स्वाधीनता दिवस, स्वतंत्रता दिवस, ६१वीं आज़ादी दिवस पर हिन्द-युग्म की विशेष प्रस्तुति
दुनिया में हर जगह, भारतीय अपनी आज़ादी का जश्न मना रहे हैं। हिन्द-युग्म भी अपने कविता पृष्ठ पर अपने तरीके से स्वाधीनता दिवस का जश्न मना रहा है। १५ अगस्त के दिन १५ कविताएँ लेकर हाज़िर है। भारत विभिन्नता में एकता का देश है। हमने भी इस विशेष अंक में आज़ादी के कविता के १५ भिन्न-भिन्न रंग शामिल किये हैं। इस अंक में पूर्वी भारत से भी एक लिखने वाली हैं, पश्चिम से भी कोई है, उत्तर तो हिन्दी की दुनिया है, दक्षिण की भी कवयित्री शामिल हैं। कवयित्री हरकीरत कलसी 'हकी़र' गुवाहाटी आसाम में रहती हैं, तो वहीं कवयित्री सी आर॰ राजश्री कोयमबटूर से हैं। देवेन्द्र वाराणसी, मयंक नोएडा, विवेक पाण्डेय भोपाल से, विवेक रंजन और विदग्ध जबलपुर, वहीं संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी नागौर राजस्थान, तो सुधी जयपुर से हैं। विद्याधर दुबे कानपुर से, प्रदीप मानोरिया मध्य प्रदेश, निशिकांत नोएडा, वीनस केसरी इलाहाबाद तो प्रदीप पाठक नई दिल्ली से हैं। मतलब अनन्त रंगों में से १५ रंग आज हमने अपने पृष्ठ पर सजाएँ हैं। आज इस अंक के लिए चित्रकार राजेश तिवारी ने एक चित्र भी बनाकर भेजा है। शेष आपकी टिप्पणियों के विविध रंगों का इंतज़ार रहेगा।
स्वतन्त्रता दिवस पर विशेष
आपको यह प्रयास कैसा लग रहा है?-टिप्पणी द्वारा अवश्य बतावें।
*** प्रतिभागी ***
| मयंक सक्सेना | सुधीर सक्सेना 'सुधि' | प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध" | हरकीरत कलसी 'हकी़र' | सी आर राजश्री | विवेक पांडेय | वीनस केशरी | संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी | प्रदीप पाठक | विवेक रंजन श्रीवास्तव "विनम्र" |विद्याधर दुबे |कमलप्रीत सिंह | प्रदीप मानोरिया | देवेन्द्र पाण्डेय | निशिकांत तिवारी ।
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विज़न २०२०
हरी नीली लाल पीली
बड़ी बड़ी तेज़ रफ्तार मोटरें
और उनके बीच दबा,
सहमा, डरा सा
आम आदमी
हरे भरे लहराते बड़े बड़े
पेडो के नीचे बिखरी पन्निया
बारिश की प्रदुषण धुली बूँदें
आँखों से बरसती
सड़क पर चाय के ठेले पर
वही बुढ़िया और
चाय पहुचता
वही छोटू
स्कूल से निकलता अल्हड, मस्त
किल्कारिया भरता बचपन
और पास ही सड़क पर
भीख मांगते नन्हे,
असमय बड़े हो चुके
छोटे बच्चे
पाँच सितारा अस्पताल का
उद्घाटन करते प्रधान मंत्री
की तस्वीर को घूरती
सरकारी अस्पताल में
बिना इलाज मरे शिशु की लाश
और इन सबको
कर उपेक्षित
विकास के दावो की होर्डिंग निहारता मैं
मन में दृढ़ करता चलता विश्वास
की हाँ २०२० में
हम विकसित हो ही जाएँगे
दिल को बहलाने को ग़ालिब...........
--मयंक सक्सेना
लोकतंत्र के सपने
एक हाथ में लोकतंत्र के सपने
दूसरे में बारूदी छर्रे!
बोलिए-हिप-हिप हुर्रे!
एक तरफ़ भूखे एहसास;
दूसरी तरफ कसाई!
जी हाँ, आपने भी
सही जगह बस्ती बसाई!
पेट में उगते हैं मौसम,
चूल्हे में सुबह-शाम!
बाकी जिंदगी तो होती है,
सड़कों पर तमाम |
आस्तीनों में पलते हैं दोस्त,
म्यानों में मिलते हैं संबंध!
मखमल के हैं संबोधन,
लेकिन टाट के हैं पैबंद!
पर, मेरे वैचारिक सहचरो!
वोट देते ही रटने लगो-
संविधानी मंत्र! वरना
फिर किस तरह बचेगा लोकतंत्र!
और अगर लोकतंत्र नहीं रहा तो
तुम्हारा पेट और चूल्हा कहाँ जाएगा?
--सुधीर सक्सेना 'सुधि'
हिमगिरि शोभित
सागर सेवित
सुखदा गुणमय
गरिमा वाली
सस्य श्यामला
शांति दायिनी
परम विशाला
वैभवशाली ॥
प्राकृत पावन
पुण्य पुरातन
सतत नीती नय
नेह प्रकाशिनि
सत्य बन्धुता
समता करुणा
स्वतंत्रता शुचिता
अभिलाषिणि ॥
ग्यानमयी
युग बोध दायिनी
बहु भाषा भाषिणि
सन्मानी
हम सबकी
माँ भारत माता
सुसंस्कार दायिनि
कल्यानी ॥
--प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध"
यह कैसी आजा़दी है?
अभी-अभी बम के धमाको़ से
चीख़ उठा है शहर
बच्चे, बूढे,जवान
खून से लथपथ
अनगिनत लाशों का ढेर
इस हृदय विदारक वारदात की
कहानी कह रहा है
ओह!
यह कैसी आजा़दी है
जो घोल रही है
मेरे और तुम्हारे बीच
खौ़फ, आग और विष का धुआँ?
हमारे होठों पे थिरकती हंसी को
समेटकर
दुबक गई है
किसी देशद्रोही की जेब में
और हम
चुपचाप देख रहे हैं
अपने सपनों को
अपने महलों को
अपनी आकांक्षाओं को
बारूद में जलकर
राख़ में बदलते हुए.
--हरकीरत कलसी 'हकी़र'
मेरा भारत महान
मेरा यह मानना है
मेरा भारत सब दशों से महान है।
नहीं है ऐसा कोई अन्य देश,
युगों बीतने पर भी वैसा ही है परिवेश,
विभिन्नता में एकता के लिए, प्रसिद्ध है हर प्रदेश,
प्रेम, अहिंसा, भाईचारे का जो है देता संदेश।
मेरा यह मानना है
मेरा भारत सब देशों से महान है।
ऋषि-मुनियों की जो है तपोभूमि,
कई नदियों से भरी है ये पुण्य भूमि,
प्रकृति का है मस्त नजारा यहाँ,
छोड़ इसे जाए हम और अब कहाँ
मेरा यह मानना है
मेरा भारत सब देशों से महान है,
जाति, धर्म का है जहाँ अनूठा संगम,
देशभक्ति की लहर में, भूल जाते सब गम,
देश के लिए मर मिटने को सब है तैयार,
अरे दुनिया वालों, हम है बहुत होशियार,
न छेड़ो हमें, कासर नहीं है हम खबरदार,
अपनी माँ को बचाने, लेगें हम भी हथियार।
मेरा यह मानना है
मेरा भारत सब देशों से महान है
--सी आर राजश्री
१५ अगस्त १९४७ में भारत का पानी चमक उठा
व्यापक विप्लव मुख मुद्रा पर अनल यज्ञ सा दमक उठा
जननी बोली पुत्रों जागों समय गया सब सोने में
रवि दावानल सुलग गया भारत के कोने -कोने में
कायर जीवन जीवन क्या है लगा भाल पर ले रोली
सैनिक आगे बढ़कर कर दे इस जीवन की तू होली
बंगाल जगा पंजाब उठा ,उठ सैनिक दल ललकार उठे
भारत के विशुधर काले भर मस्ती में फुफकार उठे
देश वही है ,गौरवशाली जिसमें नाहर बसते हैं
फांसी पर चढ़ने से पहले एक बार जो हस्ते हों
आज हो गया देश आजाद
देकर खुशहाली हो चले गए
इस खुशहाली को रखना है कायम
चाहे फिर से एक बार होना पड़े न्योछावेर
आओ आज करें एक प्रतिज्ञान
देश के मान ओउर अभिमान की हम करेंगे सुरक्षा
१५ आगस्त सैन्तालिश को जो तिरंगा लहराया है
वही तिरंगा लाल किले पर फहरा है फहराएंगे
जय हिंद
--विवेक पांडेय
विश्व एकता के सम्मुख ना सोचो अपने प्राण की।
बात करो अब हमसे केवल मानव के कल्याण की।।
तम को धर से दूर करो अब पट खोलो किवाड़ की।
सीमाओं को खत्म करो अब बात करो ना बाड़ की।।
ना हो विषमता ना हो बन्धन ना हो सीमायें जिसमें।
मिल जुल कर प्रयास करो उस नव युग के निर्माण की।।
बात करो अब हमसे केवल मानव के कल्याण की।।
अब तो त्याग करो श्रंखला विजयों के अभियान की।
ध्वनियां तुम तक भी पहुचेगी मानवता के गान की।।
साथ हमारे अगर तुम्हे भी शान्ति दूत बन पाना है,
बन्द करो अब पूजा तुम भी भाले और कृपाण की।।
बात करो अब हमसे केवल मानव के कल्याण की।।
अहंकार को छोड़ो कुछ ना कीमत है अभिमान की।
हिल मिल कर अब तुम भी सोचो मानव के सम्मान की।।
लालच में तुम फंसे रहोगे ना इसमें कुछ रक्खा है,
कोशिश करके देखो राहें पाओगे निर्वाण की।।
बात करो अब हमसे केवल मानव के कल्याण की।।
नहीं सुनाओ अब तुम गाथा मानव के संहार की।
दिल में ज्योति जलाओ तुम भी प्यार भरे संसार की।।
जब तुमको है ये लगता सब जीवन एक समान है,
फिर क्यों अलग उपाय हो करते अपने जीवन त्राण की।।
बात करो अब हमसे केवल मानव के कल्याण की।
--वीनस केशरी
करेंगे एक और संघर्ष
आओ करें संकल्प
इस स्वाधीनता दिवस पर,
करेंगे एक और संघर्ष
पाने को स्वतंत्रता
भ्रष्टाचार से
जिसने
जगह बनाई है
स्कूल से लेकर
संसद तक में
अधिकारी शिकायतकर्ता
का ही करते हैं उत्पीड़न
दौलत जुटाते हैं
करके पड़पीड़न
केवल काम नहीं चलेगा
झण्डा फहराने से
कब तक काम कराते
रहोगे नजराने से
जिस स्वतंत्रता की खातिर
दिए थे प्राण जांबाजों ने
आज उसी देश को लूट लिया
झूठ को कला समझने वाले कलाबाजों ने
आओ हम हाथ मिलायें,
अनुशासन की जंजीरों को भी चटकायें
भ्रष्ट अधिकारी हो या नेता,
या फिर उनका हो प्रणेता,
कानून तो उनकी मुठ्ठी में है,
सच्चा कानून तो जन-हित है,
जिसकी खातिर तोड़कर
सारी जंजीरे
आओ उनको मजा चखाये
स्वाधीनता को बचाना है तो
भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलायें
उन्होंने स्वतंत्रता की वेदी पर
किये थे प्राण निछावर
अपने स्वार्थों को छोड़
कोई भी मूल्य चुकाने को
होना होगा तैयार
तभी हम स्वतंत्रता के होंगे
सच्चे हकदार
अन्यथा यह नाटक है बेकार
आओ करें संकल्प
इस स्वाधीनता दिवस पर,
करेंगे एक और संघर्ष
पाने को स्वतंत्रता
भ्रष्टाचार से।
--संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी
दरिया में बहा दो रंजिश सब
अब अमन की कुछ बात हो जाये
मेरे देश में खुशहाली हो
बस इत्मिनान से मुलाकात हो जाये
एक अनोखी ख्वाहिश सी
सजी जमीन है फ़ुर्सत से
अब माटी के पहलू से
कुछ नई फ़सल-सौगात हो जाये
जब सारे अरमान देख लिये
क्यों अपने प्यारे खफ़ा हुए
आज मिली आज़ादी में
फ़िर ईद-मिलन दस्तूर हो जाये
मैं सब्र में आज डूबा हूँ
कुछ दूर चलके रोया हूँ
वजूद को अपने ढूँढू हर दम
मैं फ़िर कहीं जाके खोया हूँ
रेत के घरोंदो को छोड़ो
अब टूटे सपनों को खोजो
मेरे साथ चलो,नई आवाज़ लिये
आज फिर एक ख्वाब एक उम्मीद हो जाये..
--प्रदीप पाठक
हमारा वतन - भारत
हमको प्यारा है भारत, हमारा वतन
सारी दुनियां का सबसे सुहाना चमन।
हम है पंछी, ये गुलषन यहॉ बैठ मन
चैन पाता, सजाता नये नित सपन ।।
इसकी माटी में खुषबू है, एक आब है
जैसा कष्मीर दो-आब, पंजाब है।
सारी धरती उगलती है सोना रतन
सब भरे खेत-खलिहान, मैदान वन।।
आदमी में मोहब्बल है, इन्साफ है
खुली बातें है, जजबा है, दिल साफ है।
मन हिमालय से ऊंचा, जो छूता गगन
चाहते दिल से सब अंजुमन में अमन।।
पंछियों की भले हों कई टोलियॉं
रूप रंग मिलते-जुलते है औं बोलियॉं
फितरतों में फरक फिर भी है एक मन
सबको प्यारा है खुद से भी ज्यादा चमन।।
क्यारियॉं भी यहॉं है कई रंग की
जिनमें किसमें है फूलों के हर रंग की
एकता ममता समता की ले पर चलन
सबमें बहता मलय का सुगंधित पवन।।
इसकी तहजीब का कोई सानी नहीं
जो पुरानी है फिर भी पुरानी नहीं
मुबारिक यहॉं का ईद-होली मिलन
इसकी शोभा यही है ये गंगोजमन।।
--विवेक रंजन श्रीवास्तव "विनम्र "
युग बदल गया और फ़िर चरखे का चक्र चला ,फ़िर काला शासन ढकने चला श्वेत खादी
खूंखार शासको की खूनी तलवारों से ,बापू ने हंसकर मांगी अपनी आजादी
जो चरण चल पड़े आजादी की राहों पर,वो रुके न क्षणभर ,धुप,धुआं,अंगारों से
उठ गया तिरंगा एक बार जिसके कर में,वो झुका न तिल भर गोली की बौछारों से
इसीलिए ध्वजा पर पुष्प चढाने से पहले ,
तुम शीश चढ़ने वालों का सम्मान करो II
आरती सजाने से पहले तुम इसीलिए ,
आजादी के परवानो का सम्मान करो
कितने बिस्मिल ,आजाद सरीखे सेनानी ,इस पुण्य पर्व से पहले ही बलिदान हुए
जब अवध और झाँसी पे थे गोले बरसे ,तो मन्दिर ,मस्जिद साथ- साथ वीरान हुए
जलियांबाग में जिनका नरसंहार हुआ ,वो इसी तिरंगे को फहराने आए थे
जिनके प्रदीप बुझ गए गए अधूरी पूजा में,वो इसी निशा में ज्योत जलाने आए थे
तलवार उठाने से पहले तुम इसीलिए
मिट जाने वालों का गौरव गान करो ||
आरती सजाने से पहले तुम इसीलिए ,
आजादी के परवानो का सम्मान करो||
दलितों को मिला स्वराज्य इसी स्वर्णिम क्षण में,सदियों से खोया भारत ने गौरव पाया
कट गयी इसी दिन माँ की लौह श्रृंखलाएं,पीड़ित जनता ने फ़िर से सिंहांसन पाया
१५ अगस्त है नेता जी का मधुर स्वप्न ,बापू के अमर दीप की गायक वीणा है
अंधियारे भारत का ये है सौभाग्य सूर्य , माँ के माथे का सुंदर श्याम नगीना है
इसलिए आज मन्दिर जाने से पहले ,तुम राष्ट्र ध्वज के नीचे जन गन गान करो
आरती सजाने से पहले तुम इसीलिए ,आजादी के परवानो का सम्मान करो......
--विद्याधर दुबे
स्वतंत्रता दिवस
सन '५६ में जन्मी
आज की युवा पीढी
पराधीनताओं की कुंठाओं
तथा सभी वास्तविकताओं से
अनभिज्ञ ही है
हमारी विचार धाराएं
एवं स्मृतियाँ
स्वतंत्रता को केवल
ध्वजारोहण के सन्दर्भ में ले सकीं हैं
अथवा
इससे अधिक
देशभक्ति भावनाओं से
ओत-प्रोत कुछ क्षण
जो समय के साथ साथ
या उस से कहीं पहले
अपना अस्तित्व
खो देते हैं -और
जिसके साथ ही समाप्त
हो जाता है -
सद्भावनाओं से प्रेरित
एक ज्वार
ज्वार जिसे कभी
चन्द्र रूपी देश प्रेम की
सौम्यता ने जन्मा था
सागर की
फेनिल लहरों में खोकर
अपने जन्म दाता के
अस्तित्व को नकार रहा है
सोचता हूँ -
हमारा प्रेम ,
हमारी भावनाएं ,
इतनी क्षणिक क्यों हैं ?
देश प्रेम -हमारी और आपकी वह उपलब्धि है
जिस की सुरक्षा
हमारी सजग चेतना का
प्रतीक है
हमें सजग रहना होगा
तभी हम विरासत के इस ऋण से मुक्त रह सकेंगे
इस महान
स्वतंत्र युग का श्रेय
हमारे गौरवपूर्ण इतिहास एवं
इसमें जीवंत प्रत्येक कर्मठ मानव को है
जो इस भावना के प्रति
सदैव क्रियाशील रहा.
-कमलप्रीत सिंह
आज़ादी की एक और वर्षगांठ
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे |
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||
सभी मनाते पर्व देश का आज़ादी की वर्षगांठ है |
वक्त है बीता धीरे धीरे साल एक और साठ है ||
बहे पवन परचम फहराता याद जिलाता जीत रे |
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे |
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||
जनता सोचे किंतु आज भी क्या वाकई आजाद हैं |
भूले मानस को दिलवाते नेता इसकी याद हैं ||
मंहगाई की मारी जनता भूल गई ये जीत रे |
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे |
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||
हमने पाई थी आज़ादी लौट गए अँगरेज़ हैं |
किंतु पीडा बंटवारे की दिल में अब भी तेज़ है ||
भाई हमारा हुआ पड़ोसी भूले सारी प्रीत रे |
गली गली में बजते देखे आज़ादी के गीत रे |
जगह जगह झंडे फहराते यही पर्व की रीत रे ||
--प्रदीप मानोरिया
हिन्दुस्तान
वह एक पल
सचिन,
धोनी,
अभिनव बिन्द्रा की तरह
चमकने लगता है
दूसरे ही पल
कश्मीर की तरह
दहकने लगता है।
वह एक पल
लक्ष्मी नारायण मित्तल की तरह
खनकता है
दूसरे ही पल
भारतीय स्टेट बैंक,
शाखा डुमरिया गंज के कैशियर की तरह
खटकता है।
वह एक पल
पोखरन की तरह
दहाड़ने लगता है
दूसरे ही पल
उर्जा समझौते की तरह
उलझने लगता है।
वह एक पल
बाबा रामदेव की तरह
गर्वीला लगता है
दूसरे ही पल
अहमदाबाद दंगों की तरह
शर्मि़न्दा दिखता है
वह एक पल----------।
उसके पास
करोणों की भीड़ है
जिसमें
लाखों विद्वान हैं
हजारों रत्न हैं
मगर
आजादी के
इकसठ वर्षों के बाद
आज भी
वह
चौराहे पर खड़ा है !
--देवेन्द्र पाण्डेय
सच्चा देश भक्त
खादी धोती खादी कुर्ता खादी रुमाल,
खादी झोला खादी टोपी रौबदार चाल,
बीच बाज़ार घूम रहे थे चाचाजी क्रांतीकारी,
पहुँचे मिठाई की दुकान पर जब भुख लगी भारी,
डाँट कर बोले- ये तुम मिठाई बना रहे हो ?
कुछ खुद खा रहे हो कुछ मक्खियों को खिला रहे हो ।
.
हलवाई - जब रहे आप लोगों की दुआएँ तो क्यों ना हम मिठाई खाए,
और ये मक्खियाँ तो स्वतंत्र देश के प्राणी आजाद हैं,
ईनके मिठाईयों पर बैठने से इनका और भी बढ जाता स्वाद है,
तो आप हीं बताइए इसमें मेरा या फिर मक्खियों का क्या अपराध है,
इससे पता चलता है कि मिठाईयाँ अच्छी बनी है,
आप आए मेरे दुकान पर किस्मत के धनी है ।
.
ये देखिए ये जलेबी ये बर्फ़ी ये लड्डू और ये रसमलाई है,
तो कहिए जनाब क्या देख कर आपकी लार टपक आई है ,
बोले इसमें सबसे सस्ती कौन है,
जनाब जलेबी पहले तो इसे गोल गोल घुमाओ ,
और खौलते तेल में पकाओ,
फिर चासनी में डुबा-डुबा के निकालो औए मज़ा लेते जाओ ,
तभी टपक पड़ी चाचाजी की लार,
और सारी जलेबियाँ हो गई बेकार ।
हलवाई बोला- अब तो आपको हीं सारी जलेबियाँ खानी पड़ेंगी,
अगर ना खा पाए तो दो्गुनी किमत चुकानी पड़ेगी,
क्योंकि अगर ना खा पाए तो यह राष्ट्रिय़ मिठाई का अपमान होगा,
आपका दुगना भुगतान देश के प्रति छोटा सा बलिदान होगा।
जैसे हीं उन्होने एक जलेबी चबाई,
दाँतों तले से करकराहट की आवाज़ आई,
बोले इसमें तो आ रहा मिट्टी का स्वाद है ।
.
हलवाई-वाह क्या बात है,
आप जैसे लोगो को हीं आ सकती जलेबी में देश की मिट्टी की महक है,
तभी तो आपकी आँखो में आ गई नयी चमक है,
सोचने लगे बेस्वाद जलेबी आखिर ठूसे तो कितना ठूसे,
देश भक्ती का चोला भी पहने रहे व धन से नाता भी ना टूटे,
मर के खाए और खा खा के मरे,
बहुत बुरे फ़ँसे आखीर करें तो क्या करें ।
.
अंत में एक जलेबी बच गई,
सोंचे जलेबी गई अगर अंदर तो प्राण जाएंगे बाहर,
देश भक्ती के चक्कर में बेमतलब जाएंगे मर,
ईज्जत जाए या धन से नाता टूटे,
अब न खाउँगा जलेबी जग रुठे या किस्मत फूटे ,
भारी मन से दिया दोगुना दाम,
और तुरन्त भागे बिना किए विश्राम,
मुस्कुरा कर बोला हलवाई,
देश के सच्चे देश भक्त को ,
सत सत प्रणाम सत सत प्रणाम ।
--निशिकांत तिवारी
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45 कविताप्रेमियों का कहना है :
सर्व प्रथम तो आज़ादी दिवस की सब को हार्दिक बधाई | हिंद युग्म सदैव सराहनीय प्रयास करता है और इस अनूठे कदम के लिए बधाई का पात्र है |आज़ादी दिवस की खुशी के साथ-साथ आजाद भारत की समस्यायों को लेकर मन चिंतित भी है | टिप्पणी के माध्यम से ही अपने मन में उठी चिंताओं को व्यक्त कर रही हूँ |
आज़ाद भारत की समस्याएँ
भारत की आज़ादी को वीरों ,
ने दिया है लाल रंग |
वह लाल रंग क्यों बन रहा है ,
मानवता का काल रंग |
आज़ादी हमने ली थी, समस्याएँ मिटाने के लिए |
सब ख़ुश रहें जी भर जियें,
जीवन है जीने के लिए |
पर आज सुरसा की तरह ,
मुँह खोले समस्याएँ खड़ी |
और हर तरफ़ चट्टान बन कर,
मार्ग में हैं ये अड़ी|
अब कहाँ हनु शक्ति,
जो इस सुरसा का मुँह बंद करे |
और वीरों की शहीदी ,
में नये वह रंग भरे |
भूखमरी ,बीमारी, बेकारी ,
यहाँ घर कर रही |
ये वही भारत भूमि है,
जो चिड़िया सोने की रही |
विद्या की देवी भारती,
जो ग्यांन का भंडार है |
अब उसी भारत धरा पर,
अनपढ़ता का प्रसार है |
गयान औ विग्यान जग में,
भारत ने ही है दिया |
वेदो की वाणी अमर वाणी,
को लूटा हमने दिया |
वचन की खातिर जहाँ पर,
राज्य छोड़े जाते थे |
प्राण बेशक तयाग दें,
पर प्रण न तोड़े जाते थे |
वहीं झूठ ,लालच ,स्वार्थ का है,
राज्य फैला जा रहा |
और लालची बन आदमी ,
बस वहशी बनता जा रहा |
थोड़े से पैसे के लिए,
बहू को जलाया जाता है |
माँ के द्वारा आज सुत का,
मोल लगाया जाता है |
जहाँ बेटियों को देवियो के,
सद्रश पूजा जाता था |
पुत्री धन पा कर मनुज ,
बस धन्य -धन्य हो जाता था |
वहीं पुत्री को अब जन्म से,
पहले ही मारा जाता है |
माँ -बाप से बेटी का वध,
कैसे सहारा जाता है ?
राजनीति भी जहाँ की,
विश्व में आदर्श थी |
राम राज्य में जहाँ
जनता सदा ही हर्ष थी |
ऐसा राम राज्य जिसमे,
सबसे उचित व्यवहार था |
न कोई छोटा न बड़ा ,
न कोई आत्याचार था |
न जाति -पाति न किसी,
कुप्रथा का बोलबाला था,
न चोरी -लाचारी , जहा पर,
रात भी उजाला था |
आज उसी भारत में ,
भ्रषटा चार का बोलबाला है |
रात्रि तो क्या अब यहाँ पर,
दिन भी काला काला है |
हो गई वह राजनीति ,
भी भ्रष्ट इस देश में |
राज्य था जिसने किया ,
बस सत्य के ही वेश में |
मज़हब ,धर्म के नाम पर,
अब सिर भी फोड़े जाते हैं |
मस्जिद कहीं टूटी ,कहीं,
मंदिर ही तोड़े जाते हैं |
अब धर्म के नाम पर,
आतंक फैला देश में |
स्वार्थी कुछ तत्व ऐसे,
घूमते हर वेश में|
आदमी ही आदमी का,
ख़ूनपीता जा रहा |
प्यार का बंधन यहाँ पर,
तनिक भी तो न रहा |
कुदरत की संपदा का भारत,
वह अपार भंडार था |
कण-कण में सुंदरता का ,
चाहूं ओर ही प्रसार था |
बख़्शा नहीं है उसको भी,
हम नष्ट उसको कर रहे |
स्वार्थ वश हो आज हम,
नियम प्रकृति के तोड़ते |
कुदरत भी अपनी लीला अब,
दिखला रही विनाश की |
ऐसा लगे ज्यों धरती पर,
चद्दर बिछी हो लाश की |
कहीं बाढ़ तो कहीं पानी को भी,
तरसते फिरते हैं लोग |
भूकंप,सूनामी कहीं वर्षा हैं,
मानवता के रोग |
ये समस्याएँ तो इतनी,
कि ख़त्म होती नहीं |
पर दुख तो है इस बात का,
इक आँख भी रोती नहीं |
हम ढूंढते उस शक्ति को,
जो भारत का उधार करे |
ओर भारतीय ख़ुशहाल हों,
भारत के बन कर ही रहें |
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
जय-हिन्द!
सभी कवितायें बेहतरीन है मगर देवेंद्र पाडें जी की कविता बहुत अच्छी लगी सच्चाई को सामने लाती हुई...
स्वाधीनता दिवस की सभी को बहुत-बहुत बधाई. इस अवसर पैर हिंद युग्म पैर प्रकाशित सभी रचनाएँ सुंदर लगी . विशेष रूप से मुझे मयंक सक्सेना सुधीर सक्सेना, विधग्ध जी,संतोष गौड़, प्रदीप पाठक, देवेन्द्र पाण्डेय,और प्रदीप मनोरिया जी की रचनाएँ बहुत अच्छी लगीं. सभी कवित्यों को बहुत-बहुत बधाई.
इस आयोजन के लिए आपार बधाइयाँ , पृष्ट बहुत सुंदर सजाया है, मयंक जी और देवेन्द्र जी की कवितायें विशेष पसंद आई, सभी का प्रयास सराहनीय है, हिंद युग्म को बधाई
इस आयोजन के लिए आपार बधाइयाँ , पृष्ट बहुत सुंदर सजाया है, मयंक जी और देवेन्द्र जी की कवितायें विशेष पसंद आई, सभी का प्रयास सराहनीय है, हिंद युग्म को बधाई
sari kavitayen bahut achchhi hain sabhi ko badhai .haan ek baat aur desh se bahar desh bahut yad aata hai .azadi ki sabhi ko bahut bahut badhai
saader
rachana
चित्र के लिए बधाई देना भूल गया शानदार है
हिन्द-युग्म ने स्वाधीनता की कविताएं सुन्दर सजाईं,
स्वतन्त्रता दिवस की सबको, बधाई हो बधाई.
स्वतन्त्रता की रक्षा को,आओ सब मिल बहन-और भाई,
रक्षाबन्धन की हमने अब तक कसम है निभाई!
देश की स्वतंत्रता की रक्षा हित, जागो अब भाई,
रक्षा भ्रष्टाचार से करनी है, आतंक्वाद के खिलाफ़ तभी लडाई लड्नी है,
भ्रष्टाचार सभी समस्याओं की जड है, इसने हिला दीं भारत की जड है.
केवल कविता लिखने से काम नहीं चलेगा, देश के लिये मरने से भी काम नहीं बनेगा,
देश के लिये जीने की जरूरत है, स्वर्थों को तज देश पर जीवन करो निछावर, धन,पद,यश व सम्बन्धों को देश पर कर दो कुर्बान, काम बडा हो जयेगा आसान, भारत छूयेगा आसमान.
PRIYA SHAILESH
APKE KUSHAL SAMPADAN MEIN HINDI-YUGAM KA SWATANTRA-DIVAS ANK PARHA.
KAVITAYON NE PRABHAVIT KIYA.SAJ-SAJJA KE KARAN RACHNAON PAR SWADHEENTA KE RANG BIKHRE HUE HAIN.
PREMCHAND SAMBANDHEE SAMGREE GYANVARDHAK HAI.
SAHITYKAR/PATRAKAR RASHTRA KEE SEVA LEKHANEE KE MADHYAM SE KARTE HAIN.
BADHAI!
--ASHOK LAV,ashok_lav1@yahoo.co.in
स्वाधीनता दिवस पर बधाई... मैंने १५ अगस्त के मौके पर १३ को ही अपने ब्लाग पर कविता पोस्ट कर दी.. इसीलिये युग्म पर नहीं भेज पाया..
स्वतंत्रता दिवस पर उठते सवाल
देश में हड़तालें हैं,
चक्का जाम हैं,
सड़कें बंद हैं,
रेल बंद है,
बसें फूँकी जाती हैं..
टायर जलायें जाते हैं
पुतले फूँके जाते हैं
सबसे बड़ा लोकतंत्र है...
ये देश स्वतंत्र है..
स्कूल में गोली चलती है
बच्चे आत्महत्या करते हैं
एम.एम.एस बनते हैं,
ये देश के भविष्य हैं(?)
स्कूल कालेज की
दुकान लगती है,
सरेआम विद्या बिकती है
सबसे बड़ा लोकतंत्र है...
ये देश स्वतंत्र है...
कानून तोड़े जाते हैं
दुकानें जलाई जाती हैं
दंगे-फसाद आम हैं
आतंकवाद है,
हर राज्य में वाद-विवाद है
६१ सालों का आरक्षण खास है
सब निकालते भडास हैं
सबसे बड़ा लोकतंत्र है...
ये देश स्वतंत्र है...
इज्जत पर परमाणु करार है
नोटों पर बनती सरकार है
आतंकवादियों पर रूख नरम है
देश तोड़ना भाषा का करम है
राज ठाकरे का ’राज’ है
ये नेताओं के हाल हैं
ये कैसा तंत्र है (?)
’नोट’ या ’वोट’ तंत्र है
सबसे बड़ा लोकतंत्र है...
ये देश स्वतंत्र है...
३० प्रतिशत अशिक्षित हैं
खाना खिलाने वाला किसान
मजबूर है
बिना छत के मजदूर हैं
पीने को पानी नहीं
नदियों के पानी पर लडाई है
एकता की होती बड़ाई है
६१ सालों में बुराइयाँ
जस की तस हैं
ढीठ देश आज भी
बेबस है,
कमजोर है
जाने देश किस ओर है
सबसे बड़ा लोकतंत्र है!!!
ये देश स्वतंत्र है???
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं
६१वीं आज़ादी पर हिन्द-युग्म की विशेष प्रस्तुति 15अगस्त 15 कविताएँ पढ़ी सभी रचनाओं ने मन को मोह लिया
हरकीरत कलसी 'हकी़र'जी की इन लाइनों ने बेहद प्रभावित किया
ओह!
यह कैसी आजा़दी है
जो घोल रही है
मेरे और तुम्हारे बीच
खौ़फ, आग और विष का धुआँ?
हमारे होठों पे थिरकती हंसी को
समेटकर
दुबक गई है
किसी देशद्रोही की जेब में
कमलप्रीत सिंह जी की कविता भी बेहद अच्छी लगी
.............आपका वीनस केसरी
वंदे मातरम,
स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक बधाई |
सभी कविताएँ अच्छी लगी | देवेन्द्रजी, विदग्ध जी, संतोष जी, विनम्र जी की कविताएँ
विशेष पसंद आई |
seemji,tapanji badhai acche bhav
एक कविता इस अंक के प्रकाशन के बाद प्राप्त हुई है, जिसे हम टिप्पणी के माध्यम से प्रकाशित कर रहे हैं।
हे माँ भारती शत शत प्रणाम तुझे फिर से
हे माँ भारती शत शत प्रणाम तुझे फिर से
बधाई हो आजादी की सब को आज फिर से
तिरंगे को लहरा नभ में, है यह प्रण
झुकेगा न तेरा सर किसी भी क्षण
जन गन मन से गूंजेगा फिर कण कण
हमारी साँसें हैं माँ तुझ को अर्पण
इक्सठ सालों में तरक्की के बनाए कई आयाम
विश्व में हर क्षितिज पर है आज तेरा ही नाम
जगमग शहरों और बज़ारों की है अब बात
गगनचुम्बी इमारतें और हैं चमक की बरसात
मगर सुनलो ऐ मेरे हिन्द के वासियों
भूखे नंगे अनाथ बच्चे आज भी हैं बिलखते यहाँ
रोती हैं आज भी माएँ और लज्जित होती हैं अबलाएँ
जलता है कश्मीर और होते हैं विष्फोट अनायास
तो, जो मशाल जलाई थी आज़ादी के मतवालों ने
वो मशाल आज फिर से हमें होगी जलानी
आज़ाद भारत में फिर से आज़ाद को करना होगा शामिल
और फिर से खडे करने होंगे भगत राज और बिस्मिल
जय हिन्द जय हिन्द का उद्घोश कर अब फिर
आतंक की धधकती आग बुझाने का करना होगा प्रयास
और प्यारे तिरंगे का पर्चम फहरा प्रण करना होगा फिर
कि सदैव भारत देश में रहे सौहार्द, अमन और चैन
हे माँ भारती शत शत प्रणाम तुझे फिर से
बधाई हो आजादी की सब को आज फिर से
अरविन्द...
main pichale dino sanasad me hue tathakathit vote of confidence hetu apnaye gaye tarikon,sabhi partiyon ke aacharan se ind.day se vimukh ho gaya tha par kavitaon se adhik partikiriyaon ne mujhe phir utsaahit ka diya,jai freedom
HUM HONGE KAMYAB
shyamskha
main pichale dino sanasad me hue tathakathit vote of confidence hetu apnaye gaye tarikon,sabhi partiyon ke aacharan se ind.day se vimukh ho gaya tha par kavitaon se adhik partikiriyaon ne mujhe phir utsaahit ka diya,jai freedom
HUM HONGE KAMYAB
shyamskha
सभी प्रतिभागियों सर्वश्री :-
मयंक सक्सेना | सुधीर सक्सेना 'सुधि' | प्रो. सी.बी. श्रीवास्तव "विदग्ध" | हरकीरत कलसी 'हकी़र' | सी आर राजश्री | विवेक पांडेय | वीनस केशरी | संतोष गौड़ राष्ट्रप्रेमी | प्रदीप पाठक | विवेक रंजन श्रीवास्तव "विनम्र" |विद्याधर दुबे |कमलप्रीत सिंह | प्रदीप मानोरिया | देवेन्द्र पाण्डेय | निशिकांत तिवारी । व अरविन्द जी आप सब को मेरी और से शुभकामनायें,
आज़ादी और माँ भरती पर आपने जो भी लिखा है व् तो काबिले तारीफ है ही साथ ही साथ आप सभी ने जो प्यार और आदर भारत माता के प्रति समर्पित किया है उसे देख कर मन बहुत प्रसन्न हो उठा है ,आपकी लेखन कला पर कोई टिप्प्न्नी नही कर रहा हूँ बस भारत माता के लिए लिखा है वह भी कम नही है सभी को साधुवाद और आज़ादी की अनेकानेक मंगल कामनाएं
सभी कविताऐ अच्छी लगी...
मयंक जी एक बात कहना चाहूँगा
हम विकसित हो ही जाएँगे
दिल को बहलाने को ग़ालिब...........
यहां पर 'गालिब' की जगह 'मयंक' आना चाहिए था क्योकि ये रचना आपकी है गालिब साहब की नहीं...
सुमित भारद्वाज
मयंक जी,
बहुत ही धारदार कटाक्ष।
सुधीर जी,
आपका भी जवाब नहीं। पहली बार आपको पढ़ा। आगे भी कविताएँ भेजते रहें।
विदग्ध जी, आपकी कविता ने बिलकुल भी प्रभावित नहीं किया।
हरकीरत जी, यही सवाल आज हर इंसान दूसरे इंसान से पूछ रहा है। अच्छी रचना।
सी आर राजश्री जी, मुझे इसमें कविता का कोई तत्व नहीं मिला।
विवेक जी, बहुत बिखरी हुई सी है आपकी कविता। खास अच्छा नहीं लगा पढ़कर।
हालाँकि फॉरमैट पुराना है वीनस की कविता का, लेकिन फिर भी प्रभावित करती है। कथ्य में नयापन लाने का प्रयास करें।
संतोष जी, अच्छा आव्हान किया आपने कविता के माध्यम से।
प्रदीप जी, यद्यपि आपकी कविता का क्राफ़्ट बहुत लचर है, फिर भी कथ्य ने प्रभावित किया। हिन्द-युग्म पर आपका स्वागत है।
विनम्र जी, अच्छा लिखा है आपने।
विद्याधर जी, अच्छा गीत है। बधाइयाँ।
कमलप्रीत जी, आपकी कविता बहुत सपाट है, लेकिन बहुत प्रभावित करती है। सच लिखा है आपने।
प्रदीप मानोरिया जी, आपकी कविता बहुत सरल और फ्लो वाली है। बधाई।
देवेन्द्र जी,
इन सभी कविताओं के बीच आपकी कविता ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया है। कितना तीखा व्यंग्य है-
मगर
आजादी के
इकसठ वर्षों के बाद
आज भी
वह
चौराहे पर खड़ा है !
निशिकांत जी, आप अपनी कविता को मंच से सुनाएँ तो बहुत वाह-वाही बटोरेंगे।
सीमा जी, तपन जी और अरविन्द जी की भी कविताएँ अच्छी हैं। यदि हमें समय से मिल गईं होतीं तो एक साथ १८ कविताएँ प्रकाशित करने का अवसर मिलता।
सुमीत जी,
मयंक जी ने 'ग़ालिब' का प्रयोग ठीक जगह किया है। यहाँ पर 'गालिब' कोई तख़्खलुस की तरह नहीं आया है, बल्कि 'दिल बहलाने को ग़ालिब ये ख़याल अच्छा है' अब एक मुहाबरा बन गया है।
(((((हालाँकि फॉरमैट पुराना है वीनस की कविता का, लेकिन फिर भी प्रभावित करती है। कथ्य में नयापन लाने का प्रयास करें।)))))
शैलेश भारतवासी जी
सबसे पहले आपको जन्म दिन की हार्दिक शुभ कामनाये
आपकी परखी नजरो का ही कमाल है की आपने इस बात को महसूस किया की कविता में नया पॅन नही है आप बिल्कुल सही कह रहे है और यह बात मैंने कविता भेजते समय ख़ुद ही लिखी थी ......
((१५ अगस्त को प्रकाशित होने के लिये रचना प्रेषित कर रहा हू आशा करता हू कि आपको पसन्द आयेगी तथा आप इसे प्रकाशित करेंगें।
मैं आपके ब्लाग को पिछले 9 महीनों से नियमित पठ़ रहा हू आज मुझे लगा कि वो समय आ गया है जब खुद को इतना सक्षम पाता हू कि आपके ब्लाग पर प्रकाशनार्थ अपनी रचना भेज सकू
यह कविता मैने दो साल पहले लिखी थी तथा पहली बार मैं कोई रचना प्रकाशन हेतु भेज रहा हू))))
आपको कविता ने प्रभावित किया इसका मुझे गर्व है
आपका वीनस केसरी
विलंब के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ,सभी कवितायेँ शानदार और जानदार,
सभी को साधुवाद,
विशेष तौर पर देवेन्द्र जी,आपने ज्यादा अंदर तक छुआ,हार्दिक बधाई.
आलोक सिंह "साहिल"
अच्छा प्रयास! एक-दो कविताएँ मुझे भी अच्छी लगीं!
सुधीर जी
नमस्कार!
इससे पहले आपको रचनाकार पर पढ़ा था।
अब यहाँ फिर एक जोरदार रचना के सथ आपको पाकर सुखद हैरानी हो रही है। हैरानी इसलिए क्योंकि आपके कवि पक्ष से सर्वथा अपरिचित रहा, बाल साहित्य मे आपकी लेखनी का लोहा तो पहले से ही मानता रहा हूँ, आपके कवि रुप को भी सलाम करने को जी चाहता हैं। नेट पर शुरू हुआ यह सिलसिला बना रहे। आमीन!
साठ विगत की भाँति ही इकसठ आया आज ।
तिस पर पन्द्रह रूप में आजादी का साज ॥
सभी रचनाकारों सहित चित्रकार जी कों बहुत बहुत बधाई
जय हिन्द..
सब कवितायें अच्छी है मगर हमारी अध्यापिका(राजश्री मैडम) की कविता सब्से अच्छी है.
bahut hi badhiyaa sankalan hai.
sabhi ki abhivyakti saraahniy hai.
aajaadi ke din mein josh aur dounaa ho gayaahai is ank ko padhkar.
sabhi ko badhaai va dhanyvad
आज़ादी के बाद की सुबह ........मुबारक
आप सभी लोगों ने शब्दों को संग्रह करके लिखा है प्रणाम है आप सभी को क्योंकि सोचता तो हर इंसान है करने का जज्बा कुछ ही लोग करते हैं और मेरी नज़र में वो निराले हैं .....
कलम का इस्तेमाल बहुत हे अच्छा और अच्छे ढंग से किया है...........
KHUSHNASEEB HAI WO JO,
WATAN PE MIT JAATE HAI.
MAR KAR BHI WO LOG,
AMAR HO JAATE HAI.
KARTE HAI TUMHE HUM SAALAM,
E-WATAN PE MITNE WALO...
TUMHARI HAR SAANS MEIN BASTA,
TIRANGE KA NASEEB HAI.
-WAHID HUSSAIN QAZI,
SRI GANGANAGAR (RAJ.)
it's very nice poem
Seema aapne behd achchi kavita likhi he. Aaj ki samsya ko aapne bhut hi achchi trh apni kavita me likha he.
Anil Bairagi
Kota
Rajasthan
Seema aapne behd achchi kavita likhi he. Aaj ki samsya ko aapne bhut hi achchi trh apni kavita me likha he.
Anil Bairagi
Kota
Rajasthan
aap sabhi desh bhakto ko mere our se pradam aap sabhi ki kavitaye ek se badkar ek hai aap sabhi desh bhakto ko mere OUR mere parivar ki or se SWADHINTA DIVAS KI HARDIK SUBHKAMNAY
स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.........
सभी कविताएँ अच्छी लगी, हिंद युग्म को बधाई
राधेश्याम गुर्जर
आजादी
बिखरे हुए बाल हैं
बड़े बुरे हाल हैं |
आँखे अंदर धंसी हुई हैं
कमर भी कसी हुई हैं
बोलती हैं उखड़ी उखड़ी
दिखती हैं उजड़ी उजड़ी
मैने पूछा तुम कौन हो ?
अक्सर रहती तुम मौन हो ?
तुम कहाँ से आई हो ?
क्या साथ में लाइ हो ?
तुम कहाँ पर रहती हो ?
क्या क्या दुखड़े सहती हों ?
क्या नाम हैं तुम्हारा ?
क्या काम हैं तुम्हारा ?
उसने मुझे यह जवाब दिए
मैं कई कुर्बानियों के बाद आई हूँ
मैं अब इन भारतियों की माई हूँ
मैं वर्षों से दुखड़े सहती हूँ
महलों के भीतर रहती हूँ
मेरे लाडले बीमार हो गये
भ्रष्टाचार के शिकार हो गये
बचपन नहीं पलते मुझ से
बुढ़ापे नही ढलते मुझ से
मैं तिरंगे में लिपटी सो रही हूँ
मेरे बेटे बीमार हैं मैं रो रही हूँ
अब रोना काम हैं मेरा
आजादी नाम हैं मेरा
achha laga
t.s. mishra sangam
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Bhaut khub !
Is mitti se paida hue hum !
Is mitti me hi mil jaana hai !
Par marne se pahele !
Kuch bada hume kar jaana hai !
dekho kya ho gaya is jamane ko,ek dusare ladte jhagdate hai,
bhasta char ke aandhi me kud pade hai.
rohani n mile to ghar ko aag laga dete hai,pani n mile to jannt bujha dete hai.
garibi ki sakt kagar me rahkar bhi, bhukh me jujh rahe hai.
dekho kya ho gaya is jamane ko,ek dusare ladte jhagdate hai,
bhasta char ke aandhi me kud pade hai.
rohani n mile to ghar ko aag laga dete hai,pani n mile to jannt bujha dete hai.
garibi ki sakt kagar me rahkar bhi, bhukh me jujh rahe hai.
Desh puri tarah se swatantra tab hoga jab corruption aur jatiwad khatma ho jayega.
Beti Beti nahi is jag ka taj hoti h ise jeevan dedo ye jeene ki mohtaaz hoti h. Ruko, mat chedo cheeno iski chunri ko. Kyoki yahi chunri to iski laaz hoti h
Adminji, thanks for sharing amazing information about independence day, please keep sharing continues.
स्वतंत्रता दिवस 2018 पर special भाषण
Adminji, thanks for sharing amazing information about independence day, please keep sharing continues.
स्वतंत्रता दिवस 2018 पर special भाषण
i love my indiya
MERA NAME RAVIKANT SINGH HAI ME BHI AIK NAI KA PIDI KV (POET) HU MAI ALIGARH KE IGLAS TESIL KE PILKHUNIYA GAUV KA RAHNE WALA HU RPM SCHOOL MAI 10 CLASS ME PADHATA HU HATHRAS MUGHE KAVITA KAHNI PADHANA OAR LIKHNA ACCHA LAGTA HAI///9719518681
आप क्या कहना चाहेंगे? (post your comment)