आज़ादी की साठवीं वर्षगाँठ पर हिन्द-युग्म की तरफ से आपको बधाई।
आज के दिन के लिए हम लेकर आए हैं अवनीश गौतम जी की यह कविता-
गलत मत कहो..
हज़ारों साल पुराने देश में
साठ साल की आज़ादी
अर्थ क्या हैं इस बात के?
नियॉन साइनों, बिलबोर्डों और टीवी की रोशनी में
एंटी एज़िंग क्रीम और पुरातन खुशबुओं से दमकाये देश को
नई दुनिया की नई पीढ़ी को दिखाया जा रहा है
गोया कि एक मातम को एक ज़श्न की तरह चमकाया जा रहा है
आज़ादी है हत्यारों की,
आज़ादी है लालची सौदागरों की,
आज़ादी है वहशियों और मदान्ध हाथियों की,
झुर्रियों और खून के थक्कों में जमा देश
डर से दौड़ता है
कुछ मारते हैं किलकारियाँ
बाकी करते हैं हाहाकार..
कि आज़ादी एक गरीब दलित स्त्री की योनि है
जिसके बलात्कार पर कोई शर्मसार नहीं होता
आधी रात को हमें मिली थी आज़ादी
क्या इसीलिये अभी तक नहीं निकला सूरज
खुशियाँ मनाओ कि दुर्गन्ध से बचने के लिये
कोलोन है..डियोड्रेंट है...आज़ादी है।
अवनीश गौतम
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24 कविताप्रेमियों का कहना है :
अवनीश जी,
उत्कृष्ट रचना के लिए बधाई स्वीकार करें। चिरकाल से सोये हुये जनमानस में चेतना की अलख जगाने का प्रयास वंदनीय है।
नई दुनिया की नई पीढ़ी को दिखाया जा रहा है
गोया कि एक मातम को एक ज़श्न की तरह चमकाया जा रहा है
आज़ादी है हत्यारों की,
आज़ादी है लालची सौदागरों की,
आज़ादी है वहशियों और मदान्ध हाथियों की,
कि आज़ादी एक गरीब दलित स्त्री की योनि है
जिसके बलात्कार पर कोई शर्मसार नहीं होता
एक-एक पंक्ति विचारणीय है।
आधी रात को हमें मिली थी आज़ादी
क्या इसीलिये अभी तक नहीं निकला सूरज
अवनीश जी,सूरज निकले भी तो क्या होगा आँखें ही बंद हैं/कर दी गईं है। और आँख खुले इस्के लिए सपनों का टूटना जरूरी होता है। समय को प्रतीक्षा है एक वैचारीक क्रांति की।
स्वतंत्रता दिवस की बधाई व शुभकामनाएं
दिल रो पड़ा कविता पड़ कर...........
भाव जीतने गहरे है शिल्प ने उसे उतनी ही तत्परता के साथ प्रेशित किया है..............
एक गहरा व्यंग्य और एक अपील भी....................
आज़ादी एक गरीब दलित स्त्री की योनि है
जिसके बलात्कार पर कोई शर्मसार नहीं होता
और
गोया कि एक मातम को एक ज़श्न की तरह चमकाया जा रहा है
और भी
खुशियाँ मनाओ कि दुर्गन्ध से बचने के लिये
कोलोन है..डियोड्रेंट है...आज़ादी है।
आप का दर्द सीधे दिल मे उतरता है...............
एक चित्र खींचने मे सक्षम है आपकी कविता
पर एक शिकवा आप से और राजीव जी दोनो से रहेगी कि माना ख़ामिया है देश मे पर इन्हे दूर हमे ही करना है
तोड़ा आशावादी होकर सोचिए कि दूसरे देशो कि तुलना मे हम कितने परिपक्व और उन्नत है.......
यह हमारी कविताओं मे दिखना चाहिए............
शुभकामनाएँ
अवनीश जी
कविता में देश प्रेम से अधिक आक्रोश दिखाई दिया । देश में समस्याएँ हैं इसमें
कोई दो राय नही किन्तु इसके लिए जिम्मेदार कौन है ? देश के लोग ही ना ?
फिर कोसते किसे हो ? कवि का कार्य जागृति फैलाना है जो आपने भलीभाँति किया
है किन्तु इसमें यदि थोड़ा अपनापन और मिला होता तो अधिक अच्छा लगता ।
वैसे चिन्ता ना करें देश में सम्भावनाएँ अभी भी शेष हैं -
इस नदी की धार में
ठन्डी हवा आती तो है ।
नाव जर्जर ही सही
लहरों से टकराती तो है ।
एक चिन्गारी कहीं से ढूँढ लाओ दोस्तों
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है ।
शुभकामनाओं सहित
अवनीश जी..
बहुत प्रभावित किया है आप ने अपने विचारों से..
सच को दर्पण दिखाने के लिये आभार..
आज़ादी है हत्यारों की,
आज़ादी है लालची सौदागरों की,
आज़ादी है वहशियों और मदान्ध हाथियों की,
झुर्रियों और खून के थक्कों में जमा देश
डर से दौड़ता है
कुछ मारते हैं किलकारियाँ
बाकी करते हैं हाहाकार..
कि आज़ादी एक गरीब दलित स्त्री की योनि है
जिसके बलात्कार पर कोई शर्मसार नहीं होता
आधी रात को हमें मिली थी आज़ादी
क्या इसीलिये अभी तक नहीं निकला सूरज
खुशियाँ मनाओ कि दुर्गन्ध से बचने के लिये
कोलोन है..डियोड्रेंट है...आज़ादी है।
डर से दौड़ता है
कुछ मारते हैं किलकारियाँ
बाकी करते हैं हाहाकार..
अवनीश जी बहुत सही कटाक्ष किया ।
ये पंक्तिया तो खासी प्रभावी है -
गोया कि एक मातम को एक ज़श्न की तरह चमकाया जा रहा है
आक्रोष उभर कर आया है ।
ओ के, जैसा आप कहें।
महोदय जी यह तो आजादी की वर्षगांठ मात्र है। वैसे जिस आजादी की परिकल्पना आप कर रहे हैं वह तो साठ साल पहले भी नहीं थी। विभाजन की त्रासदी भूल गए हैं क्या।
"खुशियाँ मनाओ कि दुर्गन्ध से बचने के लिये
कोलोन है..डियोड्रेंट है...आज़ादी है।"
यहाँ कविता नहीं है चिंगारी है। बडी आग लगेगी और एसा उजाला होगा कि सूरज को शर्मिन्दगी होगी। आपकी कलम से यह अपेक्षा है। बेहद धारदार....
*** राजीव रंजन प्रसाद
अवनीश जी
बहुत ही उत्कृष्ट, अनुपम रचना आपकी कल निश्चित ही क्रान्तिकारी है
कचोटती है आपकी कविता
बधाई स्वीकारिये
सस्नेह
गौरव शुक्ल
वर्तमान से आक्रोशित एक कवि के तीखे शब्द बहुत चुभे अवनीश जी।
एक एक शब्द जैसे चिंगारी उगल रहा है।
नियॉन साइनों, बिलबोर्डों और टीवी की रोशनी में
एंटी एज़िंग क्रीम और पुरातन खुशबुओं से दमकाये देश को
नई दुनिया की नई पीढ़ी को दिखाया जा रहा है
आधी रात को हमें मिली थी आज़ादी
क्या इसीलिये अभी तक नहीं निकला सूरज
खुशियाँ मनाओ कि दुर्गन्ध से बचने के लिये
कोलोन है..डियोड्रेंट है...आज़ादी है।
अंतिम पंक्ति पढ़कर आपसे ईर्ष्या करने का मन होता है।
बहुत बधाई।
आज़ादी है हत्यारों की,
आज़ादी है लालची सौदागरों की,
आज़ादी है वहशियों और मदान्ध हाथियों की,
कि आज़ादी एक गरीब दलित स्त्री की योनि है
जिसके बलात्कार पर कोई शर्मसार नहीं होता
आधी रात को हमें मिली थी आज़ादी
क्या इसीलिये अभी तक नहीं निकला सूरज
खुशियाँ मनाओ कि दुर्गन्ध से बचने के लिये
कोलोन है..डियोड्रेंट है...आज़ादी है।
अवनीश जी आपने अंदर तक झकझोर कर रख दिया। रोंगटे खड़े हो गए। हमारा देश जो सदियों से पूरे विश्व का एक मार्गदर्शक रहा है , उसे आजाद हुए बस साठ हुए हैं। कचोटता है यह भाव। और हम जो उसके पुत्र और यहाँ के वासी होने का दंभ भरते हैं, बस एक दिन के लिए सालगिरह मना कर खुश हो जाते हैं। बाकी के ३६४ दिन आजादी का अर्थ निकाल रहते हैं हम। धिक्कार है हमपर!
कड़वी सच्चाई है
aap ki kavita sarahniya he...azaadi sachmuch teen thake hue rangon ka naam he jise dhone wala pahiya ghis chuka he....dalit stree par hue balatkar sabuut he... jarurat he deo aur kolon tyag kar aslee paseene kee buund kee mahak se praduushit kiya jaee taki taji hawa k liye sab bechain ho jaee.... utkrist rachna he..badhaeeyan...
आजाद भारत को इससे अच्छी श्रद्धांजलि नहीं हो सकती थी।
ख़री-ख़री!
प्रत्येक कवि का बात कहने का अपना स्टाईल होता है, मन की पीड़ा को, रोष को आपने क्रांतिकारी तरीके से सामने रखा है, अच्छा लगा।
बधाई!!!
ye kavita bharat ke us admi ke sangharsh ki baat karti hai jiski astitv ki ladai aj bhi khatam nahi huyi, jise aj bhi azadi ka intzar hai...khuli saaf, atank rahit,bhedwav rahit abo hawa me sans lene ka sapna pale huye jo age bad raha hai..bazarwad ke is daur me aur jiyada garib hote us insan ka dard jise aj bhi azadi ki talash hai..
khoobsurat
आपकी कविता चोट करती है। सबसे उम्दा पंक्तियाँ-
कि आज़ादी एक गरीब दलित स्त्री की योनि है
जिसके बलात्कार पर कोई शर्मसार नहीं होता
आधी रात को हमें मिली थी आज़ादी
क्या इसीलिये अभी तक नहीं निकला सूरज
खुशियाँ मनाओ कि दुर्गन्ध से बचने के लिये
कोलोन है..डियोड्रेंट है...आज़ादी है।
अवनीश भाई
बहुत दमदार चित्रण है. 'आज़ादी' का इससे अच्छा विश्लेषण मेरी नज़र में नहीं है.
चलिए बहुत दिन हुए, एक बैठकी लगायी जाएगी जल्दी ही.
avanish aapne jhkjhor kar rakh diya hai sabke soch ko khushi ko
magar desh ko samhalenge bhi humi
koshish karte hain naya roop dene ki
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