कुछ भी दृष्टिगत् न हुआ
कुछ आगे बढ़ी तो
एक छोटे से प्रकाश से
आशा बंधी
पर वो भी आ रहा था
बगल के घर से
मेरा कहीं कुछ नहीं था
दर्द के झुंड
पाप के पौधे
गर्द,धुंध
कितना दूषित था
वातावरण मेरे भीतर
गा रहा था एक फ़कीर
"जो दिल देखा आपना
मुझसे बुरा न कोय "
मन गागर छलकी
पश्चाताप के मोती बिखरे
और अन्तर्मन उज्जवलित हो गया
यूनिकवयित्री- रचना श्रीवास्तव
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18 कविताप्रेमियों का कहना है :
पश्चाताप के मोटी बिखरे ....और अंतर्मन प्रज्ज्वाल्लित हो गया.........
बहुत अच्छी कविता लगी पहली नज़र में तो ...शायद दुबारा पढ़ कर ...दोबारा कुछ कहूं...
बहुत सुन्दरता से शब्दों के मोतिओं को पिरोया है बधाई
bouth he aacha post kiyaa aapne read ker ki aacha laga
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दिल को छू गई आपकी ये रचना ।
पश्चाताप के मोती बिखरे
और अन्तर्मन उज्जवलित हो गया
बस यही है जीवन का विस्तार ,अनुपम
यर्थात को झलकाती सुन्दर रचना , वधाई
सुंदर रचना...
रचना जी ,
आपकी रचना अच्छी है |
यह गहरी है और कम शब्दों वाली भी है |
लेकिन ऐसी मजबूत रचना में मेरे जैसे कमजोर पाठकों को पहली बार में ही समझ नही आती |
बधाई |
अवनीश तिवारी
जीवन में दूसरों के
झाँकने का सुख
असीम है
ख़ुद को बाहर रख
घर में
औरों का घुसना
कितना सरल है
बेटी भाग गई
बेटे ने घर छोड़ा
बाप को प्रीत पराई लगी
ये प्रपंच
अक्षुण आन्नद देता है
बहुत सुन्दरता से शब्दों के मोतिओं को पिरोया है बधाई
RACHNA JI AAPKI RACHNA bahut hi prabhavi lagi..
ALOK SINGH "SAHIL"
कभी कभी तो लगता है मेरा कुछ भी नही है आप सभी का प्यार है जो कविता ह्रदय से निकल शब्दों में ढल कागज़ पर उतर आती है और हिंद युग्म के मंच पर चढ़ के आप सब का सानिध्य और प्रेम पाने को मचल जाती है .
दिल की गहराइयों से धन्यवाद इन अमूल्य शब्दों का
आप सभी की आभारी
रचना
बहुत सुंदर रचना...।
अच्छी रचना
"जो दिल देखा आपना
मुझसे बुरा न कोय "
इन्ही पंक्तियों मे सब कुछ था
पहले बेहद जल्दी में था.....सो अब दुबारा आया हूँ ...
वाकई में जिन बातों को दूसरे के जीवन में देखकर हम चटखारे लेते हैं वो ही हम पर बीते तो क्या गुजरती है.......और जब ख़ुद में झाँकने के बाद अगर वाकई आंसू निकल आयें तो वो रोना ..हंसने से लाख गुना बेहतर होता है ...सब धो देते हैं वो आंसू.....
बहुत अच्छे ढंग से कविता अदा की है आपने...
रचना जी आपकी रचना बहुत प्रभावशाली है | च्च है न हम दूसरो की बातें
सुनने में कितने मोहित हो उठते है लेकिन जब स्वय पर
बीते तो अहसास होता है | औ ये आंसू.......क्या सौगात
है न हर मौके पर साथ निभाते है |मुझे दो पंक्तियाँ याद आ रही
है :- आंसू से भरने पर आँखें और चमकने लगती है
सुरभित हो उठता समीर जब कलियाँ झरने लगती है
सुन्दर रचना के लिए बधाई.....सीमा सचदेव
Jab doosron pe beetti hai to sun ke ek news lagti hai jab khud pe ati hai to ghatna ban jati hai..agar yeh fark mit jaye to doosron ka dard hum khud mein mehsoos karen to shayd yeh prapanch khatm ho jaye. Shayad aapki rachna ke madhyam se hum sab yeh samajh payen.
Aaj humen aise hi man ko chu lene wali rachnao ki aur rachan ji apki zarurat hai. Bahut achche
रचना जी बहुत सुंदर शब्दों मैं जीवन का सार बता दिया सुंदर कविता के लिए बधाई अमिता
Rachna ji ko Anarman se parichaya hone ki badhaii. Iss umra mein aisee gambheer aur hindustani 'panghat' ki gupshup ke beech Antarman dikhaa, to dekhne wale kii jai ho !
Do cheezein antarman se seedhaa sampark karaatii hain---ek 'Pachaataap', aur doosra "Kritagyataa".
Badhai Rachna jii...ab apne ko kos rahaa hoon ki ye kavitayein pahele kyon nahii padhii.
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