एक देश है जो हर साल,
२६ जनवरी को फहराता है तिरंगा...
जहाँ लोग बेसब्री से इंतज़ार करते हैं,
विश्व कप जीतने का...
जहाँ लोग इंतज़ार करते हैं,
कि कब लाल बत्ती बुझे,
और ज़िंदगी की दौड़ में वो भाग सकें
तेज़ "सबसे तेज़".....
इंतजार है एक सुपरहीरो का,
जो हर वो काम कर सके,
जिसे नहीं कर पाता आम आदमी..
आम आदमी रो नहीं सकता देर तक,
नहीं कर सकता खुल कर प्यार,
अपनी नाराज़ प्रेमिका से....
एक देश है जिसकी आधी आबादी,
डूबोती है पावरोटी चाय में,
और अभिनय करती है खुश होने का....
सड़क के किनारे फटी हुई चादर में,
माँ छिपाती है अपना बच्चा,
पिलाती है दूध.....
एक देश है जहाँ,
रंगीन पानी पीकर
लोग बन जाते हैं मर्द.....
और नही समझ पाता कोई,
तीन कोस पैदल चलकर,
पानी लाने का दर्द....
एक देश जहाँ
शौचालयों से वाचनालयों तक
व्यर्थ ही होती दिखी है ऊर्जा...
जहाँ तिरंगे में लिपटकर,
देश का सपूत सो जाता है....
और उसकी मौत पर,
पेट्रोल पम्प के टेंडर का खेल,
शुरू हो जाता है....
एक देश जहाँ २६ साल की है...
देश की आधी आबादी,
पहनती है ब्रांडेड जींस,
और बोलती है खादी...
एक देश,
जहाँ कैलेंडर की तारीखों में,
मनाये जाते हैं ख़ास दिन,
और देश का आम आदमी,
ज़िंदगी में ढूँढता रह जाता है,
एक ख़ास पल,
कि वो कर सके प्यार
अपनी नाराज़ प्रेमिका से,
बहुत देर तक....
कि वो खुल कर रो सके,
बहुत देर तक.....
निखिल आनंद गिरि
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13 कविताप्रेमियों का कहना है :
सही मैं बहुत अच्छा लगा पढ़ के , बहुत सारे भाव , बहुत अच्छे भाव | मेरे ख्याल मैं बस आप सब चीजो को समेटने के कारन , कविता के विषय को विस्तार नही दे पाए | इस लिए ही थोडी सी कमी खटक रही है | वरना बहुत ही अच्छा बहाव था कविता का !!
दिव्य प्रकाश
अच्छा लगा आपको पढकर.....
कहीं एक पंथ दो काज करने के तो नहीं सोच रहे थे आप कविता लिखते समय?
देश की दुर्दशा और नाराज़ प्रेमिका को मनाने की व्यथा
जहाँ तिरंगे में लिपटकर,
देश का सपूत सो जाता है....
और उसकी मौत पर,
पेट्रोल पम्प के टेंडर का खेल,
शुरू हो जाता है....
dil ko chu gayi aapki ye kavita,aur upar ki lines mein jo aapne likha hai,wo sabse bhayanak satya hai,which is shamefull,ek sipahi apni jaan kurban kar jata hai,hamare liye aur uska hi mazak ban jata hai baad mein.
एक देश है जिसकी आधी आबादी,
डूबोती है पावरोटी चाय में,
और अभिनय करती है खुश होने का....
सड़क के किनारे फटी हुई चादर में,
माँ छिपाती है अपना बच्चा,
पिलाती है दूध.....
एक देश है जहाँ,
रंगीन पानी पीकर
लोग बन जाते हैं मर्द.....
और नही समझ पाता कोई,
तीन कोस पैदल चलकर,
पानी लाने का दर्द....
एक देश जहाँ
शौचालयों से वाचनालयों तक
व्यर्थ ही होती दिखी है ऊर्जा...
बहुत कुछ समेत दिया है इन शब्दों में, जो नही कहा गया वो भी सुना जा सकता है, एक २६ वर्षीय युवा की कलम से निकली इस रचना बदलते भारत की उस तरक्की को देखा जा सकता है, जिससे आम आदमी आज भी कटा हुआ है, उदासीन है
बड़े सरल शब्दों मी अच्छी शिकायत की है |
बधाई
अवनीश तिवारी
जहाँ तिरंगे में लिपटकर,
देश का सपूत सो जाता है....
और उसकी मौत पर,
पेट्रोल पम्प के टेंडर का खेल,
शुरू हो जाता है....''
अच्छा कटाक्ष किया है आपने आज की स्थिति पर.
इन bigd.te halaaton में शायद हर कोई talashta है उस ख़ास pal को जिस में thodi si fursat हो और thodi si befikri -- ख़ुद अपने आप से मिलने के लिए !
थोड़ी और जान डालिए इस कविता में, थोड़ा और आक्रोश।
यह एक बहुत अच्छी कविता बन सकती है।
निखिल भाई दिल को छू लेने वाली कविता.बहुत अच्छे २६ जनवरी के अवसर पर अपनी शिकायत को प्रकट करने का बहुत ही अच्छा और कारगर तरीका.सच कहूँ तो यही या शायद ऐसी ही शिकायत हर सच्चे भारतीय के दिल मे उबाल मार रही है.
राजीव तनेजा जी ने सही कहा शायद आप अपनी कविता से दो दो कार्य सिध्ह करना चाह रहे हैं. खैर, आपका मंतव्य कुछ भी रहा हो, अगर प्रयास अच्छा है तो उसका दिल से इस्तकबाल होना चाहिए.
बधाई हो
आलोक सिंह "साहिल"
निखिल भाई
सुन्दर शब्दयोजन..
अन्दर तक कुरेदती कविता..
शुभकामनायें
समाज की विसंगतियों को सही तरीके से उकेरा है।बधाई .....
विरोधाभास है बहुत इस रचना में...........कुछ ज्वलंत प्रश्न हैं..........अच्छी रचना
सब को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं
khush kismat hai apun
jo is desh me paidaa huaa...
baar baar paida hona maangta apun..
IDREECH...!!!!1
एक देश,
जहाँ कैलेंडर की तारीखों में,
मनाये जाते हैं ख़ास दिन,
और देश का आम आदमी,
ज़िंदगी में ढूँढता रह जाता है,
एक ख़ास पल,
बहुत ही सही कहा आपने
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