स्वराज से सुराज तक
विभाजन से मिलाप तक
मेरी मातृभूमि का अभी
लंबा सफर है बाकी।
तंदूर से उत्थान तक
अशिक्षा से ज्ञान तक
कई अंधेरे कोनों में
उजाला फैलाना है बाकी।
तय किए साठ बरस
सफ़र लंबा था मगर
ऊँचे-नीचे रास्तों पर अभी
अनन्त का सफर है बाकी।
मिलती गई कई मंज़िलें
ऊँचे रहे हम उड़ते
सोने की चिड़िया की फिर भी
बहुत उड़ान अभी है बाकी।
- सीमा कुमार
१४ अगस्त , २००७
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
सीमा जी,
कविता अच्छी है पर प्रवाह में कमी है।
ऊँचे-नीचे रास्तों पर अभी
अनन्त का सफर है बाकी।
’ऊँचे-नीचे’ का प्रयोग ठिक नही लगा। क्या पह्ले से ही यह मान लेना उचित है कि देश नीचे रास्तों पर भी सफ़र करेगा?
मै सहमत हूँ आपकी इस बात से-
कई अंधेरे कोनों में
उजाला फैलाना है बाकी।
भाव एवं शिल्प अच्छे है
बिंब भी अच्छे है
पएर कविता अधूरी सी लगी
ऐसा क्यूं है यह कवीएिट्री होने के नाते आप जान सकती है..........
मिलती गई कई मंज़िलें
ऊँचे रहे हम उड़ते
सोने की चिड़िया की फिर भी
बहुत उड़ान अभी है बाकी।
यह पंक्ति विशेष पसंद आई
एक अच्छी कविता के लिए धन्यवाद और आगामी कविताओं के लिए साधुवाद
सीमा जी
अच्छी कविता लिखी है । सचमुच अभी बहुत कुछ करना बाकी है ।
कविता आज के दिन के हिसाब से बहुत अच्छी है ।
सीमा जी,
मुझे यह कविता बहुत अच्छी लगी। विचार उत्तम हैं। मुझे लगता है कि आज़ादी के 60 साल पूरे होने पर ये जानना अति आवश्यक है कि हमें अभी बहुत कुछ करना है, जो ये कविता बखूबी समझाती है
तपन शर्मा
सीमा जी ....
रचना का भाव अच्छा है...किन्तु प्रभावशाली रचना मैं इसे नहीं कहूँगा...
कुछ स्थानो पर कविता अपनी पकड बनाने में सफल रही है किन्तु लय से मैं सन्तुष्ट नहीं हूँ..क्रपया अन्यथा ना लें !
प्रयास सराहनीय है..
आभार
स्वराज से सुराज तक
विभाजन से मिलाप तक
मेरी मातृभूमि का अभी
लंबा सफर है बाकी।
तंदूर से उत्थान तक
अशिक्षा से ज्ञान तक
कई अंधेरे कोनों में
उजाला फैलाना है बाकी।
ये विचार मुझे ज्यादा पसन्द आये हैं
सीमा जी कविता अच्छी लगी ।
बढ़िया !!!
जहां तक मैं समझता हूं कविता इसकी लय एवं संरचना से मापी जाती है। भावों का भी इसमें स्थान होता है परन्तु प्राथमिक नहीं। अतः भावों के साथ साथ अन्य कारकों पर भी ध्यान देना आश्यक है।
सीमा जी,
बहुत ही अच्छी रचना। एक आदर्श नयी कविता। किस तरह से आपने कडियों को जोडा है उनके बीच एक गहरा शून्य छोड दिया है, सोच के पनपने के लिये।
स्वराज से सुराज तक
विभाजन से मिलाप तक
तंदूर से उत्थान तक
अशिक्षा से ज्ञान तक..
अनन्त का सफर है बाकी।
कविता का अंत भी अच्छा किया है आपने:
सोने की चिड़िया की फिर भी
बहुत उड़ान अभी है बाकी।
*** राजीव रंजन प्रसाद
"सोने की चिड़िया की फिर भी
बहुत उड़ान अभी है बाकी। "
बहुत सुन्दर, कविता में बहुत अच्छे भाव हैं
बहुत सरल सी लेकिन प्रभावी कविता है
बधाई
सस्नेह
गौरव शुक्ल
स्वाधीनता की साठवीं वर्षगांठ पर आपने बहुत हीं अच्छी कविता लिखी है। आपने सही हीं कहा है कि अभी अनंत सफर बाकी है। हमें आगे बढते रहना है । कभी तो ऎसा दिन आएगा जब स्वराज सुराज में बदल पाएगा।
बाकी लोगों ने जो शिल्प में कुछ कमियाँ बताई हैं, वो इसलिए नहीं है कि कविता स्तर की नहीं है , बल्कि इसलिए है कि आपसे लोगों की उम्मीदें बढ चुकी हैं। आपकी अगली रचना का इंतज़ार रहेगा।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
आप सभी की टिप्पणियों के लिए धन्यवाद । कमियाँ कई हैं... बताने के लिए भी धन्यवाद ।
- सीमा कुमार
बहुत सरल और सुन्दर कविता!
बिंब अच्छे हैं तथा उत्सव मनाने के साथ-साथ प्रयत्न करते रहने को भी प्रेरित करती है।
बधाई!!!
पिछले वर्ष एक फ़िल्म प्रदर्शित हुई थी 'विवाह', उसमें रवीन्द्र जैन का लिखा एक गीत है जिसका लयांत इस प्रकार है 'बौंछारें अभी हैं बाकी, ॰॰॰'। मैंने इसे पढ़ा तो लगा कि धुन प्रभावित है। मगर इसमें उतना प्रवाह तो भी चलता, उतना प्रवाह भी नहीं है।
लेकिन आपने जो बातें उठाई हैं, वो ध्यान देने लायक हैं।
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