आंखों को नमी और
दर्द को दामन चाहिए...बहने के लिए
चाहतें हक़ीक़त में भी ढ़ल सकें
दिल को ऐसी जुबां चाहिए कहने के लिए
कोई है पर सुनता नहीं
ख्यालों को भी रुह चाहिए ढ़लने के लिए
उम्मीदें और बे-पनाह न हों
उनकों जमीं-ओ-डगर ठहरने के लिए
बिलखता हुआ ही बिखरा है हर कोई
सबों को नज़र चाहिए देखने के लिए
डगमगाते तदबीरों का ख्याल ये है
कि सहारे बढ़ आएंगे थामने के लिए
कुछ भी कहीं नहीं हुआ
कोई बेचैन है ख़ुद से उलझने के लिए
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9 कविताप्रेमियों का कहना है :
सुन्दर अभिव्यक्ति
डगमगाते तदबीरों का ख्याल ये है
कि सहारे बढ़ आएंगे थामने के लिए
कुछ भी कहीं नहीं हुआ
कोई बेचैन है ख़ुद से उलझने के लिए
क्या बात है ,अभिषेक जी एक शेर अर्ज है
रफ़्ता रफ़्ता जज्बे -ऐ कामिल ने दिखाया वो असर
कल तक लगी थीजो मुझमे उल्फत अब वो उनके दिल में है ,
आप की ही उम्र में पढ़ा था ,जिसको सुनाया था वो आज हमसफ़र भी है ,समझदार के लिए इशारा काफ़ी है |
कोई है पर सुनता नहीं
ख्यालों को भी रुह चाहिए ढ़लने के लिए..
बढ़िया लिखा है अभिषेक भाई...
नीलम जी भी शे’र से टिप्पणी करने लगीं... बढ़िया है...
सुंदर है |
लेकिन यह कुछ सही नही लग रहा है - जांच ले -
उम्मीदें और बे-पनाह न हों
उनकों जमीं-ओ-डगर ठहरने के लिए
बधाई |
अवनीश तिवारी
डगमगाते तदबीरों का ख्याल ये है
कि सहारे बढ़ आएंगे थामने के लिए
कुछ भी कहीं नहीं हुआ
कोई बेचैन है ख़ुद से उलझने के लिए
kya laine hain! behatarin patni bhai...
ALOK SINGH "SAHIL"
चाहतें हक़ीक़त में भी ढ़ल सकें
दिल को ऐसी जुबां चाहिए कहने के लिए
कोई है पर सुनता नहीं
ख्यालों को भी रुह चाहिए ढ़लने के लिए
सुंदर कविता क्या खूब लिखा है .
सादर
रचना
नीलम जी शेर का इतना गहरा और सुंदर असर हुआ वाह
उम्मीदें और बे-पनाह न हों
उनकों जमीं-ओ-डगर ठहरने के लिए
बहुत खूब अभिषेक जी पढ़ कर मजा आ गया
चाहतें हक़ीक़त में भी ढ़ल सकें
दिल को ऐसी जुबां चाहिए कहने के लिए
कोई है पर सुनता नहीं
ख्यालों को भी रुह चाहिए ढ़लने के लिए
सुंदर अर्थपूर्ण काव्य !!
नीलम जी का rejoinder
बहुत खूब
सादर !!
बहुत अच्छी कविता है .
बधाई..
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