हिन्द-युग्म के वार्षिकोत्सव में मैंने अपनी यह ग़ज़ल सुनाई थी। पाठकों की फरमाइश थी कि वे इसे हिन्द-युग्म पढ़ना चाहते हैं। ये ग़ज़ल जैसी भी है, उस शेर की वजह से है जो इसका आख़िरी शेर है… और वो आख़िरी शेर… 2002 में कश्मीर के गांव में एक परिवार के सभी लोगों को आतंकवादियों ने मौत के घाट उतार दिया। नवभारत टाइम्स में एक फ़ोटो छपा जिसमें पुलिस वाला एक बच्चे से कुछ पूछता दिखाई दे रहा था, नेपथ्य में लाशों की कतार दिखाई दे रही थी... उस फोटो फीचर को ज़बान देने की कोशिश है वो शेर...
ग़ज़ल हाज़िर है... नाज़िम
ग़ज़ल
याद आते हैं, प्यास नगर में, जल थल जैसे लोग थे वो
उजले-उजले, नर्म-मुलायम चावल जैसे लोग थे वो
होरी, कजरी, बिरहा, चैती हर मौसम का राग लिये
मोर, पपीहा, तोता, मैना, कोयल जैसे लोग थे वो
जैसा मौसम, वैसा आलम, सब की धूप और सबकी छांव
शहर से मिलकर डर जाते थे, जंगल जैसे लोग थे वो
ग़ैरों तक को ढंक लेते थे, ऐसे थे पोशाक सिफ़त
और मुट्ठी में आ जाते थे, मलमल जैसे लोग थे वो
बचपन के आकाश पे जैसे नानी, परियां, भालू, शेर
रंग-बिरंगी शक्लों वाले बादल जैसे लोग थे वो
अब भी अक्सर आ जाते हैं, ख़ुश्बू बनकर यादों में
अपनी ज़हर भरी दुनिया में संदल जैसे लोग थे वो
दहशतगर्दी क्या होती है...? बच्चे को मालूम न था
उसने तो ये कहा पुलिस से.... अंकल जैसे लोग थे वो
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16 कविताप्रेमियों का कहना है :
होरी, कजरी, बिरहा, चैती हर मौसम का राग लिये
मोर, पपीहा, तोता, मैना, कोयल जैसे लोग थे वो
बहुत अच्छे शेर बने हैं |
यह एक मीठी ग़ज़ल है |
बधाई|
अवनीश तिवारी
bhartiya sanskrati ko jaahir karte sher..lajvab ban pade he..
dhanyvad jo achchi panktiya padne ko mili
amitabh
आपको सुन चुका हूँ.. इस गज़ल को दोबारा पढ़ना अच्छा लगा
ग़ैरों तक को ढंक लेते थे, ऐसे थे पशाक सिफ़त
और मुट्ठी में आ जाते थे, मलमल जैसे लोग थे वो
बहुत ही सुंदर श्रीमन ,जवाब नहीं और ना ही प्रशंसा के लिए शब्द हैं .
दहशतगर्दी क्या होती है...? बच्चे को मालूम न था
उसने तो ये कहा पुलिस से.... अंकल जैसे लोग थे वो
वाह...वाह
बहुत दिनों बाद एक अच्छी रचना.. दिल को छू गयी...
रचना ने कुछ कहने को प्रेरित किया पर किसी गुमनाम
का दिल न दुखे इसलिए उसे अपने तक ही रखता हूँ
बहुत ही बहुत ख़ूब ग़ज़ल पढ़ी नक़वी साहब दिल को छू गई। अँकल जैसे लोग। बड़ी बात व्यक्त कर दी आपने। क्या कहना !
ek bar phir badhyee
bahut
komal kafiye bune hain aapne
shyam skha
ग़ैरों तक को ढंक लेते थे, ऐसे थे पशाक सिफ़त
और मुट्ठी में आ जाते थे, मलमल जैसे लोग थे वो
दहशतगर्दी क्या होती है...? बच्चे को मालूम न था
उसने तो ये कहा पुलिस से.... अंकल जैसे लोग थे वो
बहुत खूब! क्या कहने जनाब! वाकई...!
दिलशेर 'दिल'
अच्छी ग़ज़ल बधाई और आचार्य जी को भी संयम बरतने की ,आप आचार्य जी बुरा न माने हम आपकी रचनाएँ भी पढ़ना कहेंगे पर काव्यपल्लवन , ,पर टिपन्नी रुप में नहीं
आपका दोस्त अनाम
दहशतगर्दी क्या होती है...? बच्चे को मालूम न था
उसने तो ये कहा पुलिस से..अंकल जैसे लोग थे वो
बच्चे का मासूम मस्तिष्क का उत्तर ..
सतह से सरल पर गहरे अर्थ लिए हुवे
अद्भुत पंक्तियाँ !!!
बधाई !!
ZADEIN BAHUT GAHARI THIN WO,
SACHCHAAI AUR KHULOOSI MEIN..
KABHI NAA UGLAA ZAHAR JAGAT MEIN,
PEEPAL JAISE LOG THE WO.........
AACHARYA KO PRANAAM,,,,NAZIM JO KO NAMASKAAR...
BACHPAN SE SUNTAA AAYA HOON KE EK PEEPAL HI ESA PED HAI JO OXIGEN LEKER OXIGEN HI CHHODTA HAI....
CAARBAN DYOXIDE NAHEEN......
ANGREJI MEIN LIKHNE KI MAAFI ....
ANAAMI BHAAI KO ITNAA HI KAAFI....
बेहतरीन गज़ल।
किस शेर को उद्धृत करूँ, समझ नहीं आ रहा।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक
जिन्दगी की एक मीठी, नमकीन, सतरंगी , अश्कमिश्रित महकती धारा है आपकी कविता....
हम लोगों का सौभाग्य था कि हम लोगों ने नाज़िम जी से यह ग़ज़ल सुनी थी तब से सिर्फ़ अंकल जैसे लोग ,कहीं अंकित सा हो गया था ,दिमाग में ,दुबारा देख कर फिर से
यादें ताज़ा हो गयीं |
बेहतरीन , बेहतरीन बेहतरीन
ग़ज़ल हो तो ऐसी। वैसे युग्म पर आपकी बहुत कम ग़ज़लें प्रकाशित हुई हैं। लेकिन जितनी भी हैं, उम्दा हैं। एक ग़ज़ल कम्पोज भी हुई।
वार्षिकोत्सव मे मैने इस गज़ल को सुनकर जितनी तालिया बजाई थी, उतनी ही ताली अब भी बजाना चाहता हूँ,
अंतिम शे'र बहुत ही बढिया लगा,
सुमित भारद्वाज
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