छुट्टी का एक और दिन !
एक और दिन
कोसने का ,
समाज़ को
रिवाज़ को
व्यवस्था और व्यवस्थापकों को
गंदगी को , नालियों को
अमीरी - गरीबी की खाई को
भ्रष्ट नेताओं की कमाई को
एक और दिन
जब निकाल सको अपनी भड़ास
इतिहास पर
अन्धविश्वास पर
उसूलों की ज़ंजीर पर
सड़क के फ़कीर पर
बिगड़ते युवाओं पर
बेरहम हत्याओं पर
एक और दिन
जब यह हिसाब हो
कि देश ने क्या क्या न किया
जब यह तय हो
कि कितने बरस बीत गये
और हम कितने आज़ाद हैं
जब एक और भाषण हो
एक प्रतीक का ध्वज लहराये
और सब को याद दिलाना पड़े
कि हम कितने महान हैं,
हम एक राष्ट्र हैं ।
एक और दिन
जब मुझे यह सोचना पड़े
कि क्या इस जगह पर मैं सुरक्षित हूँ ?
जब मैं भाग लूँ फ़िर से एक
'सुरक्षित ' देश में
जहाँ पैसा और चैन मिले ।
एक और दिन
जब एक विस्फ़ोट हो
और उसकी धमक महीनों गूँज़े
और पुलिस , प्रशासन
जो कि नकारा है, इस सब के लिये
ज़िम्मेदार हो
एक दिन जब
हमें सब समझ में आ जाये
कि इस देश में क्या गलत हो रहा है
और कौन गलत कर रहा है
फ़िर हम चौपाल पर
यह निर्णय लें
कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता ।
एक और दिन
जब हम सोचें कि काश कोई नायक आये
और इन जुर्मों के सारे गुनहगारों को
एक लाइन में खड़ा करके खत्म कर दे ।
फ़िर बिजली के खंभे से
चोरी के कनेक्शन पर टीवी देखने
बैठ जायें
अपने घर में , जहाँ
वह सब कुछ है
जिससे चैन से जी सकें
सब कुछ है ,
बस,
एक आईना नहीं है ।
- आलोक शंकर
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14 कविताप्रेमियों का कहना है :
आलोक जी
बहुत सुंदर लिखा है -
एक दिन जब
हमें सब समझ में आ जाये
कि इस देश में क्या गलत हो रहा है
और कौन गलत कर रहा है
फ़िर हम चौपाल पर
यह निर्णय लें
कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता ।
आलोक जी,
सच कहा आपने-
बैठ जायें
अपने घर में , जहाँ
वह सब कुछ है
जिससे चैन से जी सकें
सब कुछ है ,
बस,
एक आईना नहीं है ।
ओह! ये आईना ही तो सबसे जरूरी चीज है।
एक आईना नहीं है ।
-- आत्म परीक्षण का संदेश और गद्तंत्र दिवस दोनों का अच्छा मेल मिलाप इस रचना मे |
अवनीश तिवारी
आईनेको स्वयं देखने नहीं , वरन औरोंको दिखानेकी चीज माननेवाले हम सभीके लिए खूब कही हैं,
बधाई हो !
जहाँ
वह सब कुछ है
जिससे चैन से जी सकें
सब कुछ है ,
बस,
एक आईना नहीं है ।
आलोक जी,
आपकी रचना हमेशा हीं एक जोश लिए होती है......इस रचना में भी मुझे वैसा हीं कुछ महसूस हआ। आपके व्यंग्य-बाण लिए शब्द हृदय में घाव बनाने में सक्षम हैं। यह कवि की सफलता है।
बधाई स्वीकारें।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
*सब कुछ सही कहती है यह कविता .
*जल्द ही सभी को 'आईना' तलाशना होगा नहीं तो २६ जनवरी का यह दिन महज छुट्टी का दिन ही बन कर रह जाएगा..
बहुत अच्छा अलोक जी , आखिरी पंक्ति से पहले तक मुझे यही लग रहा था की फ़िर से वही सब लिखा है जो हम बार बार बोलते है , फ़िर से वही सब , वही कोसना , वही लाचार कलम | आखिरी पंक्ति अच्छी तो बहुत है लेकिन "सब कुछ है ,
बस,
एक आईना नहीं है "
यहाँ पे मुझे लगता है ( *मेरा ग़लत होने का पूरा अधिकार है ) कि कुछ ऐसा होना चाहिए था कि आईना है लेकिन झाँकने कि हिम्मत नही या फ़िर कुछ भी ऐसा आईने मैं अक्स है लेकिन टटोलने का साहस नही (मेरा मतलब भाव से है, शब्द जो मैं सुझा रहा हूँ उनसे नही )
तो शायद और भी गहरा प्रभाव पढता !!!
दिव्य प्रकाश
Divya prakash ji, sujhavo ke liye bahut aabhar. Agar aap kavita ko dhyan se dekhe to poori kavitaa me vah nahi kaha gaya hai jo hum har baar bolte hain. isme kisi ko kosa nahi gaya hai sirf yah dhyan dilaya gaya hai ki har tarah ki kharabhi me log doosro ko koste hain. "Desh ne hamare liye kya kiya" " prashasan nakaara hai" kahne wale logo par aakshep hai. aakhiri pankti me aaina na hona is baat ke liye hai ki " aatmavalokan ke liye ek thought tak nahi hai" is liye hi aaina nahi hai likha hai. fir bhi koshish karoonga ki behtar tarike se present kar sakoon.
sadhanyavaad
Alok
फ़िर हम चौपाल पर
यह निर्णय लें
कि इस देश का कुछ नहीं हो सकता ।
आम बोल चाल की भाषा का इस्तेमाल इस रचना को बेहद सशक्त बना देता है,
बैठ जायें
अपने घर में , जहाँ
वह सब कुछ है
जिससे चैन से जी सकें
सब कुछ है ,
बस,
एक आईना नहीं है ।
सच,
अलोक भाई, आपकी बात मैं पूरी तेरह समझ गया था , आइना लिखने के पीछे के भाव बहुत अच्छा था , मुझे बस इतना लगा की थोड़ा सा अलग होता तो शायद और भी बेहतर प्रभाव पढता| वैसे भी कविता बहुत अच्छी है , मैं तो सीखने की कोशिश कर रहा हूँ यहाँ पे आप सभी को पढ़ के ....
साभार
दिव्य प्रकाश
आलोक जी,
इस विषय पर हमेशा कुछ और लिखने की गुंजाइश बनी ही रहती है। आपने बहुत अच्छा लिखा है। कुछ और विस्तार देते तो शायद और भी अच्छी कविता बनती।
बधाई
एक और दिन
जब हम सोचें कि काश कोई नायक आये
और इन जुर्मों के सारे गुनहगारों को
एक लाइन में खड़ा करके खत्म कर दे ।
फ़िर बिजली के खंभे से
चोरी के कनेक्शन पर टीवी देखने
बैठ जायें
अपने घर में , जहाँ
वह सब कुछ है
जिससे चैन से जी सकें
सब कुछ है ,
बस,
एक आईना नहीं है
गजब का आक्रोश प्रदर्शित किया है आपने,मजा आ गया.
आलोक सिंह "साहिल"
एक और दिन
जब निकाल सको अपनी भड़ास
इतिहास पर
अन्धविश्वास पर
उसूलों की ज़ंजीर पर
सड़क के फ़कीर पर
बिगड़ते युवाओं पर
बेरहम हत्याओं पर
" nice poetry liked it"
Regards
EAST OR WEST
INDIA IS THE BEST
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